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Last Updated : बुधवार, 30 अक्टूबर 2019 (16:57 IST)

इतिहास के आईने में अयोध्या, तब से अब तक

history of ayodhya | इतिहास के आईने में अयोध्या, तब से अब तक
अयोध्या में विवादित स्थल पर मालिकाना हक से जुड़े केस में सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई चल रही है। 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले से असंतुष्ट सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और शीर्ष अदालत ने 2011 में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। आखिर क्या है अयोध्या के बारे में धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं और किस तरह हुई इस विवाद की शुरुआत। 
 
सबसे पहले जानते हैं ‍अयोध्या के पौराणिक इतिहास और मान्यताओं के बारे में। अयोध्या को पौराणिक इतिहास में प्राचीन भारत की पवित्र सप्त पुरियों में शामिल किया गया है। अथर्ववेद में इसे ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अयोध्या में कई महान योद्धा, ऋषि-मुनि और अवतारी पुरुष हो चुके हैं। भगवान राम ने भी यहीं जन्म लिया था। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 वर्षों तक निवास किया था।
 
सरयू नदी के तट पर बसे अयोध्या नगर की स्थापना रामायण के अनुसार विवस्वान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु द्वारा की गई थी। माथुर ब्राह्मणों के इतिहास के अनुसार वैवस्वत मनु लगभग 6673 ईसा पूर्व हुए थे। ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ और कश्यप से विवस्वान का। इसी वंश में राजा दशरथ उत्पन्न हुए, 
 
वैवस्वत मनु के 10 पुत्रों में से एक इक्ष्वाकु थे। इक्ष्वाकु कुल में ही आगे चलकर भगवान श्रीराम हुए। अयोध्या पर महाभारत काल तक इसी वंश के राजाओं का शासन रहा। रघु के बाद की पीढ़ी को रघुवंशी भी कहा गया है। 
 
वाल्मीकि कृत रामायण के बालकांड में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी। सातवीं सदी में चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसे 'पिकोसिया' भी कहा है। आईन-ए-अकबरी के अनुसार इस नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस मानी गई है। 
ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी गई, लेकिन उस दौर में भी श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व सुरक्षित रहा। बाबर के सेनापति मीर बांकी ने 1528 में यहां आक्रमण किया और वहां मस्जिद का निर्माण करवाया। ऐसा कहा जाता है कि मस्जिद निर्माण के लिए मीर बांकी ने राम जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़ दिया था। 
 
अब नजर डालते हैं इससे जुड़े विवाद पर। विवाद की शुरुआत 1853 में हुई जब इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए। 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी और मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की अनुमति दी गई। फरवरी 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर कर मंदिर बनाने की इजाजत मांगी, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली। 
 
असली विवाद तब शुरू हुआ जब 23 दिसंबर 1949 को भगवान राम और लक्ष्मण की मूर्तियां विवादित स्थल पर पाई गईं। उस समय हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों का आरोप था कि रात में चुपचाप किसी ने मूर्तियां रख दी हैं। उस वक्त यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट नायर ने विवाद बढ़ने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। 
 
उस समय सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया। 16 जनवरी 1950 को गोपालसिंह विशारद नामक व्यक्ति ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने याचिका दाखिल कर यहां पूजा की इजाजत मांगी, जो कि उन्हें मिल गई, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल की। 1984 में मंदिर बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया।
 
फैजाबाद के जज ने 1 फरवरी 1986 को जन्मस्थान का ताला खुलवाने और हिन्दुओं को पूजा करने का अधिकार देने का आदेश दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। 
 
1990 में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए एक रथयात्रा शुरू की, लेकिन उन्हें बिहार में ही गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद देश में हिन्दुओं के समर्थन में माहौल बन गया। यूपी के तत्कालीन मुख्‍यमंत्री कल्याणसिंह ने विवादित स्थान की सुरक्षा का हलफनामा दिया, लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने ढांचे को गिरा दिया। देश भर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़के गए, जिनमें करीब 2000 लोग मारे गए।
 
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2003 में झगड़े वाली जगह पर खुदाई करवाने के निर्देश दिए ताकि पता चल सके कि क्या वहां पर कोई राम मंदिर था। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश पारित कर अयोध्या की भूमि को 3 हिस्सों में बांट दिया। अयोध्या मामले में आगे क्या होगा यह अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही तय होगा।