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Last Modified: बुधवार, 10 नवंबर 2021 (22:33 IST)

राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिदंबरम ने उठाए सवाल, बाबरी विध्वंस को बताया शर्मनाक

राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिदंबरम ने उठाए सवाल, बाबरी विध्वंस को बताया शर्मनाक - P Chidambaram raised questions on Supreme Court's decision on Ram temple
नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि देश में हिंदू खतरे में नहीं हैं, बल्कि 'फूट डालो और राज करो' की मानसिकता खतरे में है।

सिंह ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ के विमोचन के मौके पर यह भी कहा कि ‘हिंदुत्व’ शब्द का हिंदू धर्म और सनातनी परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने इस मौके पर कहा कि अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय का फैसला सही है, क्योंकि दोनों पक्षों ने इसे स्वीकार किया है।

दिग्विजय सिंह ने कहा, इस देश के इतिहास में धार्मिक आधार पर मंदिरों का विध्वंस भारत में इस्लाम आने के पहले भी होता रहा है। इसमें दो राय नहीं है कि जो राजा दूसरे राजा के क्षेत्र को जीतता था, तो अपने धर्म को उस राजा के धर्म पर तरजीह देने की कोशिश करता था। अब ऐसा बता दिया जाता है कि मंदिरों की तोड़फोड़ इस्लाम आने के साथ शुरू हुई।

उन्होंने दावा किया, जब फासीवाद आता है तो उसके लिए जरूरी है कि वह एक शत्रु की पहचान करे... डर पैदा करना और नफरत पैदा करना फासीवाद का मूलमंत्र रहा है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, राम जन्मभूमि का विवाद कोई नया विवाद नहीं था। लेकिन विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस ने इसे कभी मुद्दा नहीं बनाया। जब 1984 में वो दो सीटों पर सिमट गए तो इसे मुद्दा बनाने का प्रयास किया।

उस समय अटल बिहारी वाजपेयी का गांधीवादी समाजवाद विफल हो गया था। इसने उन्हें कट्टर धार्मिक रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर दिया। आडवाणी की रथयात्रा समाज को तोड़ने वाली यात्रा थी। जहां गए वहां नफरत का बीज बोते चले गए थे।

दिग्विजय सिंह ने कहा, मैं सनातन धर्म का अनुयायी हूं, हिंदुत्व का हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। सनातनी परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है। यह सनातनी परंपराओं के ठीक विपरीत है। उन्होंने दावा किया, विनायक दामोदर सावरकर जी कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं थे।

उन्होंने यहां तक कहा था कि गऊ को माता क्यों मानते हो? वह हिंदू को परिभाषित करने के लिए हिंदुत्व शब्द लाए। इससे लोग भ्रम में पड़ गए। आरएसएस अफवाह फैलाने में माहिर है। अब तो सोशल मीडिया के रूप में उन्हें बड़ा हथियार मिल गया है।

उन्होंने कहा, कहा जा रहा है कि हिंदू खतरे में हैं। अरे जनाब 500 साल के मुगलों और मुसलमानों के राज में हिंदू धर्म का कुछ नहीं बिगड़ा, 150 साल के ईसाइयों के शासन में हिंदू का कुछ नहीं बिगड़ा तो अब क्या खतरा है। खतरा उस मानसिकता और उस विचारधारा को है जिसने अंग्रेजों की तरह फूट डालो और राज करो के जरिए राज करने का संकल्प लिया है।

सिंह ने कहा, दुख इस बात का है कि हम लोग भी ‘सॉफ्ट’ हिंदुत्व और ‘हार्ड’ हिंदुत्व के चक्कर में पड़ जाते हैं। उन्होंने कहा, मैं शाहीन बाग की महिलाओं को बधाई देता हूं जिन्होंने अपने अधिकार के लिए अहिंसक आंदोलन चलाया। किसानों को बधाई देता हूं कि वो 11 महीनों से अहिंसक आंदोलन कर रहे हैं। महात्मा गांधी का रास्ता ही इस देश को आगे बढ़ा सकता है।

दिग्विजय सिंह ने जोर देकर कहा, सुलह ही इस देश का रास्ता होना चाहिए। न्यायपालिका ने भी अयोध्या मामले में फैसले से इस सुलह की तरफ इशारा किया है। सनातन धर्म और उसका सर्वधर्म संभाव का विचार ही सुलह का रास्ता है।

चिदंबरम ने कहा, आज हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं कि जब ‘लिंचिंग’ की प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की तरफ से निंदा नहीं की जाती है। एक विज्ञापन को वापस लिया जाता है क्योंकि हिंदू बहू को एक मुस्लिम परिवार में खुशी से रहता हुआ दिखाया गया।

उन्‍होंने अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को लेकर कहा, इस फैसले का कानूनी आधार बहुत संकीर्ण है। बहुत पतली सी रेखा है। लेकिन समय बीतने के साथ ही दोनों पक्षों ने इसे स्वीकार किया। दोनों पक्षों ने स्वीकार किया, इसलिए यह सही फैसला है। ऐसा नहीं है कि यह सही फैसला था, इसलिए दोनों पक्षों ने स्वीकार किया।

उन्होंने कहा कि छह दिसंबर, 1992 को जो हुआ, वह बहुत ही गलत था, इसने हमारे संविधान को कलंकित किया, उच्चतम न्यायालय की अवमानना की और दो समुदायों के बीच दूरी पैदा की। चिदंबरम ने कहा, फैसले के बाद चीजें उसी तरह हुईं जिसका अनुमान था। इसके बाद (बाबरी विध्वंस के) आरोपियों को छोड़ दिया गया। ‘नो वन किल्ड जेसिका’ की तरह ‘नो बडी डिमोलिश्ड बाबरी मस्जिद’।

यह बात हमारा हमेशा पीछा करेगी कि हम गांधी, नेहरू, पटेल और मौलाना आजाद के देश में यह कहते हुए शर्मिंदा नहीं हैं कि ‘नो-बडी डिमोलिश्ड बाबरी मस्जिद’। उन्होंने दावा किया, आज की यही हकीकत है कि हम भले ही धर्मनिरपेक्ष हैं, लेकिन व्यवहारिकता को स्वीकार करते हैं। देश में रोजाना धर्मनिरपेक्षता पर चोट की जा रही है।(भाषा)
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