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Last Updated :नई दिल्ली , रविवार, 3 सितम्बर 2023 (21:01 IST)

G20 Summit : चीन और पाकिस्तान को PM मोदी की खरी खरी, कहा- अरुणाचल हो या कश्मीर... कहीं भी कर सकते हैं G20 मीटिंग, पढ़िए स्पेशल इंटरव्यू

G20 Summit :  चीन और पाकिस्तान को PM मोदी की खरी खरी, कहा- अरुणाचल हो या कश्मीर... कहीं भी कर सकते हैं G20 मीटिंग, पढ़िए स्पेशल इंटरव्यू - PM Modi rejects Pakistan, Chinas objections on G20 meets, speaks up on Russia-Ukraine war| 10 big takeaways
PM Modi PTI Interview : G-20 समिट से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीटीआई को स्पेशल इंटरव्यू दिया। इंटरव्यू में उन्होंने जी- 20, आतंकवाद, रूस यूक्रेन युद्ध समेत कई मुद्दों पर बात की। पीएम मोदी ने जी-20 को लेकर चीन और पाकिस्तान की आपत्ति पर कहा कि अरुणाचल प्रदेश हो या कश्मीर, भारत कहीं भी जी-20 समिट की मीटिंग करवा सकता है। पढ़िए प्रधानमंत्री से पूछे गए हर सवाल का जवाब- 
 
प्रश्न: हमारे कुछ पड़ोसियों ने कुछ बैठकों के आयोजन स्थलों पर आपत्ति जताई। पाकिस्तान और चीन की आपत्ति के बावजूद हमने कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में जी-20 में विदेशी नेताओं की मेजबानी करके क्या संदेश दिया? 
 
उत्तर : मैं हैरान हूं कि पीटीआई-भाषा इस तरह का सवाल पूछ रही है। यदि हमने उन स्थानों पर बैठकें आयोजित करने से परहेज किया होता, तब इस तरह का सवाल वैध होता।
 
हमारा देश इतना विशाल, सुंदर और विविधतापूर्ण है। जब जी-20 की बैठकें हो रही हैं, तो क्या यह स्वाभाविक नहीं है कि हमारे देश के हर हिस्से में बैठकें हों?
 
प्रश्न: भारत ने जी-20 की अध्यक्षता तब संभाली जब अधिकांश सदस्य राष्ट्र मंदी के खतरे का सामना कर रहे थे, जबकि भारत एकमात्र उभरता हुआ देश था। भारत ने ऋण प्रवाह, मुद्रास्फीति नियंत्रण और वैश्विक कर सौदों पर आम सहमति बनाने के लिए सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति का लाभ कैसे उठाया है?
 
उत्तर : 2014 से पहले के तीन दशकों में, हमारे देश ने कई सरकारें देखीं जो अस्थिर थीं और इसलिए बहुत कुछ करने में असमर्थ थीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लोगों ने एक निर्णायक जनादेश दिया है जिसकी वजह से एक स्थिर सरकार, अनुमानित नीतियां और समग्र दिशा में स्पष्टता आई है।
यही कारण है कि पिछले नौ वर्षों में कई सुधार किए गए। अर्थव्यवस्था, शिक्षा, वित्तीय क्षेत्र, बैंक, डिजिटलीकरण, कल्याण, समावेशन और सामाजिक क्षेत्र से संबंधित इन सुधारों ने एक मजबूत नींव रखी है और विकास इसका स्वभाविक प्रतिफल है।
 
भारत द्वारा की गई तीव्र और निरंतर प्रगति ने स्वाभाविक रूप से दुनिया भर में रुचि पैदा की और कई देश हमारी विकास कहानी को बहुत करीब से देख रहे हैं। वे आश्वस्त हैं कि यह प्रगति आकस्मिक नहीं है, बल्कि 'सुधार, प्रदर्शन, परिवर्तन' के स्पष्ट, कार्य-उन्मुख रोडमैप के परिणामस्वरूप हो रही है।
 
