हरियाणा में जीती बाजी कैसे हार गई कांग्रेस, सत्ता की हैट्रिक की ओर भाजपा
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद चौंकाने वाले है। पोस्टल बैलेट की मतगणना में हरियाणा में जहां कांग्रेस बड़ी जीत हासिल करती हुई दिख रही थी वहीं ईवीएम खुलते ही भाजपा ने तगड़ी वापसी करते हुए अब बड़ी जीत हासिल करते हुए लगातार तीसरी बार जीत हासिल कर सत्ता की हैट्रिक लगाते हुए दिख रही है। भाजपा ने 10 साल की एंटी इंकम्बेंसी की काट करते हुए बहुमत के आंकडे को पार कर सभी सियासी पंडितों को चौंका दिया है।
कांग्रेस की रणनीतिक चूक-हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण उसकी रणनीतिक चूक रही है। हरियाणा में कांग्रेस अकेले विधानसभा चुनाव में उतरी जिससे विपक्ष के वोटरों में बिखराव हो गया और पार्टी सरकार में आते-आते चूक गई। हरियाणा में कांग्रेस की हार इसलिए बड़ी है क्यों पार्टी राज्य में 10 साल की भाजपा सरकार के खिलाफ उपजी एंटी इंकम्बेंसी का फायदा उठाने से चूक गई।
हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की अटकलें नामांकन भरने के आखिरी दिन तक चलती रही लेकिन दोनों के बीच गठबंधन नहीं हुआ। इस तरह चुनाव में दलित वोटरों में बिखराव को रोकने के लिए कांग्रेस की चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के साथ गठबंधन की खूब चर्चा रही लेकिन गठबंधन नहीं हुआ और चंद्रशेखर आजाद चुनाव में जेजेपी के साथ चले गए और चुनाव में दलित वोटरों में बिखराव हो गया।
कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच आपसी लड़ाई-हरियाणा में पूरे विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के बड़े नेता आपस में लड़ते हुए दिखाई दिए। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा औऱ पार्टी की सांसद कुमारी शैलजा के बीच सीट बंटवारे से लेकर मुख्यमंत्री के चेहरे तक सीधी लड़ाई देखने को मिली। कुमारी शैलजा ने जिस तरह से पार्टी के प्रचार अभियान से दूरी बनाई उसका नुकसान कांग्रेस को चुनाव में उठाना पड़ा।
चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने कुमारी शैलजा की नाराजगी को मुद्दा बनाते हुए अपने पक्ष में खूब भुनाया। भाजपा ने कुमारी शैलजा की नाराजगी को राज्य की दलित बेटी का अपमान बताते हुए इसके अपने पक्ष में खूब भुनाया। भाजपा ने कुमारी शैलजा को पार्टी में शामिल होने का ऑफर भी दे दिया है। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की आपसी लड़ाई का नतीजा चुनाव के दौरान भीतरघात के रूप में देखने को मिला और चुनाव में विरोधी गुट के नेताओं ने एक दूसरे को निपटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
भाजपा ने साधा जातीय समीकरण-हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का प्रमुख कारण उसका चुनाव में जातीय समीकरण साधना है। भाजपा हरियाणा चुनाव में ओबीसी वोटर्स को साधने का काम किया। चुनाव से करीबी एक साल पहले भाजपा हाईकमान ने मनोहर लाल खट्टर को हटाकर ओबीसी वर्ग से आने वाले नायाब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया। सैनी समुदाय की आबादी राज्य में पांच फीसदी है। पार्टी के इस कदम को ओबीसी समुदाय को एक जुट करने और मनोहर लाल खट्टर की खिलाफ सत्ता विरोध लहर को कम करने के तौर पर देखा गया।
हरियाणा में ओबीसी समुदाय की आबादी 40 फीसदी है। चुनाव से पहले भाजपा ने प्रमुख ओबीसी नेताओं को पार्टी में शामिल कराया। गैर जाट वोटर्स को साधने के लिए भाजपा ने टिकट वितरण में भी एक सांमजस्य बनाने की कोशिश की। वहीं भाजपा ने जाट समुदाय को साधने के लिए मनोहर लाल खट्टर को केंद्र सरकार में मंत्री पद से नवाजा और जाटों की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की। चुनाव नतीजे बताते है कि जाट समुदाय का वोटर्स भाजपा के साथ रहा।
परिवारवाद और भ्रष्टाचार का मुद्दा कांग्रेस पर भारी-हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने परिवारवाद और भ्रष्टाचार के मुद्दें को खूब उठाया। भाजपा ने चुनाव प्रचार में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के परिवार को निशाना बनाया। पार्टी ने लगातार कांग्रेस को परिवारवाद के मुद्दे पर घेरा। भाजपा ने कांग्रेस के परिवारवाद के साथ ही कांग्रेस राज भ्रष्टाचार के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया था। चुनाव प्रचार के खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस राज्य में भ्रष्टाचार के मुद्दें को उठाते हुए अक्रामक चुनाव प्रचार किया। प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार के दौरान हुड्डा परिवार से लेकर गांधी परिवार को परिवारवाद और भ्रष्टाचार के मुद्दें पर जमकर निधाना साधा।