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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: शनिवार, 3 सितम्बर 2022 (14:48 IST)

कांग्रेस से 'आजाद' हुए गुलाम नबी आजाद किसकी नैया लगाएंगे पार?

कांग्रेस से 'आजाद' हुए गुलाम नबी आजाद किसकी नैया लगाएंगे पार? - Ghulam nabi azad and jammu kashmir politics
कांग्रेस से ‘आजाद’ होने के उपरांत गुलाम नबी आजाद कल पहली बार जम्मू कश्मीर आ रहे हैं। उनके सम्मान में हजारों आंखों प्रतीक्षारत हैं। उन्हें जिस जम्मू का लाल कहा जाता है वहीं एक रैली का भी आयोजन किया जाना है जिसमें उनके ससुराल कश्मीर से भी कई नेता, सिर्फ उनके समर्थक ही नहीं बल्कि अन्य दलों से संबंध रखने वाले भी शिरकत करने को उत्सुक हैं।
 
दरअसल 3 सालों से जम्मू कश्मीर राज्य के दो टुकड़े कर उसकी पहचान खत्म किए जाने के दर्द से गुजर रहा प्रदेश का हर नागरिक अब अन्य राजनीतिक दलों से मायूस हो चुका है। उसे न ही अब नेशनल कांफ्रेंस और न ही पीडीपी पर इतना भरोसा रहा है। जबकि जम्मूवासी भी अब भारतीय जनता पार्टी के वायदों को लालीपाप मानने लगे हैं। ऐसे में सभी की आस का दीपक गुलाम नबी आजाद बनने लगे हैं।
 
पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सच में गुलाम नबी आजाद प्रदेश की जनता की आस का दीपक बनकर उन्हें रोशनी देकर भविष्य की राह दिखाएंगें। वे कल अपनी नई पार्टी का ऐलान करने जा रहे हैं। उनके व्यक्तित्व का ही असर है कि नई पार्टी के लक्ष्य को जाने बिना ही हजारों नेता उनके समर्थन में अपने अपने राजनीतिक दलों से इस्तीफे दे चुके हैं।
 
इसे इस्तीफों की सुनामी भी कहा जा रहा है जिसमें तैर कर अपना बेड़ा पार लगने की उम्मीद रखने वालों में सिर्फ कांग्रेसी ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी, नेकां, पीडीपी और भाजपा के भी नेता हैं।
 
इस्तीफों की इस सुनामी का एक कड़वा सच यह है कि इसमें शामिल अधिकतर नेता डूबे हुए जहाज हैं जिन्हें लगता है कि आजाद नाम की सुनामी उनकी नैया को पार लगा देगी। उन्हें चले हुए कारतूस के तौर पर माना जाता है। जबकि अभी तक यह भी तय नहीं है कि जम्मू कश्मीर में गुलाम नबी आजाद की भूमिका क्या होगी?
 
एक और यह कहा जा रहा है कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी के गठन का ऐलान करेंगें जिसे जी-23 समूह का भी समर्थन होगा। तो जम्मू कश्मीर में उनके सहयोगी उन्हें जम्मू कश्मीर का भावी मुख्यमंत्री घोषित करने में जुटे हैं।
 देखा जाए तो प्रदेश में गुलाम नबी आजाद की राह आसान नहीं है क्योंकि उन पर यह आरोप लग रहा है कि वे अंदरखाने भाजपा के साथ समझौता करके ही जम्मू कश्मीर से मैदान में उतरने जा रहे हैं और उन्हें अन्य राजनीतिक दलों को तोड़ कर भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने की डील हुई है।
 
जानकारी के लिए गुलाम नबी आजाद ने अपने 50 साल के राजनीतिक कैरियर में दो बार जम्मू कश्मीर से विधानसभा चुनाव लड़ा और वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री बनने के उपरांत ही वे 24 अप्रैल 2006 को हुए विधानसभा उप चुनावों में भद्रवाह की उस सीट से पहली बार चुनाव जीत पाए थे जहां से 30 साल पहले उनकी जमानत जब्त हो गई थी और यह जीत इसलिए भी सुनिश्चित हो पाई थी क्योंकि तब भाजपा ने भी उनके विरोध में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था।
 
यह भी पूरी तरह से सच है कि कांग्रेस को अलविदा कहकर जम्मू कश्मीर की सियासत में सक्रिय हो रहे गुलाम नबी आजाद और नेकां के अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसले से पीपुल्स एलांयस फार गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) में हलचल मची हुई है। ऐसे में अन्य राज्यों के लोगों को चुनाव में मतदान का अधिकार देने के फैसले का विरोध करने के बहाने एकजुटता दिखाने के लिए पीएजीडी अगले माह जम्मू में सर्वदलीय बैठक का आयोजन करने जा रहा है।
 
परिस्थितियों के अनुकूल रहने पर यह बैठक 10 सितंबर को नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला की अध्यक्षता में उनके निवास पर होगी। फारूक ही पीएजीडी के अध्यक्ष व संरक्षक हैं। वोट के अधिकार के मुद्दे पर पीएजीडी की एक बैठक 22 सितंबर को श्रीनगर में भी हो चुकी है। गुलाम नबी आजाद चार सितंबर को जम्मू आ रहे हैं। पूरी संभावना है कि वह यहां अपनी नई पार्टी के गठन का एलान करेंगे।
 
इस समय जम्मू कश्मीर में आजाद के समर्थन में कांग्रेस पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की होड़ सी लगी हुई है। ये सभी नेता दिल्ली जाकर या यही से आजाद का समर्थन कर रहे हैं और उनके जम्मू आने का इंतजार कर रहे हैं। कई नेता उनके यहां पहुंचने पर भी कांग्रेस से किनारा कर सकते हैं। जम्मू कश्मीर की सियासत में आ रहे इस बदलाव से पीएजीडी में भी हलचल मची हुई है।
 
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, जम्मू में पीएजीडी की बैठक वोट के अधिकार के विरोध में कम और आजाद के दौरे के दौरान एकजुटता दिखाने के लिए अधिक मानी जा रही है।
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