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Last Updated : मंगलवार, 16 जनवरी 2018 (23:22 IST)

सेना को मिलेंगी लगभग पौने दो लाख राइफलें और कार्बाइन

सेना को मिलेंगी लगभग पौने दो लाख राइफलें और कार्बाइन - Indian Army, Carbine, Defense Purchase Council
नई दिल्ली। पिछले कुछ महीनों से सीमा पार से दबाव बनाने के लिए हो रही कोशिशों के बीच सरकार ने सेना की मारक क्षमता बढ़ाने तथा उसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने के लिए लगभग 3550 करोड़ रुपए की लागत से बड़ी संख्या में असाल्ट राइफलों और कार्बाइनों की खरीद को मंजूरी दी है।


रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में मंगलवार को यहां हुई रक्षा खरीद परिषद की बैठक में सेना की जरूरतों को देखते हुए यह खरीद फास्ट ट्रेक आधार पर करने का निर्णय लिया गया। इसे लगभग एक साल में पूरा कर लिया जाएगा।

रक्षा सूत्रों के अनुसार, इस सौदे में सीमा पर अग्रिम मोर्चों पर तैनात जवानों के लिए 72 हजार 400 असाल्ट राइफलें तथा 93 हजार 895 क्लोज क्वार्टर कार्बाइनों की खरीद की जाएगी। रक्षा सूत्रों के अनुसार, राइफलों और कार्बाइन की खरीद पर 3547 करोड़ रुपए की लागत आएगी।

परिषद ने इसके साथ ही रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया की प्रक्रिया को भी सरल बनाने के कदम उठाए हैं। लंबे समय से छोटे हथियारों की कमी का सामना कर रही सेना को सरकार के इस निर्णय से काफी मजबूती मिलेगी और इससे सीमा पर सेना की मारक क्षमता तथा ताकत बढ़ेगी। असाल्ट राइफलों की खरीद इन्फेंट्री के लिए, जबकि कार्बाइन की खरीद आतंकवादरोधी अभियानों के लिए की जा रही है।

अभी भारतीय सेना दो दशक से भी लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही इंसास राइफलों का इस्तेमाल कर रही है। नई राइफलें 7.62 कैलिबर की होंगी और इनकी मारक क्षमता कहीं अधिक होगी। कार्बाइनों को एके-47 असाल्ट राइफलों की जगह खरीदा जा रहा है और ये हल्की होने के साथ-साथ लगभग 200 मीटर तक मार करने में सक्षम होंगी।

भारतीय सेना की जरूरत अभी कई लाख राइफलों और कार्बाइनों की है लेकिन इसे चरणबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्णय लिया गया है। बैठक में रक्षा क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया 'कार्यक्रम के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के साथ निजी क्षेत्र को भी बढ़ावा देने के लिए रक्षा खरीद प्रक्रिया में भी बड़े बदलाव करने तथा इसे सरल बनाने का भी निर्णय लिया गया। नए बदलावों में इस प्रक्रिया को उद्योग जगत के अनुकूल बनाया गया है और इसमें सरकार के नियंत्रण को भी कम किया गया है।

नए नियमों के अनुसार, रक्षा मंत्रालय अब उद्योग जगत के प्रस्तावों का स्वत: संज्ञान ले सकेगा और स्टार्टअप कंपनियों को भी सेनाओं की जरूरतों के अनुसार उपकरण विकसित करने की अनुमति देगा। मेक इन इंडिया परियोजनाओं में शामिल होने के मानदंडों में भी कुछ ढील दी गई है।

एक बड़ा बदलाव यह भी किया गया है कि अब सभी विक्रेताओं को विस्तृत परियोजना रिपोर्ट दिए बिना ही प्रोटोटाइप विकास प्रक्रिया में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी। रक्षा खरीद परिषद से मंजूरी मिलने के बाद सभी मंजूरी सेनाओं के मुख्यालयों के स्तर पर दी जा सकेगी।

एक महत्वपूर्ण बदलाव यह भी किया गया है कि परियोजना को मंजूरी मिलने के बाद इसे बंद नहीं किया जाएगा, लेकिन यदि विक्रेता प्रक्रिया के विपरीत कुछ गड़बडी करता है तो परियोजना के बारे में निर्णय अलग से लिया जाएगा। (वार्ता)
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