लंबे समय तक, भारत को एक अरब से अधिक भूखे पेट वाले लोगों के राष्ट्र के रूप में जाना जाता था। लेकिन अब, भारत को एक अरब से अधिक आकांक्षी प्रतिभाओं, दो अरब से अधिक कुशल हाथों और लाखों युवाओं के राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। हम न केवल दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं, बल्कि सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश भी हैं। इसलिए, भारत के बारे में दृष्टिकोण बदल गया है।
 
इसके अलावा, महामारी के प्रति भारत की जांची-परखी राजकोषीय और मौद्रिक प्रतिक्रिया ने लोगों की जरूरतों को पूरा करते हुए व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित की। साथ ही, गरीबों के लिए निर्धारित एक-एक रुपया हमारे प्रभावशाली डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के कारण, बिना किसी ‘लीकेज’ या देरी के तुरंत उन तक पहुंच गया। ऐसे कई कारकों ने एक मजबूत विश्वसनीय आधार प्रदान किया जिस पर हम अपने जी-20 की अध्यक्षता के एजेंडे को आगे बढ़ा सकते हैं। यही कारण है कि हम विभिन्न मुद्दों पर चर्चा, विचार-विमर्श और वितरण के लिए दुनिया के देशों को एक साथ लाने में सक्षम हुए हैं।
 
मुद्रास्फीति एक प्रमुख मुद्दा है जिसका सामना दुनिया कर रही है। हमारी जी-20 अध्यक्षता में जी-20 के वित्त मंत्रियों और केन्द्रीय बैंकों के गवर्नरों ने भाग लिया। यह स्वीकार किया गया कि केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत रुख का समयबद्ध और स्पष्ट संदेश महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित कर सकता है कि मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक देश द्वारा अपनाई गई नीतियों से अन्य देशों में नकारात्मक नतीजे न हों।
 
खाद्य और ऊर्जा मूल्य अस्थिरता से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए देशों को नीतिगत अनुभवों को साझा करने में सक्षम बनाने पर भी महत्वपूर्ण जोर दिया गया, खासकर जब खाद्य और ऊर्जा बाजार निकटता से जुड़े हुए हैं। जहां तक अंतरराष्ट्रीय कराधान का संबंध है, भारत ने जी-20 मंच का उपयोग ‘पिलर वन’ पर महत्वपूर्ण प्रगति प्राप्त करने के लिए एक मजबूत प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए किया, जिसमें बहुपक्षीय समझौते (कन्वेंशन) के पाठ का वितरण भी शामिल है।

यह कन्वेंशन देशों और न्यायालयों को अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली के ऐतिहासिक, प्रमुख सुधार के साथ आगे बढ़ने की अनुमति देगा। जैसा कि आप देख सकते हैं, कई मुद्दों पर पर्याप्त प्रगति हुई है। यह उस विश्वास का भी परिणाम है जो अन्य साझेदार देशों ने भारत की अध्यक्षता में दिखाया है।
 
प्रश्न: क्या हम ऋण पुनर्गठन की चुनौती पर जी -20 शिखर सम्मेलन में किसी आम सहमति की उम्मीद कर सकते हैं, जो ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए एक समस्या बन गई है। क्या भारत चीन के कर्ज के जाल में फंसे देशों जैसे श्रीलंका, सूडान आदि की मदद कर रहा है? भारत ने इन देशों को सहायता के आवंटन में कितनी वृद्धि की है? 
 
उत्तर: मुझे खुशी है कि आपने मुझसे इस विषय पर एक सवाल पूछा। ऋण संकट वास्तव में दुनिया के लिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए बड़ी चिंता का विषय है। विभिन्न देशों के नागरिक इस संबंध में सरकारों द्वारा लिए जा रहे निर्णयों पर उत्सुकता से नजर रख रहे हैं। कुछ सराहनीय परिणाम भी हैं। सबसे पहले, जो देश ऋण संकट से गुजर रहे हैं या इससे गुजर चुके हैं, उन्होंने वित्तीय अनुशासन को अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। दूसरा, जिन अन्य देशों ने कुछ देशों को ऋण संकट के कारण कठिन समय का सामना करते देखा है, वे उन्हीं गलत कदमों से बचने के प्रति सचेत हैं।
 
आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मैंने अपनी राज्य सरकारों से वित्तीय अनुशासन के बारे में भी सचेत रहने का आग्रह किया है। चाहे वह मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय सम्मेलन में हो या ऐसे किसी भी मंच पर, मैंने कहा है कि वित्तीय रूप से गैर-जिम्मेदार नीतियां और लोकलुभावनवाद अल्पावधि में राजनीतिक परिणाम दे सकते हैं, लेकिन लंबी अवधि में एक बड़ी सामाजिक और आर्थिक चुनौती लेकर आएंगे। इसके दुष्परिणामों का सबसे अधिक असर सबसे गरीब व सबसे कमजोर लोगों पर पड़ता है।
 
हमारी जी-20 अध्यक्षता ने ऋण संबंधी जटिलताओं से उत्पन्न वैश्विक चुनौतियों से निपटने पर जोर दिया है, विशेष रूप से ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों के लिए। जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों ने साझा रूपरेखा वाले देशों और साझा ढांचे से परे भी ऋण व्यवहार में अच्छी प्रगति को स्वीकार किया है। हम अपने मूल्यवान पड़ोसी श्रीलंका की जरूरतों के प्रति भी बहुत संवेदनशील रहे हैं।
 
वैश्विक ऋण पुनर्गठन प्रयासों में तेजी लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्व बैंक और जी-20 अध्यक्षता की एक संयुक्त पहल के रूप में ‘वैश्विक संप्रभु ऋण गोलमेज’ (ग्लोबल सोवरेन डेब्ट राउंडटेबल) की इस साल के आरंभ में शुरुआत की गई थी। यह प्रमुख हितधारकों के बीच संवाद को मजबूत करेगा और प्रभावी ऋण उपचार की सुविधा प्रदान करेगा। जैसा कि मैंने पहले कहा था इन मुद्दों को हल करने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है। मैं, सकारात्मक हूं कि विभिन्न देशों के लोगों के बीच बढ़ती जागरुकता यह सुनिश्चित करेगी कि ऐसी स्थितियों की अक्सर पुनरावृत्ति न हों।
 
प्रश्न : समरकंद में राष्ट्रपति पुतिन को दिए गए आपके संदेश कि यह युद्ध का युग नहीं है, ने दुनिया भर में समर्थन हासिल किया है। जी-7 और चीन-रूस गठबंधन के बीच मतभेदों को देखते हुए, समूह के लिए इस संदेश को अपनाना मुश्किल होगा। उस संदर्भ में आम सहमति बनाने में मदद करने के लिए भारत अध्यक्ष के रूप में क्या कर सकता है और उस आम सहमति को बनाने में नेताओं के लिए आपका व्यक्तिगत संदेश क्या होगा? 
 
उत्तर : विभिन्न क्षेत्रों में कई अलग-अलग संघर्ष हैं। इन सभी को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से हल करने की आवश्यकता है। कहीं भी किसी भी संघर्ष पर हमारा यही रुख है। चाहे जी-20 अध्यक्ष के रूप में हो या न हो, हम दुनिया भर में शांति सुनिश्चित करने के हर प्रयास का समर्थन करेंगे।
 
हम मानते हैं कि विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर हम सभी की अपनी-अपनी स्थिति और अपने-अपने दृष्टिकोण हैं। साथ ही, हमने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि विभाजित दुनिया के लिए साझा चुनौतियों से लड़ना मुश्किल होगा। प्रगति, विकास, जलवायु परिवर्तन, महामारी और आपदा से जुड़ी चुनौतियां दुनिया के हर हिस्से को प्रभावित करती हैं और ऐसे कई मुद्दों पर परिणाम देने के लिए दुनिया जी-20 की ओर देख रही है। अगर हम एकजुट हों तो हम सभी इन चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर सकते हैं। हम शांति, स्थिरता और प्रगति के समर्थन में हमेशा खड़े रहे हैं और रहेंगे।
 
प्रश्न: भारत द्वारा विश्वसनीय प्रौद्योगिकियों के समान वितरण और प्रौद्योगिकियों के लोकतंत्रीकरण पर बड़ा जोर दिया गया है। हमने इस लक्ष्य को कहां तक हासिल किया है? 
 
