• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Greece will become the gateway to Europe for India
Written By Author राम यादव
Last Updated : बुधवार, 30 अगस्त 2023 (07:43 IST)

ग्रीस बनेगा भारत के लिए यूरोप का प्रवेश द्वार

ग्रीस बनेगा भारत के लिए यूरोप का प्रवेश द्वार - Greece will become the gateway to Europe for India
Narendra Modi: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 25 अगस्त की ग्रीस (यूनान) यात्रा 40 वर्षों के अंतराल के बाद किसी भारतीय शीर्ष नेता की पहली यात्रा या किसी शिष्टाचार यात्रा से कहीं अधिक दूरगामी महत्व की पहल थी। दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से सीधे ग्रीस पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने वहां पहुंचने से कुछ दिन पहले ही राजधानी एथेंस से प्रकाशित होने वाले वहां के दैनिक 'काथिमेरिनी' को इंटरव्यू दिया था। इस इंटरव्यू में उन्होंने दोनों पक्षों के दांव पर लगे वास्तविक हितों को रेखांकित किया था।
 
ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस से उनकी मुलाकात से पहले ही इस दैनिक ने प्रधानमंत्री मोदी को उद्धृत करते हुए लिखा कि वे ग्रीस को 'भारत के लिए यूरोपीय संघ और पूर्वी यूरोपीय क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक तार्किक और रणनीतिक प्रवेश द्वार' के रूप में देखते हैं।
 
इंटरव्यू में मोदी ने अपने मेज़बान की आर्थिक नीतियों की प्रशंसा करते हुए कहा है कि उन्होंने ग्रीस को एक अशांत जगह से 'यूरोप के एक उज्ज्वल क्षेत्र' में बदल दिया है। इससे भारत के लिए भी जिसकी कंपनियां विदेशों में निवेश के अवसरों की हमेशा तलाश में रहती हैं, नए रास्ते खुलते हैं। उन्हें आशा है कि ग्रीक और भारतीय कंपनियां एक मूल्यवर्धन कड़ी बनाने और यूरोपीय बाजार से जुड़ने के लिए ग्रीस के 'रणनीतिक भूगोल' का भरपूर उपयोग करेंगी।
 
भारत चाहता है बंदरगाह सुविधा : प्रधानमंत्री मोदी का इशारा ग्रीस के जिस भौगोलिक महत्व की ओर था, उससे जुड़ा एक बहुचर्चित नाम है पीरेयुस बंदरगाह। मिस्र की स्वेज़ नहर के बाद पीरेयुस ऐसा पहला प्रमुख यूरोपीय बंदरगाह है जिसका पिछले 15 वर्षों में ज़ोरदार विकास हुआ है। वहां कंटेनरों की ढुलाई और कंटेनर जहाज़ों का आना-जाना प्रतिस्पर्धी यूरोपीय बंदरगाहों की तुलना में काफी तेजी से बढ़ा है। चीन की बंदरगाह ऑपरेटर कंपनी 'कॉस्को' ने वहां भारी निवेश किया है। इस निवेश के बल पर 2008 से वह यूरोप में चीनी माल के पहुंचने का मुख्य बंदरगाह बन गया है। चीन उसका और अधिक विस्तार कर रहा है।
 
ग्रीस का यह पीरेयुस बंदरगाह रेलमार्ग से पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के कई देशों और उनके प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। वह जहाज़ों के साथ-साथ रेलगाड़ियों द्वारा भी ढुलाई सेवा प्रदान करता है। वहां से उत्तर-पश्चिमी यूरोप के एन्टवर्प, रोटरडम या हैम्बर्ग जैसे बंदरगाहों तक भी माल-सामान भेजा या किसी तीसरे देश में भेजने के लिए वहां से मंगाया जा सकता है। भारत का सोचना है कि चीन की कोई कंपनी यदि ग्रीस में इतने बड़े बंदरगाह का संचालन-परिचालन कर सकती है तो भारत की कंपनियां भी ऐसा क्यों नहीं कर सकतीं?
 
सैन्य सहयोग भी : द्विपक्षीय सहयोग का विस्तार यहीं तक सीमित नहीं रहेगा। रक्षा नीति में भी घनिष्ठ सहयोग की अपेक्षा है। यह सहयोग कहने के लिए किसी तीसरे पक्ष के विरुद्ध भले ही न हो, भारत ही नहीं, यूनानी दृष्टिकोण से भी चीन के बढ़ते वजन को इसी तरह से संतुलित किया जाना चाहिए। दोनों देशों की सेनाएं पहले ही संयुक्त युद्धाभ्यास कर चुकी हैं। यूनानी सेना के पायलट सितंबर में भारत में होने वाले एक नए युद्धाभ्यास में भाग लेने वाले हैं।
 
पिछले जुलाई महीने में ग्रीक और भारतीय नौसेना के जहाजों ने ग्रीस के क्रीत द्वीप के पास संयुक्त युद्धाभ्यास किया था। ग्रीक भाषा-भाषी उसके पड़ोसी द्वीप देश साइप्रस ने भी भारत के साथ सैन्य सहयोग घनिष्ठ बनाने की घोषणा की है। इन दोनों देशों की नज़रें चीन पर ही नहीं, तुर्की और पूर्वी भूमध्य सागर में उसके बढ़ते हुए आक्रामक व्यवहार पर भी हैं।
 
