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Last Updated : मंगलवार, 4 जनवरी 2022 (17:15 IST)

जिन बेटों को सड़क पर ठेला लगाकर पाला, वे ही नहीं आए मां को कांधा देने, 4 बेटि‍यों ने 4 किमी दूर पहुंचाया श्‍मशान, किया अंतिम संस्‍कार

जिन बेटों को सड़क पर ठेला लगाकर पाला, वे ही नहीं आए मां को कांधा देने, 4 बेटि‍यों ने 4 किमी दूर पहुंचाया श्‍मशान, किया अंतिम संस्‍कार - Mother, last rites, daughters accomplish last rites, Orissa,
कहते हैं अंति‍म वक्‍त में मां-बाप को अपनी औलाद का कांधा मिल जाए, तो यह उनके लिए मुक्‍त‍ि का मार्ग प्रशस्‍त कर देता है, लेकिन अगर दुनिया में ऐसी अभागी औलादें भी हैं, जो अपने कुकर्म की वजह से इस पुण्‍य कार्य से वंचित रह जाते हैं।

एक ऐसा ही भावुक कर देने वाला मामले सामने आया है। जब एक 80 साल की मां का निधन हो गया, और मां की मौत की खबर सुनकर भी बेटे उसे कांधा देने नहीं पहुंचे। परिजनों ने, बेटि‍यों ने और रिश्‍तेदारों ने लंबे समय तक इंतजार किया, लेकिन जब बेटे फि‍र भी नहीं पहुंचे तो मृतक मां की 5 बेटि‍यों ने उसे कांधा देकर मां को अंतिम विदाई दी।

यह घटना ओडिशा के पुरी की है। यहां मंगलाघाट की रहने वाली 80 साल की जाति नायक की रविवार को मृत्यु हो गई। उनके 2 बेटे और 4 बेटियां हैं।

मीडि‍या में आई रिपोर्ट के मुताबि‍क पड़ोसियों ने बताया कि मां की मौत होने पर भी दोनों बेटे नहीं आए। काफी इंतजार के बाद भी जब बेटे नहीं पहुंचे तो 4 बेटियों ने ही मां को श्मशान तक ले जाने का फैसला किया। बेटियों ने ही पड़ोसियों की मदद से अर्थी बनाई और उसे लेकर 4 किलोमीटर दूर श्मशान पहुंचीं, इस श्‍मशान घाट का नाम स्वर्ग द्वार है। इसलिए अब लोग कह रहे हैं कि जो काम बेटों को करना चाहिए था, वो अंतत: चार बेटि‍यों ने सदियों की परंपरा को तोडकर किया।

इस घटना का सबसे दुखद पहलू यह है कि मृतक मां ने अपने दोनों बेटों को सड़क पर ठेला लगाकर पाला था। जब पति‍ की मौत हो गई तो मां ने बेहद संघर्ष किया और इन बेटों को पाला था, बावजूद बेटों ने अपना अंतिम कर्म तक नहीं पूरा किया।

मृतका महिला जाति के दामाद ने कहा कि कुछ दिन पहले उनकी सास मिलने आई थीं। उन्होंने तब कहा था, "तुम ही मेरे बड़े बेटे हो, क्योंकि मेरा कोई भी बेटा मेरा ध्यान नहीं रखता है। कई सालों से वे मुझे देखने भी नहीं आए।"
जाति की बेटी सीतामणि साहू ने कहा कि हमारे भाई पिछले 10 साल से मां का ध्यान नहीं रख रहे हैं। कभी भी भाइयों ने मां को साथ नहीं रखा।

इतने साल में एक बार भी उन्होंने यह नहीं पूछा कि मां ठीक हैं या नहीं। मां अकेले ही अपना ध्यान रखती थीं। मौत से कुछ दिन पहले वे बीमार पड़ी थीं। हम उन्हें एंबुलेंस से अस्पताल लेकर गए और भर्ती कराया। तब भी हमारे भाई मां को देखने नहीं आए।
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