गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Draupadi Murmu will be the trump card for the BJP in the 2023 assembly elections of Madhya Pradesh?
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 24 जून 2022 (18:02 IST)

मध्यप्रदेश के 2023 विधानसभा चुनाव में द्रौपदी मूर्मु भाजपा के लिए बनेगी ट्रंपकार्ड?

मध्यप्रदेश के 2023 विधानसभा चुनाव में द्रौपदी मूर्मु भाजपा के लिए बनेगी ट्रंपकार्ड? - Draupadi Murmu will be the trump card for the BJP in the 2023 assembly elections of Madhya Pradesh?
भोपाल। राष्ट्रपति चुनाव के लिए आज भाजपा नेतृत्व वाली NDA की प्रत्याशी द्रौपदी मूर्मु ने अपना नामांकन भर दिया। द्रौपदी मूर्मु के नामांकन भरने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,गृहमंत्री अमित शाह,भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मौजूद थे। संख्या बल के आधार पर द्रौपदी मूर्मु का राष्ट्रपति चुनाव जीतना तय है।
 
शिवराज बनें नामांकन में प्रथम समर्थक-मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्रौपदी मुर्मू के नामांकन पत्र में प्रथम समर्थक बने। उन्होंने नामांकन पत्र में फर्स्ट सेकंडर (प्रथम समर्थक) के तौर पर किए दस्तखत भी किए। द्रौपदी मूर्मु के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के बाद मध्यप्रदेश में भाजपा जश्न में डूबी हुई दिखाई दे रही है। 
 
ऐसे में जब मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने है तो प्रदेश भाजपा द्रौपदी मूर्मु के चेहरे के सहारे आदिवासी समुदाय को साधने की कोशिश कर रही है। यहीं कारण है कि द्रौपदी मूर्मु की उम्मीदवार बनने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा आदिवासी समुदाय के साथ भोपाल में जमकर जश्न मनाया। 

वहीं आज नामांकन के ठीक पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ब्लॉग लिखकर द्रौपदी मुर्मू को सामाजिक परिवर्तन का संवाहक बताया। अपने लेख में मुख्यमंत्री ने लिखा कि द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना भाजपा द्वारा समस्त आदिवासी और महिला समाज के भाल पर गौरव तिलक लगाने की तरह है। एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति बनना सामाजिक सोच को अंधकार से निकालकर प्रकाश में प्रवेश कराना है।

द्रौपद्री मूर्मु के सहारे आदिवासी वोट बैंक पर नजर-आदिवासी समाज से आने वाली द्रौपद्री मूर्मु के राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने का पूरा लाभ भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव में उठाना चाह रही है। द्रौपदी मूर्मु के सहारे भाजपा खुद को आदिवासी समाज का सबसे बड़ा हितैषी बताने की कोशिश में जुटी है। ऐसा कर भाजपा 2018 विधानसभा चुनाव में छिटक गए आदिवासी वोट बैंक को फिर अपनी ओर लाने की कोशिश में है क्योंकि मध्यप्रदेश के 2023 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर सियासी दलों के लिए ट्रंप कार्ड साबित होने वाला है।

आदिवासी वोट बैंक बड़ी सियासी ताकत-दरअसल मध्यप्रदेश की सियासत में आदिवासी वोटर  गेमचेंजर साबित होता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश की आबादी का क़रीब 21.5 प्रतिशत एसटी, अनुसूचित जातियां (एससी) क़रीब 15.6 प्रतिशत हैं। इस लिहाज से राज्य में हर पांचवा व्यक्ति आदिवासी वर्ग का है। राज्य में विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। 
 
आदिवासी सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन-अगर मध्यप्रदेश में आदिवासी सीटों के चुनावी इतिहास को देखे तो पाते है कि 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस  केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी। 

इसके बाद 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।

वहीं पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई। ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह ‌साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा। 
2023 में आदिवासी वोटर होगा निर्णायक-आदिवासी वोट बैंक मध्यप्रदेश में किसी भी पार्टी के सत्ता में आने का ट्रंप कार्ड है। अगर 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करें तो पाते है कि आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा केवल 16 सीटें जीत सकी थी वहीं कांग्रेस ने 30 सीटों पर जीत हासिल की थी। ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह ‌साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा। 
 
ऐसे में जब सत्तारूढ दल भाजपा ने 2023 विधानसभा चुनाव के लिए 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। तो लक्ष्य आदिवासी वोटों पर पकड़ मजबूत किए बगैर हासिल नहीं किया जा सकता। वहीं कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जो आदिवासी वोटर उसके साथ आया था वह बना रहा है और एक बार फिर वह प्रदेश में अपनी सरकार बना सके। 
ये भी पढ़ें
शिवसैनिक भड़के, बागी विधायकों के पोस्टर फाड़े (Live Updates)