इटावा। कभी मथुरा की लट्ठमार होली से तुलना की जाने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) संरक्षक मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई की कपड़ा फाड़ होली आज गुजरे जमाने की बात हो चुकी है।
सैफई की कपड़ा फाड़ होली अब सिर्फ यादों में सिमट करके रह गई है, क्योंकि कपड़ा फाड़ की जगह अब फूलों की होली ने ले ली है।
मुलायम की होली का अंदाज ही कुछ निराला है। सैफई में मुलायम के घर के भीतर लान में होली का जश्न सुबह से ही हर साल मनाया जाता रहा है, जहां गांव के लोग होली के जश्न में फाग के जरिए शामिल होते हैं, वहीं पार्टी के छोटे-बड़े राजनेता भी होली के आंनद में सराबोर होने के लिए दूरदराज से आते रहते हैं।
रंगो से दूरी बना चुके मुलायम अब गुलाल और फूलों से होली खेल करके आंनद लेते हैं, इसलिए होली के एक दिन पहले ही कानपुर और आगरा जैसे बड़े महानगरों से खासी तादाद में फूलों को मंगवा लिया जाता है।
संसदीय चुनाव का ऐलान होने के बाद इस बार होली पर रंग के कुछ ज्यादा ही चटक रहने की संभावनाएं बनी हुई हैं।
इसके साथ ही एक बात और भी प्रभावी नजर आती है, क्योंकि मुलायम के अनुज शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन लिया है जिस कारण होली पर शिवपाल और उनके समर्थकों की गैरमौजूदगी भी मुलायम के आंगन में दिख सकती है।
शिवपाल लगातार अपने भतीजे और समाजवादी मुखिया अखिलेश यादव के खिलाफ तीखे बयान तो देते ही रहे हैं, इसके साथ ही पार्टी के महासचिव रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ फिरोजाबाद संसदीय सीट से शिवपाल के ताल ठोक देने से रिश्तों में व्यापक तल्खी आई हुई है।
सैफई में कपड़ा फाड़ होली का क्रेज आज के करीब 22 साल पहले तक काफी हुआ करता था। करीब 22 साल पहले लोगों के कपड़े फटने की वजह से खुद नेताजी ने ही कपड़ा फाड़ने पर रोक लगवा दी, तब से लगातार रोक लगी हुई है लेकिन कोई यह बता पाने कि स्थिति में नहीं है कि यह कपड़ा फाड़ पंरपरा की शुरुआत कब हुई और किसने की।
नेताजी के घर पर के पास बना हुआ तालाब ही होली के उत्साह का सबसे बडा गवाह है, क्योंकि 1989 में मुख्यमंत्री बनने से पहले ही इसी तालाब में खुद नेताजी गांव के बुजुर्गों का डुबो करके होली की शुरुआत करते थे। अब वो दौर सब बदल गया है। कई बार कई अहम राजनेताओं के कपड़े होली के उत्साह में फट गए, जिससे उमंग में खलल पड़ने के बाद इस प्रथा को बदला गया।
मुलायम की एक खासियत है कि वे होली से लेकर दूसरे पंरपरागत त्योहारों को अपने गांव सैफई में अपने परिवार और गांव वालों के बीच ही आकर ही मनाते हैं। इटावा में अब से 35-37 वर्ष पहले यादव बाहुल्य गांवों में फाग जमकर होती थी।
बूढ़े-बड़ों और युवाओं में इसके प्रति न केवल लगाव था, बल्कि होली आने से पहले खेतों पर काम करते, हल चलाते और बुवाई-कटाई करते समय फाग गाने की प्रैक्टिस करते थे, मगर अब इसका शौक कम ही है। अन्य लोकगीतों की तरह फाग गायन विधा भी विलुप्तता की ओर बढ़ने लगी।
देश की राजनीति में खास मुकाम कायम कर चुके मुलायम सिंह यादव अपनी युवा अवस्था से ही फाग गायन के शौकीन रहे। उनके गांव सैफई में फाग की जो टोलियां उठती थीं, उनमें वे शरीक होते थे इसलिए राजनीति में ऊंचाई हासिल करने के बावजूद उन्होंने फाग गायन से मुंह नहीं मोड़ा बल्कि इस गायकी को प्रमुखता देने का बीड़ा उठाया।
अपने हमसंगी सैफई गांव के प्रधान दर्शन सिंह यादव के साथ मुलायम सिंह यादव फाग गाते थे। फाग को भुला न दिया जाए, इसके लिए हर वर्ष सैफई महोत्सव में उनके निर्देश पर दो दिन तक फाग गायन का मुकाबला होता है लेकिन पिछले सालों से परिवारिक विवाद के कारण सैफई महोत्सव का आयोजन नहीं हो सका है। परिणामस्वरूप फाग गायक मायूस बने हुए हैं।
मुलायम के भाई रामगोपाल भी ऐसे ही राजनेताओं में से एक ही है, जो पिछले 40-45 सालों से अपने गांव सैफई मे होली का लुत्फ उठाने के अलावा फाग गाने मे अपने आप को सबसे आगे रखते हैं। रामगोपाल होली पर्व को बेहद ही महत्वपूर्ण मानते हैं।
उनका कहना है कि इस देश में और खासकर उत्तर भारत में होली सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, क्योंकि यह ऐसा अवसर होता है जब फसल किसान के घर आती है। उसकी सारी उम्मीदें उस पर होती हैं और इसमें इतना उल्लास होता है और इसके पीछे एक थ्योरी होती है कि होली के अवसर पर व्यक्ति पिछली सारी लड़ाइयों को, एक-दूसरे झगड़ों को भूलकर गले मिलते हैं और सारे शिकवों को दूर कर देते हैं फॉर गिवेन फॉर गेट...माफ करो और भूल जाओ। इस सिद्धांत के आधार पर ही लोग काम करते हैं तो इस दृष्टि से यह बहुत ही प्रेरणादाई त्योहार तो है ही और पूरे लोगो के बीच मे समन्वय बनाने और समरस्ता बनाने का भी एक त्योहार है।