उत्तर: जब प्रौद्योगिकी के लोकतंत्रीकरण की बात आती है तो भारत की वैश्विक विश्वसनीयता है। हमने पिछले कुछ वर्षों में कई पहल की हैं जिन पर दुनिया ने ध्यान दिया है। और ये पहल एक बड़े वैश्विक आंदोलन का जरिया भी बन रहे हैं। दुनिया का सबसे बड़ा (कोविड) टीकाकरण अभियान भी सबसे समावेशी था। हमने 200 करोड़ से अधिक खुराक मुफ्त प्रदान की। यह एक तकनीकी मंच कोविन पर आधारित था। इसके अलावा, इस मंच का लाभ भी दुनिया को दिया गया ताकि अन्य देश भी इसे अपना सकें और लाभान्वित हो सकें। आज डिजिटल लेन-देन हमारे व्यावसायिक जीवन के हर वर्ग को सशक्त बना रहा है, रेहड़ी-पटरी वालों से लेकर बड़े बैंकों तक।
 
हमारा ‘डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ विश्व स्तर पर कई लोगों के लिए आश्चर्य का विषय था, खासकर जिस तरह से इसका उपयोग महामारी के दौरान सार्वजनिक सेवा वितरण के लिए किया गया था। दुनिया भर के कई देशों ने कल्याणकारी पैकेजों की घोषणा की थी, लेकिन उनमें से कुछ को इसे लोगों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया था। लेकिन भारत में, जन धन-आधार-मोबाइल (जेएएम) की तिकड़ी ने एक क्लिक के साथ लाभार्थियों को सीधे वित्तीय समावेशन, प्रमाणीकरण और लाभ का हस्तांतरण सुनिश्चित किया। इसके अलावा, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) एक ऐसी पहल है जिसका नागरिकों और विशेषज्ञों द्वारा डिजिटल मंचों पर एक समान अवसर उपलब्ध कराने और उसका लोकतांत्रिकरण करने में एक महत्वपूर्ण बिंदु के रूप में स्वागत किया जा रहा है।
 
डिजिटल अर्थव्यवस्था मंत्रियों की बैठक में जी-20, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को विकसित करने, तैनात करने और नियंत्रित करने के लिए एक रूपरेखा अपनाने में सक्षम हुआ। उन्होंने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) पारिस्थितिकी तंत्र के लिए वैश्विक प्रयासों को समन्वित करने के लिए ‘वन फ्यूचर अलायंस’ की नींव रखते हुए डिजिटल अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए सिद्धांतों को सफलतापूर्वक अपनाया है।
 
यह सर्वविदित है कि प्रौद्योगिकी स्वास्थ्य सेवा वितरण पर बहुत प्रभाव डाल सकती है। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन भारत में इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। 'वन अर्थ वन हेल्थ' के हमारे मंत्र के कारण लोगों के स्वास्थ्य के लिए हमारी चिंता हमारी सीमाओं से समाप्त नहीं होती है। हमारी जी-20 अध्यक्षता के दौरान, समूह के स्वास्थ्य मंत्रियों ने वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य पहल पर सफलतापूर्वक आम सहमति बनाई है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य रणनीति को लागू करने में मदद करेगी।
 
प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की दिशा में हमारा दृष्टिकोण समावेशी, अंतिम व्यक्ति तक वितरण और किसी को पीछे नहीं छोड़ने की भावना से प्रेरित है। ऐसे समय में जब प्रौद्योगिकी को असमानता और गैर-समावेशी वाहक के रूप में माना जाता था, हम इसे समानता और समावेश का वाहक बना रहे हैं।
 
प्रश्न: जब आपने 2070 का लक्ष्य निर्धारित किया तो आपने देखा कि जीवाश्म ईंधन भारत जैसे देशों में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है, जिस पर पश्चिम द्वारा नाराजगी जताई गई थी। लेकिन दुनिया के अधिकांश देशों ने यूक्रेन संघर्ष के बाद जीवाश्म ईंधन के महत्व को महसूस किया, यूरोप में कुछ ने कोयला और गैस की ओर वापस रुख किया। आप यूक्रेन युद्ध के बाद के युग में जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को कैसे प्रगति करते हुए देखते हैं?

