History of christmas in hindi: क्रिसमस मनाना कब से प्रारंभ हुआ इस संबंध में मतभेद हो सकते हैं परंतु अधिकतर विद्वानों के अनुसार तो तभी से क्रिसमस मनाया जा रहा है जब से यीशु मसीहा स्वर्ग को चले गए थे। आओ जानते हैं ईसाई धर्म के त्योहार क्रिसमस के इतिहास के बारे में रोचक जानाकरी।
1. कहते हैं कि ईश्वर के दूत ग्रैबियल ने एक युवती मैरी को जाकर कहा कि तुम ईश्वर के पुत्र को जन्म दोगी। यह सुनकर मैरी ने चौककर कहा कि यह कैसे संभव होगा। तब ग्रैबियल ने कहा कि ईश्वर सब ठीक करेगा। फिर जब समय बिता तो मैरी का विवाह नाजरथ के जोसेफ नाम के एक युवक से हुआ। मैरी किसी चमत्कार से गर्भवती हो गई और फिर एक दिन जब मैरी और जोसफ दोनों किसी कारण से नाजरथ से बेथलहम गए थे तो वहां पर उन दिनों बहुत से लोग आए हुए थे जिस कारण सभी धर्मशालाएं और शरणालय भरे हुए थे जिससे जोसेफ और मैरी को अपने लिए शरण नहीं मिल पाई। तब बड़ी मुश्किल से उन्हें एक अस्तबल में जगह मिली और उसी स्थान पर आधी रात के बाद प्रभु यीशु का जन्म हुआ।
अस्तबल के निकट कुछ गडरिए अपनी भेड़ें चरा रहे थे, वहां ईश्वर के दूत प्रकट हुए और उन गडरियों को प्रभु यीशु के जन्म लेने की जानकारी दी। गडरिए उस नवजात शिशु के पास गए और उसे नमन किया। कहते हैं कि यह दिन 6 ईसा पूर्व 25 दिसंबर का था। तभी से क्रिसमय मनाया जाने लगा।
2. इतिहासकार कहते हैं कि ईसा का जन्मदिवस कब से मनाया जाने लगा यह अज्ञात है परंतु जन्म स्थान पर 333 ईस्वी में एक बेसिलिका बनाई गई थी। उसके बाद वहां क्रिसमय मानाने के लिए आने लगे। फिर यहां पर सबसे पहले 339 ईस्वी में एक चर्च पूरा किया गया। जिसे द चर्च ऑफ द नैटिविटी कहा जाने लगा।
3. 25 दिसंबर को उस दौर में रोमन लोग सूर्य उपासना का त्योहार मनाते थे। कहते हैं कि बाद में जब ईसाई धर्म का प्रचार हुआ तो कुछ लोग ईसा को सूर्य का अवतार मानकर इसी दिन उनकी पूजन करने लगे मगर इसे उन दिनों मान्यता नहीं मिल पाई। फिर बाद में इसी दिन को कब उनका जन्म दिवस घोषित कर दिया गया इस पर मतभेद है।
4. चौथी शताब्दी में उपासना पद्धति पर चर्चा शुरू हुई और पुरानी लिखित सामग्री के आधार पर उसे तैयार किया गया। 360 ईस्वी के आसपास रोम के एक चर्च में ईसा मसीह के जन्मदिवस पर प्रथम समारोह आयोजित किया गया, जिसमें स्वयं पोप ने भी भाग लिया मगर इसके बाद भी समारोह की तारीख के बारे में मतभेद बने रहे।
5. इतिहासकारों के अनुसार रोमन काल से ही दिसंबर के आखिर में पैगन परंपरा के तौर पर जमकर पार्टी करने का चलन रहा है। यही चलन ईसाइयों ने भी अपनाया और इसे नाम दिया 'क्रिसमस'। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के हवाले से कुछ लोग यह भी कहते हैं कि चर्च के नेतृत्व कर्ता लोगों ने यह तारीख शायद इसलिए चुनी ताकि यह उस तारीख से मेल खा सके, जब गैर-ईसाई रोमन लोग सर्दियों के अंत में 'अजेय सूर्य का जन्मदिन मनाते' थे।'
