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Last Updated : मंगलवार, 23 मई 2023 (17:35 IST)

मुंबई सत्र अदालत का अहम फैसला, सार्वजनिक स्थान पर किया जाना वाला देह व्यापार ही अपराध

मुंबई सत्र अदालत का अहम फैसला, सार्वजनिक स्थान पर किया जाना वाला देह व्यापार ही अपराध - mumbai sessions court important decision regarding prostitution
मुंबई। एक स्थानीय सत्र अदालत ने मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द करते हुए एक आश्रय गृह को उस 34 वर्षीय महिला को रिहा करने का निर्देश दिया जिसे देह व्यापार के आरोप में वहां (आश्रय गृह में) रखा गया था। अदालत ने कहा कि यौन-कार्य को तभी अपराध कहा जा सकता है, जब ऐसा सार्वजनिक स्थान पर किया जाता है और जिससे दूसरों को दिक्कत होती है। इस मामले में अदालत ने महिला को रिहा करने के आदेश जारी किए।
 
मजिस्ट्रेट अदालत ने इस साल 15 मार्च को महिला को देखभाल, सुरक्षा तथा आश्रय के नाम पर मुंबई के आश्रय गृह में 1 साल तक रखने का निर्देश दिया था। इसके बाद महिला ने सत्र अदालत का रुख किया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सी.वी. पाटिल ने मजिस्ट्रेट अदालत के पिछले महीने के आदेश को रद्द कर दिया। मामले पर विस्तृत आदेश हाल ही में जारी किया गया।
 
उपनगरीय मुलुंड में एक वेश्यालय पर छापे के बाद महिला को फरवरी में हिरासत में लिया गया था। इसके बाद आरोपी के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई और उसे 2 अन्य लोगों के साथ मझगांव में एक मजिस्ट्रेट अदालत में पेश किया गया।
 
चिकित्सकीय रिपोर्ट पर गौर करने के बाद मजिस्ट्रेट ने कहा था कि वह बालिग है और उसे आदेश की तारीख से देखभाल, सुरक्षा तथा आश्रय के लिए 1 वर्ष तक देवनार में नवजीवन महिला वसतिगृह में रखा जाए। महिला ने सत्र अदालत में दायर की गई याचिका में किसी भी अनैतिक गतिविधियों में शामिल न होने का दावा किया था।
 
सत्र अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कानून के अनुसार यौन कार्य में शामिल होना अपने आप में कोई अपराध नहीं है, बल्कि सार्वजनिक स्थान पर यौन-कार्य अपराध है जिससे दूसरों को परेशानी हो। अदालत ने कहा कि महिला पर ऐसा कोई आरोप नहीं है कि वह सार्वजनिक स्थान पर देह व्यापार में लिप्त थी।
 
न्यायाधीश ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में महिला को हिरासत में रखना उचित नहीं है। उसके 2 बच्चे हैं और निश्चित तौर पर उन्हें अपनी मां की जरूरत है। अगर महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में रखा गया तो यह निश्चित रूप से पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूमने-फिरने के उसके अधिकार का उल्लंघन होगा। अदालत ने कहा कि इसलिए कानूनी स्थिति और महिला की उम्र को देखते हुए मजिस्ट्रेट अदालत के 15 मार्च के आदेश को रद्द किए जाने और महिला को रिहा करने की जरूरत है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta
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