उत्तर: हमारा सिद्धांत सरल है - विविधता हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। वह चाहे समाज में हो या हमारे ऊर्जा मिश्रण के संदर्भ में। ऐसा नहीं होता है कि कोई एक चीज हर जगह लागू हो। देशों के विभिन्न मार्गों को देखते हुए, ऊर्जा पारगमन के लिए हमारे रास्ते अलग-अलग होंगे।
 
दुनिया की आबादी का 17 प्रतिशत होने के बावजूद, संचयी उत्सर्जन में भारत की ऐतिहासिक हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से कम रही है। फिर भी, हमने अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मैं पहले ही एक प्रश्न के उत्तर में इस क्षेत्र में हमारी विभिन्न उपलब्धियों के बारे में बात कर चुका हूं। इसलिए, हम निश्चित रूप से सही रास्ते पर हैं और विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक विभिन्न कारकों को भी ध्यान में रख रहे हैं।
 
जहां तक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के भविष्य के बारे में बात है तो मैं इसके बारे में बेहद सकारात्मक हूं। हम अन्य देशों के साथ काम कर रहे हैं, ताकि दृष्टिकोण को प्रतिबंधात्मक से रचनात्मक दृष्टिकोण में बदला जा सके। विशुद्ध रूप से यह या वह न करने के दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, हम एक ऐसा दृष्टिकोण लाना चाहते हैं जो लोगों और राष्ट्रों को जागरूक करे कि वे वित्त प्रौद्योगिकी और अन्य संसाधनों के संदर्भ में क्या कर सकते हैं और कैसे मदद कर सकते हैं।

प्रश्न : साइबर अपराधों ने धन शोधन और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक नया आयाम जोड़ा है। 1 से 10 के पैमाने पर जी-20 को इसे कहां रखना चाहिए और वर्तमान में यह कहां है?
 
उत्तर : साइबर खतरों को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उनके प्रतिकूल प्रभाव का एक कोण उनके कारण होने वाले वित्तीय नुकसान हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि साइबर हमलों से 2019-2023 के दौरान दुनिया को लगभग 5.2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है।
 
लेकिन उनका प्रभाव सिर्फ वित्तीय पहलुओं से परे उन गतिविधियों में चला जाता है जो गहरी चिंता का विषय हैं। इनके सामाजिक और भू-राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं। साइबर आतंकवाद, ऑनलाइन कट्टरता, धन शोधन से मादक पदार्थ और आतंकवाद की ओर ले जाने के लिए नेटवर्क प्लेटफार्मों का उपयोग महज झलक है।
 
‘साइबर स्पेस’ ने अवैध वित्तीय गतिविधियों और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक पूरी तरह से नया आयाम पेश किया है। आतंकवादी संगठन कट्टरपंथ के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं, धन शोधन और मादक पदार्थों से आतंक के वित्त पोषण में पैसा ले जा रहे हैं, और अपने नापाक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ‘डार्क नेट’, ‘मेटावर्स’ और ‘क्रिप्टोकरेंसी’ जैसे उभरते डिजिटल रास्तों का फायदा उठा रहे हैं।
 
इसके अलावा, वे राष्ट्रों के सामाजिक ताने-बाने पर असर डालने वाले हो सकते हैं। 'डीप फेक' के प्रसार से अराजकता और समाचार स्रोतों की विश्वसनीयता को नुकसान हो सकता है। सामाजिक अशांति को बढ़ावा देने के लिए फर्जी समाचार का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए, यह हर समूह, हर राष्ट्र और हर परिवार के लिए चिंता का विषय है। यही कारण है कि हमने इसे प्राथमिकता के रूप में लिया है।
 
