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Last Modified: नई दिल्ली , शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025 (22:15 IST)

महिला उत्पीड़न कानून का हो रहा दुरुपयोग, दिल्ली हाईकोर्ट ने जताई चिंता

महिला उत्पीड़न कानून का हो रहा दुरुपयोग, दिल्ली हाईकोर्ट ने जताई चिंता - Delhi High Court's comment on Women Harassment Law
Women Harassment Law : दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि विवाहित महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने वाले कानून का अब पति और उसके परिवार के सदस्यों को परेशान करने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है। न्यायमूर्ति अमित महाजन ने 13 फरवरी को उपलब्ध हुए आदेश में स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि उत्पीड़न के वास्तविक मामले मौजूद नहीं हैं। आदेश में कहा गया, भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए का प्रावधान विवाहित महिला को उत्पीड़न से बचाने के उद्देश्य से बनाया गया था, लेकिन यह देखना दुखद है कि अब इसका दुरुपयोग पति और उसके परिवार के सदस्यों को परेशान करने तथा लाभ उठाने के लिए भी किया जा रहा है।
 
अदालत ने कहा कि वह दहेज के लालच की गहरी जड़ें जमा चुकी सामाजिक बुराई की जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ नहीं है, जिसके कारण पीड़ितों को अवर्णनीय आचरण और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इसने कहा, अदालतों ने कई मामलों में वैवाहिक मुकदमेबाजी में पति और उसके परिवार को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर ध्यान दिया है।
आदेश में कहा गया, भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए का प्रावधान विवाहित महिला को उत्पीड़न से बचाने के उद्देश्य से बनाया गया था, लेकिन यह देखना दुखद है कि अब इसका दुरुपयोग पति और उसके परिवार के सदस्यों को परेशान करने तथा लाभ उठाने के लिए भी किया जा रहा है।
 
इसमें कहा गया कि ऐसे मामले वकील की सलाह पर तात्कालिक उत्तेजना में वास्तविक घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर और गलत व्याख्या करके दायर किए जाते हैं। अदालत ने कहा कि जिन मामलों में पति के खिलाफ अस्पष्ट आरोप लगाए गए हों, वह भी देरी से, वहां कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
इसने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिकाकर्ता ने अपने और अपने परिवार के खिलाफ उसकी अलग रह रही पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था। इस मामले में पति पर दहेज की मांग और स्त्रीधन न लौटाने की शिकायत के साथ उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था।
अदालत ने मामले में प्राथमिकी और इससे संबंधित अन्य कार्यवाही को रद्द कर दिया। इसने कहा कि प्राथमिकी में दहेज की मांग या उत्पीड़न के कथित मामलों की कोई तारीख, समय या विवरण निर्दिष्ट नहीं किया गया। इसे याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों के खिलाफ भी कोई सबूत नहीं मिला। अदालत ने व्यक्ति के इस तर्क को उचित पाया कि आरोप बाद में लगाए गए थे और तलाक याचिका के जवाब में लगाए गए थे। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour
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