महाराणा प्रताप और शिवाजी के बाद बाजीराव पेशवा का ही नाम आता है, जिन्होंने मुगलों से लंबे समय तक लोहा लिया। इतना ही अपने शत्रुओं को अपनी मांद में छिपने पर मजबूर कर दिया था। हाल में संजय लीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' के प्रदर्शन के बाद लोग बाजीराव के बारे में जानकारियां खोज-खोजकर पढ़ रहे हैं।
1. बाजीराव 6 फुट ऊंचे थे, उनके हाथ भी लंबे थे। बलिष्ठ, तेजस्वी, कांतिवान, तांबई रंग की त्वचा उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगाती थी। न्यायप्रिय बाजीराव को सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पसंद थे। उनके 4 घोड़े थे- नीला, गंगा, सारंगा और औलख। उनकी देखभाल वे स्वयं करते थे। पूरी सेना को वे सख्त अनुशासन में रखते थे। अपने भाषण से वे सेना में जोश भर देते थे।
2. अमेरिकी सेना ने उनकी पालखेड़ की लड़ाई का एक मॉडल ही बनाकर रखा है, जिस पर सैनिकों को युद्ध तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाता है।
3. अटक से कटक तक केसरिया लहराने का और हिन्दू स्वराज लाने का सपना जो छत्रपति शिवाजी ने देखा था उसे काफी हद तक पेशवा बाजीराव ने पूरा किया।
4. उन्नीस-बीस साल के युवा बाजीराव ने तीन दिन तक दिल्ली को बंधक बनाकर रखा। ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि मुगल बादशाह की लाल किले से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हुई। यहां तक कि 12वां मुगल बादशाह और औरंगजेब का नाती दिल्ली से बाहर भागने ही वाला था कि बाजीराव मुगलों को अपनी ताकत दिखाकर वापस लौट गया।
5. द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश आर्मी के कमांडर रहे जनरल मांटगोमरी ने भी अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ वॉरफेयर’में बाजीराव की बिजली की गति से तेज आक्रमण शैली की जमकर तारीफ की है। बाजीराव कभी हारे नहीं। वह किताब ब्रिटेन में डिफेंस स्टडीज के कोर्स में पढ़ाई जाती है। बाद में यही आक्रमण शैली द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनाई गई, जिसे ‘ब्लिट्जक्रिग’ बोला गया। निजाम पर आक्रमण के एक सीन में भंसाली ने उसे दिखाने की कोशिश भी की है।
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6. बाजीराव का युद्ध रिकॉर्ड छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप से भी अच्छा माना जाता है। उन्होंने 40 से ज्यादा युद्ध लड़े और एक में भी नहीं हारे।
7. नर्मदा पार सेना ले जाने वाला और 400 वर्ष की यवनी सत्ता को दिल्ली में जाकर ललकारने वाला बाजीराव पहला मराठा था।
8. बाजीराव ने अगर गुजरात, मालवा, बुंदेलखंड नहीं जीता होता और नर्मदा व विंध्य पर्वत के सभी मार्ग अपने कब्जे में न लिए होते तो फिर एक बार अलाउद्दीन खिलजी, अकबर या औरंगजेब जैसा कोई शासक विशाल सेना लेकर आक्रमण करता।
9. बाजीराव को प्रतिभा की पहचान थी। उनके सिपहसालार बाद में मराठा इतिहास की बड़ी ताकत के तौर पर उभरे। होल्कर, सिंधिया, पवार, शिंदे, गायकवाड़ जैसी ताकतें जो बाद में अस्तित्व में आईं, वो सब पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट की देन थीं। ग्वालियर, इंदौर, धार, देवास, पूना और बड़ौदा जैसी ताकतवर रियासतें बाजीराव के चलते ही अस्तित्व में आईं।
10. बाजीराव का निधन मालवा में ही नर्मदा किनारे रावेरखेड़ी डी में लू लगने के कारण हुआ, न कि मस्तानी की याद में। अगले पन्ने पर, मुगलों-पुर्तगालियों को दी शिकस्त...