सहयोग और निवेश के कई अवसर : मोदी और मित्सोताकिस ने अपने-अपने देशों की व्यापारिक बिरादरी के नामी प्रतिनिधियों को भी एक-दूसरे मिलाया। दोनों देश विनिर्माण और बुनियादी ढांचे में औषधि उद्योग में शिपिंग कंपनियों में खाद्य उत्पादन और पर्यटन में सहयोग और निवेश के विशेष अवसर देखते हैं। एक भारतीय कंपनी ग्रीस के क्रीत द्वीप पर एक हवाई अड्डे का विस्तार कर रही है। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच राजधानी एथेंस में हुई बातचीत को पहले से ही देखे जा रहे इसी मेल-मिलाप का नवीकरण भी कहा जा सकता है।
 
ग्रीस के पूर्व विदेश मंत्री निकोस देंदीयास ने, जो अब रक्षा विभाग के प्रमुख हैं, अपने भारतीय समकक्ष सुब्रमण्यम जयशंकर के साथ 5 बैठकों में प्रधानमंत्री मोदी और ग्रीक प्रधानमंत्री मित्सोताकिस के बीच शिखर वार्ता की तैयारी का काम किया था। यूनानी-भारतीय द्विपक्षीय आर्थिक आयोग की वर्षों से नियमित बैठकें होती रही हैं अत: ऐसा भी नहीं है कि भारत और ग्रीस के बीच प्रगाढ़ संबंध कोई बहुत नई चीज़ हों।
 
वास्तव में ग्रीस के वर्तमान दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री मित्सोताकिस के पूर्ववर्ती वामपंथी प्रधानमंत्री अलेक्सिस त्सिप्रास और उनके विदेश मंत्री निकोस कोत्ज़ियास के समय भी ऐसी ही प्रगाढ़ता बनने लगी थी। अंतर इतना ही था कि त्सिप्रास के कार्यकाल में ग्रीस की अर्थव्यवस्था एक ऐसे गंभीर संकट से जूझ रही थी, जो उनसे पहले की सरकारें पीछे छोड़ गई थीं। यह संकट अब दूर हो चुका है।
 
भौगोलिक स्थिति है मुख्य आकर्षण : केवल 1 करोड़ 5 लाख की जनसंख्या वाले ग्रीस का भारत के लिए मुख्य आर्थिक आकर्षण उसकी भौगोलिक स्थिति है। चीन की तरह भारत भी यूरोप के साथ आयात-निर्यात के लिए ग्रीस के किसी बंदरगाह को अपने लिए प्रवेश द्वार बना सकता है। पीरेयुस जैसे यूनानी बंदरगाहों का आकर्षण इस कारण बढ़ रहा है, क्योंकि यूनानी तट के दक्षिण-पूर्व में पड़ने वाले यूरोप के भीतरी इलाकों में तेज गति परिवहन के लिए रेलवे के बुनियादी ढांचे का विस्तार किया जा रहा है।
 
सर्बिया में रेलवे नेटवर्क का आधुनिकीकरण एक ऐसा ही बड़ा उदाहरण है। हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट और सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड के बीच उच्च गति रेलवे लाइन का पहले ही विस्तार हो चुका है। उसे बेलग्रेड से नोवी-साद तक बढ़ा दिया गया है। दूसरी ओर यूरोपीय ऋण और अनुदान के साथ बेलग्रेड से दक्षिणी सर्बियाई शहर नीस तक के लगभग 250 किलोमीटर लंबे दक्षिणी खंड की रेलवे लाइन को भी उन्नत किया जाना है।
 
तेज गति यातायात : बेलग्रेड और नीस के बीच 200 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम गति से यातायात संभव हो जाएगा। सर्बियाई आंकड़ों के अनुसार इस आधुनिकीकरण की लागत 2.7 अरब यूरो होगी। इस लागत में नई या उन्नत सुरंगों और पुलों के निर्माण का ख़र्च भी शामिल है।
 
इस धनराशि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यूरोपीय संघ यूरोपीय निवेश बैंक और यूरोपीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक से मिलेगा। यह परियोजना जब पूरी हो जाएगी, तब भारत के लिए भी ग्रीक बंदरगाहों से होकर पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी यूरोप के बाज़ारों तक आसानी से और तेज़ी से पहुंचना संभव हो जाएगा।
 
कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी हमेशा बहुत दूर की सोचते हैं। अन्य देशों में भी भारत के लिए अवसर ढूंढते रहते हैं इसीलिए वे अभी से कह रहे हैं कि उन्हें यदि तीसरा कार्यकाल मिला तो वे भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना ही देंगे।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
 
Edited by: Ravindra Gupta
ये भी पढ़ें
वरुण गांधी का फिर बीजेपी पर तंज, क्या बगावती तेवर से कटेगा लोकसभा का टिकट?