रांची/पटना। अविभाजित बिहार सरकार में 1996 में 950 करोड़ रुपए के चारा घोटाले का खुलासा हुआ। वर्ष 2000 में बिहार से अलग कर झारखंड राज्य के गठन के बाद 61 में से 39 मामले नए राज्य हस्तांतरित कर दिया गया। मामले में 20 ट्रकों पर भरे दस्तावेज थे। मामले में एक विशेष सीबीआई अदालत ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालूप्रसाद को दोषी करार दिया गया।
मामले के घटनाक्रम इस प्रकार हैं : जनवरी, 1996 : चाईबासा के उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग में छापेमारी की जिसके बाद चारा घोटाले का खुलासा हुआ।
मार्च, 1996 : पटना उच्च न्यायालय ने सीबीआई से चारा घोटाले की जांच करने को कहा। सीबीआई ने चाईबासा (अविभाजित बिहार में) कोषागार से अवैध निकासी मामले में प्राथमिकी दर्ज की।
जून, 1997 : सीबीआई ने आरोपपत्र दायर किया, लालू प्रसाद को आरोपी के तौर पर नामजद किया।
जुलाई, 1997 : लालू ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया गया। सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया। न्यायिक हिरासत में भेजे गए।
अप्रैल, 2000 : राबड़ी को भी मामले में आरोपी बनाया गया लेकिन उन्हें जमानत दे दी गई।
अक्टूबर 2001: उच्चतम न्यायालय ने बिहार के विभाजन के बाद मामला झारखंड उच्च न्यायालय को हस्तांतरित किया।
फरवरी 2002 : झारखंड में विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई।
दिसंबर 2006 : पटना की एक निचली अदालत ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में लालू और राबड़ी को बरी किया।
मार्च, 2012 : लालू और जगन्नाथ मिश्रा के खिलाफ आरोप तय किए गए।
सितंबर 2013 : एक दूसरे चारा घोटाला मामले में लालू, मिश्रा और 45 अन्य दोषी करार दिए गए। लालू को रांची की जेल में भेजा गया और लोकसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराया गया, चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई।
दिसंबर 2013 : उच्चतम न्यायालय ने लालू को जमानत दी।
मई 2017 : उच्चतम न्यायालय के 8 मई के आदेश के बाद सुनवाई दोबारा शुरू हुई। उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत से देवघर कोषागार से अवैध निकासी मामले में उनके खिलाफ अलग से मुकदमा चलाने को कहा।
23 दिसंबर 2017 : सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू और 17 अन्य को दोषी करार दिया। लालू को अब 6 में से दो मामलों में दोषी करार दिया जा चुका है।
(भाषा)