हमने नॉन-फंजिबल टोकन (एनएफटी), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम मेधा) और मेटावर्स के युग में अपराध और सुरक्षा पर जी-20 सम्मेलन की मेजबानी की। इस सम्मेलन के दौरान, साइबर स्पेस और अंतरराष्ट्रीय कानून के स्थापित मानदंडों, सिद्धांतों और नियमों के विपरीत दुर्भावनापूर्ण साइबर गतिविधियों पर चिंता व्यक्त की गई थी। इस बात पर जोर दिया गया कि रोकथाम और शमन रणनीतियों पर समन्वय की आवश्यकता है। आपराधिक उद्देश्यों के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के इस्तेमाल का मुकाबला करने के लिए एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
 
ऐसे कई क्षेत्र हो सकते हैं, जिनमें वैश्विक सहयोग वांछनीय है। लेकिन ‘साइबर सुरक्षा’ के क्षेत्र में, वैश्विक सहयोग न केवल वांछनीय है, बल्कि अपरिहार्य है। क्योंकि खतरे की गतिशीलता बढ़ जाती है - हैंडलर कहीं हैं, संपत्ति कहीं दूसरी जगह है और वे तीसरे स्थान पर स्थापित सर्वरों के माध्यम से संवाद कर रहे होते हैं और उनका वित्त पोषण पूरी तरह से अलग क्षेत्र से आ सकता है। जब तक इस श्रृंखला के सभी राष्ट्र सहयोग नहीं करते हैं, तब तक बहुत रोकथाम संभव नहीं है।
 
प्रश्न : संयुक्त राष्ट्र को ‘वार्ता की एक दुकान’ के रूप में देखा जा रहा है, जो दुनिया के सामने आने वाले अधिकांश दबाव वाले मुद्दों को हल करने में विफल रहा है। क्या जी-20 बहुपक्षीय संस्थानों को आज की चुनौतियों के लिए अधिक प्रासंगिक बनाने और वैश्विक व्यवस्था में भारत को उसका उचित स्थान दिलाने के लिए एक मंच बन सकता है? इसे रेखांकित करने में मीडिया की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है?
 
उत्तर : आज की दुनिया एक बहुध्रुवीय दुनिया है, जहां सभी चिंताओं के प्रति निष्पक्ष और संवेदनशील संस्थान एक नियम-आधारित व्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, संस्थान तभी प्रासंगिकता बनाए रख सकते हैं जब वे समय के साथ बदलते हैं। 20वीं सदी के मध्य का दृष्टिकोण 21वीं सदी में दुनिया के लिए काम नहीं कर सकता है। इसलिए, हमारे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को बदलती वास्तविकताओं को पहचानने, अपने निर्णय लेने वाले मंचों का विस्तार करने, अपनी प्राथमिकताओं पर फिर से विचार करने और महत्वपूर्ण आवाजों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। जब यह समय पर नहीं किया जाता है, तो छोटे या क्षेत्रीय मंच अधिक महत्व प्राप्त करने लगते हैं।
 
जी-20 निश्चित रूप से उन संस्थानों में से एक है जिसे कई देशों द्वारा आशा की दृष्टि से देखा जा रहा है। क्योंकि दुनिया कार्यों और परिणामों की तलाश में है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कहां से आते हैं।
 
जी-20 की भारत की अध्यक्षता ऐसे मोड़ पर आई है। इस संदर्भ में, वैश्विक ढांचे के भीतर भारत की स्थिति विशेष रूप से प्रासंगिक हो जाती है। एक विविधतापूर्ण राष्ट्र, लोकतंत्र की जननी, दुनिया में युवाओं की सर्वाधिक आबादी वाले देशों में से एक और विश्व के विकास इंजन के रूप में, भारत के पास दुनिया के भविष्य को आकार देने में योगदान देने के लिए बहुत कुछ है।
 
जी-20 ने भारत को अपने मानव-केंद्रित दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए एक मंच प्रदान किया है और समग्र रूप से मानवता के सामने आने वाली समस्याओं के अभिनव समाधान की दिशा में भी काम किया है। इस यात्रा में मीडिया, बदली हुई वैश्विक वास्तविकताओं, भारत की प्रगति और हमारे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधार की आवश्यकता के बारे में जागरूकता और समझ विकसित करने के लिए एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। भाषा