फैजाबाद। लंबे कानूनी जद्दोजहद और आंदोलनों के बाद गुमनामी बाबा का यहां 'डबल लॉक' में करीब इकतीस वर्षों से बक्सों में रखे सामानों को खोलना शुरू कर दिया गया। गुमनामी बाबा को उनके अनुयायी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस होने का दावा करते हैं, हालांकि अभी तक की हुई किसी भी जांच में इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के 31 मार्च 2013 के आदेश के बावजूद गुमनामी बाबा का सामान अभी तक खोला नहीं गया था। न्यायालय में याचिका दायर करने वाले फैजाबाद के ही शक्तिसिंह का कहना है कि न्यायालय ने बाबा के सामानों को खोलने के साथ ही संग्रहालय में प्रदर्शित किए जाने के भी आदेश दिए थे।
गत 13 फरवरी को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के प्रपौत्र आर्य बोस, प्रपौत्री जयंती रक्षित और उनके पति अमिय रक्षित ने लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात कर गुमनामी बाबा की पहचान सार्वजनिक करने के लिए न्यायिक आयोग के गठन की मांग की थी।
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इस बीच सामानों को खोलने के लिए प्रभारी बनाए गए अपर जिलाधिकारी आरएन शर्मा ने बताया कि गुमनामी बाबा के ट्रेजरी में रखे कुल 24 बक्सों में से तीन को खोला गया। एक बक्से में धार्मिक पुस्तकें निकली हैं जबकि दूसरे में डायरियां और तीसरे में दवाइयां हैं।
शर्मा ने बताया कि डायरियों में अंग्रेजी में लिखा है। उनका कहना था कि बक्सों में रखे सामान सुरक्षित लग रहे हैं। न्यायालय के आदेश के अनुसार सामानों को अयोध्या के राम कथा संग्रहालय में रखवाकर उसका ‘डिस्पले’ किया जाना है, लेकिन यह काम संस्कृति विभाग का है।
शर्मा ने कहा कि संस्कृति विभाग के विशेषज्ञों को लखनऊ से आना है। वे अभी तक नहीं आए हैं, इसलिए इन सामानों को पुन: ट्रेजरी में ही रख दिया जा रहा है। इन सामानों को संग्रहालय में रखवाकर इनके प्रदर्शन के लिए सरकार ने धन की भी व्यवस्था की है।
उन्होंने बताया कि इन सामानों को अयोध्या स्थित नयाघाट में रामकथा संग्रहालय में रखा जाएगा। सामानों की प्रशासन द्वारा वीडियोग्राफी भी कराई गई है। उन्होंने बताया इन सामानों की सूची बना करके रामकथा संग्रहालय को दे दिया जायेगा, जिससे वह अपने यहां रख सकें।
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इस बीच सुभाषचन्द्र बोस राष्ट्रीय विचार केन्द्र के अध्यक्ष शक्ति सिंह ने बताया कि गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी का देहांत 16 सितंबर 1985 को हुआ था। उनके बारे में सन् 2000 में मुखर्जी आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने जांच काफी बारीकी से की थी। उन्होंने बताया कि आयोग किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका था।
उन्होंने बताया कि नेता सुभाषचन्द्र बोस की भतीजी ललिता बोस ने 1986 में उच्च न्यायालय में एक रिट दायर किया था जिसमें कहा गया था कि फैजाबाद के सिविल लाइन में स्थित रामभवन में गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी का सामान कोषागार में रखा जाए, जिससे वह सामान नष्ट नहीं हो सके। इसी आधार पर इन सामानों की सूची बना करके कोषागार में रखवाया गया था। (वार्ता)