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  4. Field Marshal Asim Munir is a sign of war with India and partition of Pakistan
Last Modified: बुधवार, 21 मई 2025 (10:59 IST)

भारत से जंग और पाकिस्तान के विभाजन का संकेत है फील्ड मार्शल आसिम मुनीर

Operation Sindoor
साढ़े छह दशक बाद पाकिस्तान के इतिहास ने एक बार फिर करवट ली है। पहले फील्ड मार्शल अयूब खान के बाद अब दूसरी बार आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल की पदवी दी गई है। सेना के सर्वोच्च सम्मान से नवाजे गए मुनीर और अयूब खान मे गहरी समानताएं है जो यह संकेत कर रही है कि पाकिस्तान मे सैन्य तख्तापलट भी होगा,भारत से युद्द भी होगा और पाकिस्तान का विभाजन भी होगा।

दरअसल 1958 में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति इसकन्दर मिर्जा ने देश के लोकतंत्र को गहरा झटका देते हुए पाकिस्तानी मूल के पहले कमाण्डर-इन-चीफ अयूब खान को देश का चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्‍ट्रेटर नियुक्त किया था। पाकिस्तानी राजनीति में सैन्य दखलंदाज़ी की शुरुआत करने वाले इसकन्दर मिर्जा शायद यह नहीं जानते थे कि कुछ ही दिनों बाद वे सत्ता से बेदखल कर दिए जाएंगे। पाकिस्तान में पहला सैन्य तख्तापलट सेना प्रमुख जनरल अयूब खान ने किया था। 27 अक्टूबर 1958 को अयूब खान ने सत्ता हथिया ली और खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया । इसके बद  इसकन्दर को अयूब खान ने ऐसा देश निकाला दिया कि वे कभी देश नहीं लौट पाए और उन्हें ईरान में दफनाया गया। 1979 ई क्रांति ईरान के बाद कुछ बदमाशों ने पूर्व राष्ट्रपति पाकिस्तान इसकन्दर मिर्जा की कब्र को ध्वस्त कर दिया था।

अयूब खान पाकिस्तानी फौज में सबसे कम आयु के जनरल थे जो पाकिस्तान के सैन्य इतिहास में स्वयंभू फील्ड मार्शल बने। फील्ड मार्शल एक सैन्य रैंक है जो कई देशों की सेनाओं में सर्वोच्च या अत्यंत उच्च पदों में एक माना जाता है। यह रैंक सामान्य रूप से जनरल (चार सितारा) से ऊपर होती है और इसे पांच सितारा रैंक के रूप में जाना जाता। अयूब खान पाकिस्तान के इतिहास में पहले सैन्य कमाण्डर थे,जिन्होंने सरकार के विरुद्ध सैन्य विद्रोह कर सत्ता पर कब्जा किया था। अयूब खान सेना के अहम पदों पर रहे लेकिन वे कभी युद्द जीत नहीं सके। ब्रिटिश आर्मी से लड़ने वाले अयूब खान को डरपोक कहकर सेना से निकाल दिया गया था। पाकिस्तान बना तो जिन्ना ने अयूब का कोर्ट मार्शल करने का आदेश दिया था। पर किस्मत अयूब पर मेहरबान थी। अयूब के सेना प्रमुख बनने की कोई संभावना नहीं थी लेकिन इफ्तिखार अली खान और ब्रिगेडियर शेर मुहम्मद खान की एक संदेहास्पद प्लेन क्रैश में मौत से अयूब पाकिस्तानी सेना के मुखिया बन गये।

जब अयूब देश के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने जीवन भर सम्मान पाने के लिए खुद को फील्ड मार्शल के खिताब से नवाज दिया। ऐसा कहते है कि यह उन्होंने जुल्फिकार अली भुट्टों के सलाह पर किया। अब जुल्फिकार अली भुट्टों के नवासे बिलावल भुट्टों देश के विदेश मंत्री है जिन्होंने आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाने में महती भूमिका निभाई होगी। अयूब खान को पूर्वी पाकिस्तान से वैसे ही नफरत थी जैसे आसिम मुनीर को बलूचिस्तान से है। अयूब कहते थे कि ईस्ट पाकिस्तान के लोग अभी लोकतंत्र जैसी जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं हैं,कि वो मानसिक तौर पर बहुत पिछड़े हुए लोग हैं। उन्होंने हर कदम पर ईस्ट पाकिस्तान की अनदेखी की। अयूब के सत्ता में रहते बांग्लादेश नहीं बना,लेकिन इसके बनने की फाइनल स्क्रिप्ट अयूब के वक्त में ही तय हो गई थी। वजह थी अयूब की पूर्वी पाकिस्तान से नफरत। उन्होंने लगातार वेस्ट और ईस्ट पाकिस्तान के बीच भेदभाव किया। आसिम मुनीर बलूचिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को गुंडा कहते हुए चुनौती देते हुए कह चूके है कि महज पंद्रह सौ गुंडे कैसे पाकिस्तान से बलूचिस्तान को अलग कर देंगे।

