-विजेंदर रेड्डी मुथियला
दिल्ली जैसे शहरों में जहां वायु प्रदूषण बहुत अधिक है, एयर प्यूरीफायर की अत्यधिक मांग देखी जा रही है। अब यह एक विकल्प नहीं रहा, बल्कि एक आवश्यकता बन गई है। इसी प्रकार वर्तमान में जिस दर से पर्यावरण की स्थिति बिगड़ी है इससे वॉटर प्यूरीफायर एक लक्ज़री वस्तु की तुलना में एक ज़रूरत ज़्यादा बन गई है। पानी को सूर्य प्रकाश के नीचे रखने से लेकर, अनेक कदमों वाले आधुनिक इलेक्ट्रिक मल्टी-स्टेप वॉटर फिल्टर तक, टेक्नोलॉजी ने एक लंबा रास्ता तय किया है। गुरुत्वाकर्षण पर आधारित आसान वॉटर प्यूरीफायर से लेकर आरओ, यूवी फिल्टर्स तक, बाज़ार में कई प्रकार के विकल्प मौजूद हैं।
लेकिन वॉटर प्यूरीफायर क्यों लाना ज़रूरी है? क्या पानी को उबालने की वर्षों पुरानी पद्धति पर्याप्त नहीं है?
भले ही ज़्यादातर बैक्टीरिया उबलते हुए पानी में जीवित नहीं रह सकते हों, लेकिन जब तुलना वॉटर प्यूरीफायर के साथ की जाती है तो इसका प्रभावीपन अत्यधिक रूप से बदलता है। सबसे पहली बात, पानी को उबालने से निम्नलिखित चीज़ें नहीं होती हैं :
इम्पैक्ट टीडीएस स्तर : टीडीएस का मतलब है आपके पानी में पूरी तरह विघटित ठोस पदार्थ। यह आपके पानी की गुणवत्ता का मापन करने के कई तरीकों में से एक है। टीडीएस में कार्बनिक पदार्थ और अकार्बनिक नमक जैसे कैल्शियम, मैग्नेशियम आदि शामिल हो सकते हैं। हालांकि जब इसमें लेड, फ्लूराइड, आर्सेनिक इत्यादि पदार्थ पाए जाते हैं तो इसे खतरनाक माना जाता है। पानी को उबालने के बावजूद ये प्रदूषक तत्व आपके पानी में शेष रह जाते हैं।
टीडीएस स्तर को सुरक्षित माना जाता है जब यह 50-150 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) की सीमा में होता है। बेंगलुरु के वाइटफील्ड, इलेक्ट्रॉनिक सिटी और एचएसआर जैसे इलाकों में टीडीएस के स्तर में 100-1000 पीपीएम के बीच उतार-चढ़ाव रिकॉर्ड किया गया है! यह स्वीकार करने योग्य मानकों से भी बहुत अधिक है और यदि नियमित रूप से इसका सेवन किया जाए तो स्वास्थ्य की अनेक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
इतना ही नहीं, पानी उबालने से पानी का वाष्पीकरण होता है। इससे पानी का अनुपात अशुद्धता में परिवर्तित हो जाता है। इसका मतलब यह है कि आपके पानी को उबालने के बाद भी टीडीएस उबालने के पहले से भी अधिक है!
भारी धातुओं को हटाएं या रासायनिक दूषित पदार्थों पर प्रक्रिया करें : भले ही आप लंबे समय तक पानी को गर्म कर लें, इसमें फिर भी भारी धातु और रासायानिक पदार्थ मौजूद रहते हैं। आजकल सबसे सामान्य रूप से पाए जाने वाले भारी धातु हैं ज़िंक, मर्क्यूरी, आर्सेनिक इत्यादि। आज भारत में सबसे बड़ी चिंता का विषय है भू-जल में यूरेनियम का प्रदूषण।
पूरी दुनिया में भू-जल के सबसे बड़े उपयोगकर्ता होने के करण इससे कई लोगों के लिए खतरा पैदा हो जाता है। भू-जल को प्रदूषित करने वाला पदार्थ है आर्सेनिक, जो एक कैंसर पैदा करने वाला पदार्थ भी है। गंगा नदी में आर्सेनिक की मात्रा पिछले 5 वर्षों में 145 फीसदी बढ़ी है। बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के भू-जल में आर्सेनिक उच्च मात्रा में पाया जाता है। जब पानी को उबाला जाता है तो यह सभी धातु एकत्रित हो जाते हैं।
रासायनिक प्रदूषक पदार्थों में शामिल हैं ब्लीच, औद्योगिक बहिस्त्राव, कीटनाशक इत्यादि। इन पर उबलते पानी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसे पानी से खराब स्वाद के अलावा अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के साथ पाचन मार्ग की समस्या, संक्रमण और त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। यह साबित करता है कि उबाले गए पानी को केवल तब प्रभावी माना जा सकता है, जब छानने की क्रिया के साथ अन्य पद्धतियों को मिलाया जाए। यह बहुत थका देने वाला काम है, क्योंकि आपको पानी लंबे समय तक उबालना होगा, इसके ठंडा होने की प्रतीक्षा करनी होगी और अन्य विधियों का उपयोग करना होगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ज़्यादातर प्रदूषक पदार्थों को दूर कर इसे शुद्ध बनाया गया है।
हमारे सभी पूर्वजों ने पानी उबालने पर विश्वास जताया है और अधिकतर ग्रामीण इलाकों में आज भी यह शुद्धिकरण की एक प्रमुख पद्धति के रूप में जारी है। हालांकि आज हमारे लिए उपलब्ध पानी नए युग के प्रदूषक पदार्थों द्वारा प्रदूषित है और यही वजह है कि हम स्वच्छ, सुरक्षित एवं सेहतमंद पीने के पानी के लिए पानी उबालने की प्रक्रिया पर निर्भर नहीं रह सकते।
एक गुणवत्तापूर्ण वॉटर प्यूरीफायर का उपयोग करना इस ज़्यादा समय लेने वाली और बेअसर प्रक्रिया को टालने का एक आसान तरीका है। कस्टमाइज़ किए गए फिल्टर्स के साथ एक वॉटर प्यूरीफायर आपके समय और ऊर्जा की बचत कर सकता है और हर समय पीने के लिए शुद्ध पानी उपलब्ध कर सकता है! (लेखक ड्रिंकप्राइम के सह-संस्थापक एवं सीईओ हैं। यह उनके निजी विचार हैं। वेबदुनिया का उनसे सहमत होने जरूरी नहीं है।)