11. बाजीराव पहले ऐसे योद्धा थे, जिनका अपने समय में 70 से 80 फीसदी भारत पर सिक्का चलता था। वे अकेले ऐसे राजा थे, जिन्होंने मुगल ताकत को दिल्ली और उसके आसपास तक समेट दिया था।
12. पूना शहर को कस्बे से महानगर में तब्दील करने वाले बाजीराव बल्लाल भट्ट ने सतारा से लाकर कई अमीर परिवार वहां बसाए गए।
13. बाजीराव ने निजाम, मुगलों से लेकर पुर्तगालियों तक को कई बार शिकस्त दी।
14. शिवाजी के नाती शाहूजी महाराज को गद्दी पर बैठाकर बिना उसे चुनौती दिए, पूरे देश में उनकी ताकत का लोहा मनवाया था बाजीराव ने।
15. पहली बार हिन्दू पद पादशाही का सिद्धांत भी बाजीराव प्रथम ने दिया था। हर हिंदू राजा के लिए आधी रात मदद करने को तैयार थे वो। उनका एक ही लक्ष्य था, पूरे देश का बादशाह एक हिन्दू हो।
16. बाजीराव की फौज में कई अहम पदों पर मुस्लिम सिपहसालार थे, लेकिन वो युद्ध से पहले 'हर हर महादेव' का नारा भी लगाना नहीं भूलते थे।
17. बुंदेलखंड की रियासत बाजीराव के दम पर जिंदा थी, छत्रसाल की मौत के बाद उसका तिहाई हिस्सा भी बाजीराव को मिला।
18. बाजीराव धर्मप्रेमी भी थे। उनके नाम का एक घाट वाराणसी में है, जो उन्होंने 1735 में बनवाया था।
19. कच्छ में उनका बनाया आइना महल है तो पुणे में मस्तानी महल और शनिवार बाड़ा पाएंगे। पेशवा को भव्य इमारतें बनवाने का शौक था।
20 . दिल्ली पर आक्रमण उनका सबसे बड़ा साहसिक कदम था। वह अक्सर छत्रपति शाहू से कहते थे कि मुगल साम्राज्य की जड़ों यानी दिल्ली पर आक्रमण किए बिना मराठों की ताकत को बुलंदी पर पहुंचाना मुमकिन नहीं और दिल्ली को तो मैं कभी भी कदमों पर झुका दूंगा।
21. धीरे धीरे बाजीराव ने महाराष्ट्र को ही नहीं अधिकांश पश्चिम भारत को मुगल आधिपत्य से मुक्त करा दिया। फिर उसने दक्कन का रुख किया, निजाम जो मुगल बादशाह से बगावत कर चुका था, एक बड़ी ताकत था। कम सेना होने के बावजूद बाजीराव ने उसे कई युद्धों में हराया और कई शर्तें थोपीं। बुंदेलखंड में मुगल सिपाहसालार मोहम्मद बंगश को हराया।
22. 1728 से 1735 के बीच पेशवा ने कई युद्ध लड़े, पूरा मालवा और गुजरात उनके कब्जे में आ गया। बंगश, निजाम जैसे कई बड़े सिपहसालार पस्त हो चुके थे। औरंगजेब के वंशज और 12वें मुगल बादशाह मोहम्मद शाह को रंगीला कहा जाता था, जो कवियों जैसी तबीयत का था। जंग लड़ने की उसकी आदत में जंग लगा हुआ था। कई मुगल सिपाहसालार विद्रोह कर रहे थे। उसने बंगश को हटाकर जयसिंह को भेजा, जिसने बाजीराव से हारने के बाद उसको मालवा से चौथ वसूलने का अधिकार दिलवा दिया।
23. पेशवा 12 नवंबर 1736 को पुणे से दिल्ली की ओर कूच किया। मुगल बादशाह ने आगरा के गर्वनर सादात खां को उससे निपटने का जिम्मा सौंपा। मल्हार राव होलकर और पिलाजी जाधव की सेना यमुना पार कर के दोआब में आ गई। मराठों से खौफ में था सादात खां, उसने डेढ़ लाख की सेना जुटा ली। मराठों के पास तो कभी भी एक मोर्चे पर इतनी सेना नहीं रही थी, लेकिन उनकी रणनीति बहुत दिलचस्प थी। इधर मल्हार राव होल्कर ने रणनीति पर अमल किया और मैदान छोड़ दिया। बाजीराव ने सादात खां और मुगल दरबार को सबक सिखाने की सोची।
24 . सारी मुगल सेना आगरा मथुरा में अटक गई और बाजीराव दिल्ली तक चढ़ आया, आज जहां तालकटोरा स्टेडियम है, वहां बाजीराव ने डेरा डाल दिया। दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके। मुगल बादशाह रंगीला बाजीराव को लाल किले के इतना करीब देखकर घबरा गया। उसने खुद को लाल किले के सुरक्षित इलाके में कैद कर लिया और मीर हसन कोका की अगुआई में आठ से दस हजार सैनिकों की टोली बाजीराव से निपटने के लिए भेजी। बाजीराव के पांच सौ लड़ाकों ने उस सेना को बुरी तरह शिकस्त दी। ये 28 मार्च 1737 का दिन था, मराठा ताकत के लिए सबसे बड़ा दिन। वो तीन दिन तक वहीं डेरा डाले रहा, पूरी दिल्ली को एक तरह से मराठों ने बंधक बना लिया था।
25. दिल्ली से निजाम के अगुआई में मुगलों की विशाल सेना और दक्कन से बाजीराव की अगुआई में मराठा सेना निकल पड़ी। दोनों सेनाएं भोपाल में मिलीं, 24 दिसंबर 1737 का दिन मराठा सेना ने मुगलों को जबरदस्त तरीके से हराया। निजाम अपनी जान बचाने के चक्कर में जल्द संधि करने के लिए तैयार हो जाता था। इस बार 7 जनवरी 1738 को ये संधि दोराहा में हुई। मालवा मराठों को सौंप दिया गया और मुगलों ने पचास लाख रुपए बतौर हर्जाना बाजीराव को दिया। अगला अभियान पुर्तगालियों के खिलाफ था। कई युद्धों में उन्हें हराकर उनको अपनी सत्ता मानने पर उसने मजबूर किया। अगर पेशवा कम उम्र में दिवंगत नहीं होते तो न अहमद शाह अब्दाली या नादिर शाह हावी हो पाते और न ही अंग्रेज और पुर्तगालियों जैसी पश्चिमी ताकतें। बाजीराव का केवल चालीस साल की उम्र में इस दुनिया से चले जाना देश के लिए बहुत बड़ा झटका था।