6. यह भी कहा जाता है कि यहूदी धर्मावलंबी गडरिए प्राचीनकाल से ही 8 दिवसीय बसंतकालीन उत्सव मनाते थे। ईसाई धर्म के प्रचार के बाद इस उत्सव में गड़रिए अपने जानवरों के पहले बच्चे की ईसा के नाम पर बलि देने लगे और उन्हीं के नाम पर भोज का आयोजन करने लगे। हालांकि यह समारोहर पहले गड़रियों तक ही सीमित था।
7. उन दिनों पैंगन, रोमन और गडरियों के पर्व के अवा कुछ अन्य समारोह भी आयोजित किए जाते थे, जिनकी अवधि 30 नवंबर से 2 फरवरी के बीच में होती थी। जैसे नोर्समेन जाति का यूल पर्व और रोमन लोगों का सेटरनोलिया पर्व।
8. कहते हैं कि तीसरी शताब्दी में ईसा मसीह के जन्मदिन पर भव्य समारोह करने पर ईसाई धर्माधिकारियों ने गंभीरता से विचार-विमर्श किया और यह तय किया गया कि बसंत ऋतु का ही कोई दिन इस समारोह के लिए तय किया जाए। इसके बाद 28 मार्च और फिर 19 अप्रैल के दिन निर्धारित किए गए। बाद में इसे भी बदलकर 20 मई कर दिया गया। इस संदर्भ में बाद में 8 और 18 नवंबर की तारीखों के भी प्रस्ताव रखे गए।
9. फिर चौथी शताब्दी में रोमन चर्च तथा सरकार ने संयुक्त रूप से 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिवस घोषित कर दिया और तभी से क्रिसमय मनाया जाने लगा। हालांकि इसके बावजूद इसे प्रचलन में आने में लंबा समय लगा।
10. पहले इस समारोह में पूर्व में मनाए जाने वाले अन्य जातियों के उत्सव इनके साथ घुले-मिले रहे और बाद में भी उनके कुछ अंश क्रिसमस के पर्व में स्थायी रूप से जुड़ गए। हालांकि इस तारीख को ईसा की जन्मभूमि में पांचवीं शताब्दी के मध्य में स्वीकार किया गया।
11. 13वीं शताब्दी में जब प्रोटस्टेंट आंदोलन शुरू हुआ तो इस पर्व पर पुनः आलोचनात्मक दृष्टि डाली गई और यह महसूस किया गया कि उस पर पुराने पैगन धर्म का काफी प्रभाव शेष है। इसलिए क्रिसमस केरोल जैसे भक्ति गीतों के गाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और 25 दिसंबर 1644 को इंग्लैंड में एक नया कानून बना, जिसके अंतर्गत 25 दिसंबर को उपवास दिवस घोषित कर दिया गया।
12. बोस्टन में 1690 में क्रिसमस के त्योहार को प्रतिबंधित ही कर दिया गया। 1836 में अमेरिका में क्रिसमस को कानूनी मान्यता मिली और 25 दिसंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया। इससे विश्व के अन्य देशों में भी इस पर्व को बल मिला।
12. बाद में इस पर्व में योरप, रशिया और अन्य देशों की परंपरा का प्रभाव पड़ा और इस पर्व के साथ वृक्ष सजाने, सांता क्लॉज और जिंगल बेल के साथ ही गिफ्ट एवं कार्ड देने का प्रचलन भी प्रारंभ हुआ।
13. बाद में इस पर्व के साथ कई दंतकथाएं भी जुड़ गईं। 1821 में इंग्लैंड की महारानी ने एक 'क्रिसमस वृक्ष' बनवाकर बच्चों के साथ समारोह का आनंद उठाया था। उन्होंने ही इस वृक्ष में एक देव प्रतिमा रखने की परंपरा को जन्म दिया। बधाई के लिए पहला क्रिसमस कार्ड लंदन में 1844 में तैयार हुआ और उसके बाद क्रिसमस कार्ड देने की प्रथा 1870 तक संपूर्ण विश्व में फैल गई।