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Last Updated : गुरुवार, 30 जून 2022 (23:41 IST)

शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवसेना की राहें कितनी मुश्किल? पार्टी बचा पाएंगे उद्धव?

शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवसेना की राहें कितनी मुश्किल? पार्टी बचा पाएंगे उद्धव? - How difficult is the path of Shiv Sena after Shinde became the Chief Minister? What a challenge in front of Uddhav
नई दिल्ली। एकनाथ शिंदे की बगावत और इसके परिणामस्वरूप उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद शिवसेना अब राजनीतिक दोराहे पर है। शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के 2012 में निधन के बाद पार्टी के समक्ष यह पहली बड़ी चुनौती है। पार्टी से बगावत करने वाले नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री के तौर पर शिव सैनिक पसंद कर सकते हैं, जिससे मुख्य पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
बुधवार रात को पार्टी नेता उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा की और कहा कि वे सेना भवन में पार्टी के कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे और संकेत दिए कि बगावत के चलते उन्होंने जो खोया है उसे फिर से हासिल करने की कोशिश करेंगे।
शिवसेना के 56 वर्षों के इतिहास में पार्टी के भीतर कई बार बगावतें हुई हैं और पार्टी के दिग्ग्गज नेताओं छगन भुजबल (1991), नारायण राणे (2005) और राज ठाकरे (2006) ने पार्टी छोड़ी हैं, लेकिन इस बार एकनाथ शिंदे की अगुवाई में हुई बगावत ने पार्टी को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया और उद्धव ठाकरे नीत सरकार गिर गई।
 
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा का चुनाव जीता और स्वयं को हिन्दुत्व के एकलौते संरक्षक के तौर पर स्थापित किया, वहीं से शिवसेना के पतन की कहानी शुरू हो जाती है।
जब शिवसेना ने पुराना गठबंधन समाप्त करते हुए 2019 में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर महाविकास आघाड़ी सरकार बनाई तो इससे भाजपा क्रोधित हुई थी। राज्य सरकार के एक नेता ने स्वीकार किया कि शिवसेना के गढ़ कहे जाने वाले ठाणे, कोंकण और मराठवाड़ा क्षेत्रों में बगावत से असर पड़ा है।
 
राजनीतिक विश्लेषक वेंकटेश केसरी कहते हैं कि जब भाजपा हिन्दुत्व की एकलौती संरक्षक के तौर पर स्थापित हुई, तभी से शिवसेना के दिन कम होने शुरू हो गए थे। बस ये ही देखना था कि इसका पतन कैसे होता है लड़ते हुए या घिसते हुए।
वरिष्ठ पत्रकार एवं कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य कुमार केतकर ने कहा कि महाराष्ट्र में शतरंज की बिसात बदल गई है। हो सकता है कि उद्धव तत्काल नहीं जीतें लेकिन उद्धव के साथ बालासाहेब की पहचान रहेगी जो उत्तराधिकारी होंगे और शिंदे को विश्वासघात करने वाले विद्रोही के रूप में देखा जाएगा। केसरी ने कहा कि भाजपा अपनी दीर्घकालिक योजनाएं बना रही हैं और वह चाहती है कि हिन्दुत्व के मुद्दे पर उसका एकाधिकार रहे। (भाषा)