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Last Modified: रविवार, 14 जनवरी 2018 (19:54 IST)

तलाक की बढ़ती घटनाओं पर बुद्धिजीवियों ने जताई चिंता

तलाक की बढ़ती घटनाओं पर बुद्धिजीवियों ने जताई चिंता - Divorce intellectuals
नई दिल्ली। राजधानी के न्यायविदों, कानूनविदों और शिक्षाविदों ने हाल के वर्षों में देश में वैवाहिक संस्था के लगभग खतरे में पड़ने पर गहरी चिंता जताई है। इन न्यायविदों, कानूनविदों और शिक्षाविदों का मानना है कि हाल के वर्षों में पूर्व-नियोजित तलाक की घटनाएं बढ़ी हैं और इसके कारण और समाधान ढूंढने का वक्त आ गया है।

कानूनविदों, न्यायविदों और शिक्षाविदों की यह चिंता पूर्व-नियोजित तलाक विषय पर पिछले दिनों अमृतम् चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से आयोजित व्याख्यानमाला के दौरान सामने आई। दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश हिमा कोहली ने कहा, सोशल मीडिया के आज के जमाने में व्यक्तिगत डाटा को साझा करने के मामले में गोपनीयता की कमी है।

इन परिस्थितियों में शादी की अद्भुत संस्था लगभग खतरे में पड़ रही है, क्योंकि पुराने सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन-साथी के लिए सम्मान प्रत्एक गुजरते दिन के साथ लगभग खत्म होता जा रहा है। इसके अलावा हमारी पारिवारिक अदालतों में हमारे पास घरेलू हिंसा या वैवाहिक बलात्कार से संबंधित कई मामले लंबित हैं।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, अपने जीवन-साथी के अधिकारों पर अंकुश लगाने के लिए अपने तलाक की योजना पहले से ही तय करने की बढ़ती प्रवृत्ति समाज में बड़े पैमाने पर असुरक्षा की भावना पैदा कर रही है। शिक्षाविद् गोल्डी मल्होत्रा ने पूर्वनियोजित तलाक को 'सामाजिक बुराई' के साथ जोड़ते हुए कहा, यद्यपि लोग तलाक को एक व्यक्तिगत अधिकार मानते हैं, लेकिन वे इसके कारण अपने बच्चों पर पड़ने वाले असर के बारे में नहीं सोचते।

तलाक के कारण भाई-बहनों को बांटना या उन्हें अलग छोड़ना उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जबकि तलाक के बाद माता-पिता का एक दूसरे के साथ गलत वार्तालाप उन्हें हतोत्साहित कर सकता है।

हमें सावधान रहना चाहिए कि टूटा हुआ विवाह कहीं हमारे बच्चों को अंदर से न तोड़ दे। अमृतम् चैरिटेबल ट्रस्ट की सुप्रोमि‍ला बढवार ने कहा, हाल के दिनों में हमने पाया है कि पूर्व-नियोजित तलाक समाज में अशांति पैदा कर रहे हैं, विशेष रूप से युवाओं के बीच, जो शादी की सुंदर संस्था को बनाए रख पाने के प्रति बेहद असंवेदनशील होते जा रहे हैं।

इसका कारण और समाधान ढूंढने का वक्त आ गया है। इस अवसर पर वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. अचल भगत, अधिवक्ता -सुगायत्री पुरी और सुदीपिका वी मारवाह तथा मीडिया पार्टनर सुबिन्नी यादव ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। (वार्ता)