मुनीर पर अयूब खान की गहरी छाप है जो वे द्विराष्ट्रवाद के नाम पर हिन्दुओं और भारत से नफरत का सार्वजनिक इजहार कर चूके है। 1962 में अयूब के लाए गए पाकिस्तान के नए संविधान से ही यह तय किया गया था कि पाकिस्तान का कोई गैर-मुस्लिम नागरिक कभी राष्ट्रपति नहीं बन सकता है। पहलगाम में आतंकी हमला, आसिम मुनीर की सुनियोजित साजिश का परिणाम माना जा रहा है,जिसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बड़ी जंग के मुहाने तक पहुंच गए थे। अयूब खान के कार्यकाल के दौरान ही 1965 में  भारत-पाक जंग हुई थी जिसमें भारत ने पाकिस्तान के 710 वर्ग किलोमीटर इलाके को अपने कब्जे में ले लिया था। भारत ने पाकिस्तान के जिन इलाकों पर जीत हासिल की थी,उनमें सियालकोट,लाहौर और कश्मीर के कुछ अति उपजाऊ क्षेत्र भी शामिल थे। बाद में संयुक्त राष्ट्र की पहल पर दोनों देश युद्ध विराम को राजी हुए थे। 11 जनवरी 1966 को रूस के ताशकंद में भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के बीच समझौता हुआ था।

आसिम मुनीर को 27 नवंबर 2022 को रिटायर होना था लेकिन रिटायरमेंट से सिर्फ तीन दिन पहले उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बना दिया गया। पाकिस्तान में यह पहले भी होता रहा है,सेना के अधिकारी अपने पद से हटना ही नहीं चाहते। मुनीर ने कभी कोई जंग नहीं जीती लेकिन उन्हें वैसे ही प्रमोशन मिले जैसे अयूब  खान को। ऑपरेशन सिंदूर कि सफलता से पाकिस्तान कि सेना और सत्ता गहरा दबाव में है। भारतीय सशस्त्र बलों ने का ऑपरेशन सिंदूर एक सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध हवाई-से-ज़मीन मिशन था,जिसके तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में नौ आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों और उनके मुख्यालयों को निशाना बनाया गया। इसके बाद पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकाने ध्वस्त कर दिए गए।

पाकिस्तान की अपमानजनक हार का लोगों के सामने आना सेना और सत्ता के लिए खतरनाक हो सकता था,लिहाजा उन्होंने हार को जीत के रूप में प्रचारित करने के लिए राष्ट्रीय अभियान चला दिया। भारत से जंग में मिली असफलता को छुपाने के लिए देश में खूब दुष्प्रचार किया,सही सूचनाओं को छुपाया और अब हारे हुए सैन्य प्रमुख मुनीर को फील्ड मार्शल के तमगे से नवाज कर अपनी सत्ता को बचाएं रखने का प्रबंध कर लिया। 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के पहले अयूब खान की सोच थी,लेकिन करारी हार के बाद पाकिस्तान में उनके खिलाफ बगावत हो गई और 1969 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। ऑपरेशन सिंदूर का सच ज्यादा दिनों तक छुप नहीं सकता और मुनीर का हश्र भी अयूब खान की तरह ही होगा,इसकी पूरी संभावना है ।

यह भी दिलचस्प है कि अयूब खान ने अपने आका इसकन्दर खान को महज दो सप्ताह में ही तख्ता पलट कर सत्ता से उखाड़ फेंका था। अब आसिम मुनीर ने स्वयंभू फील्ड मार्शल बनकर सत्ता और सेना में आजीवन सर्वोच्च बने रहने का प्रबंध कर लिया है। जाहिर है,इसका मतलब साफ है कि शहबाज़ शरीफ कि सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गई है। पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय नेता इमरान खान,मुनीर को देखना पसंद नहीं करते है और तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के समर्थक इमरान खान के सत्ता से हटने से लेकर जेल जाने तक में मुनीर की भूमिका की आलोचना करते रहे है। इमरान यदि जेल से बाहर आ गये तो मुनीर को इस्कंदर मिर्जा की तरह देश निकाला मिलना  निश्चित है। नये फील्ड मार्शल मुनीर को बलूचिस्तान और भारत से नफरत है। इसका अर्थ साफ है की पाकिस्तान का दूसरा फील्ड मार्शल भारत से युद्द भी करेगा और पाकिस्तान के टुकड़े भी होंगे। पाकिस्तान में फील्ड मार्शल का इतिहास यहीं कहता है।

आमतौर पर फील्ड मार्शल की रैंक असाधारण सैन्य उपलब्धियों या विशेष परिस्थितियों में प्रदान की जाती है,पर पाकिस्तान ने इसकी महत्ता को ही झूठला दिया है। बहरहाल पाकिस्तान ने एक बार फिर राजनीतिक कारणों से हारे हुए सेना अध्यक्ष को  फील्ड मार्शल के सम्मान से नवाज कर यह साबित कर दिया की यह देश झूठ और प्रपंच पर आधारित नायकों से गुमराह है और इसका भविष्य अनिश्चित ही रहेगा।

 
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