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Last Modified: बुधवार, 7 अक्टूबर 2020 (15:45 IST)

विशेष विवाह कानून के तहत 30 दिन का नोटिस, कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

विशेष विवाह कानून के तहत 30 दिन का नोटिस, कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब - pil against 30 day notice period under special marriage act
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने विशेष विवाह कानून (SMA) के तहत विवाहों के लिए आपत्तियां मंगाने को लेकर जारी किए जाने वाले सार्वजनिक नोटिस के प्रावधानों को चुनौती वाली याचिका पर केंद्र और आप सरकार से बुधवार को जवाब मांगा।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने विधि मंत्रालय और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करके उनसे याचिका पर जवाब मांगा। एक अंतरधार्मिक जोड़े की इस याचिका में दावा किया गया है कि 30 दिवसीय नोटिस अवधि लोगों को दूसरे धर्म में विवाह करने से हतोत्साहित करती है। पीठ ने मामले की आगे सुनवाई के लिए 27 नवंबर की तारीख तय की।

दम्पत्ति की ओर से पेश हुए वकील उत्कर्ष सिंह ने कहा कि समान धर्म के लोगों के बीच विवाह संबंधी ‘पर्सनल कानूनों’ में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

केंद्र सरकार की स्थायी वकील मोनिका अरोड़ा ने कहा कि गैर सरकारी संगठन (NGO) ‘धनक फॉर ह्यूमैनिटी’ ने इसी प्रकार की याचिकाएं दायर की हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि इस याचिका के पीछे भी यही एनजीओ है।

हालांकि पीठ ने कहा कि याचिका में कानूनी मसलों को उठाया गया है, जिस पर विचार किए जाने की आवश्यकता है। पीठ ने अरोड़ा से कहा कि वह याचिका के जवाब में अपनी आपत्तियों का जिक्र करें।

याचिका में दावा किया गया है कि दोनों में से किसी एक पक्ष के दिमागी रूप से स्वस्थ नहीं होने या विवाह की आयु नहीं होने जैसी उन आपत्तियों का पता किसी सरकारी अस्पताल या किसी तय प्राधिकारी द्वारा जारी प्रमाण पत्रों के आधार पर लगाया जा सकता है, जो कानून की धारा चार के तहत उठाई जा सकती हैं।

याचिका में कहा गया है कि विवाह पर आपत्ति मंगाने के लिए 30 दिन की नोटिस अवधि याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों पर सीधे हमला है।

इसमें कहा गया है कि किसी पक्ष का कोई जीवित पति या पत्नी होने संबंधी आपत्ति कानून की धारा चार के तहत उठाई जा सकती है, लेकिन एक ही धर्म में विवाह करने पर यह लागू नहीं होता और भेदभावपूर्ण रवैया होने के कारण इसे दूसरे धर्म के व्यक्ति से विवाह के मामलों में ही लागू किया गया है।

याचिका में आपत्ति दर्ज कराने के लिए 30 दिन की नोटिस अवधि के कानून के प्रावधान को अमान्य और असंवैधानिक करार दिए जाने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में अनुरोध किया गया है कि केंद्र और दिल्ली सरकार को किसी सरकारी अस्पताल या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा जारी प्रमाण पत्रों के आधार पर आपत्तियों पर फैसला करने का निर्देश दिया जाए। याचिका में 30 दिन की नोटिस अवधि की अनिवार्यता खत्म करने और याचिकाकर्ताओं की शादी का पंजीकरण किए जाने का अनुरोध किया गया है। (भाषा)

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