• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Crisis on employment of 10 lakh people in Sivakasi, the capital of firecrackers
Written By
Last Modified: गुरुवार, 4 नवंबर 2021 (09:30 IST)

प्रतिबंध के चलते पटाखों की 'राजधानी' शिवाकाशी में 10 लाख लोगों के रोजगार पर संकट

प्रतिबंध के चलते पटाखों की 'राजधानी' शिवाकाशी में 10 लाख लोगों के रोजगार पर संकट - Crisis on employment of 10 lakh people in Sivakasi, the capital of firecrackers
-टीएस वेंकटेशन, तमिलनाडु से
चेन्नई। तमिलनाडु के शिवाकाशी में भारत में सबसे ज्यादा पटाखों का निर्माण और कारोबार होता है। यहां पर करीब 10 लाख लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पटाखा उद्योग पर संकट गहरा गया है। दरअसल, प्रदूषण के चलते दिल्ली, पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ ग्रीन पटाखों के उपयोग की ही अनुमति दी है। 
 
कोरोना के चलते श्रमिक पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। इसी बीच, पटाखों पर प्रतिबंध ने उन्हें तोड़कर रख दिया है। इसके चलते कई श्रमिकों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, वहीं उद्योगों ने अपने उत्पादन स्तर को कम कर दिया है। इसके साथ ही नोटबंदी, जीएसटी, ग्रीन क्रैकर्स की शुरूआत और विभिन्न राज्यों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध ने पटाखा उद्योग को और अधिक संकट में डाल दिया है।
 
4000 करोड़ का कारोबार : एक अनुमान के मुताबिक शिवाकाशी में प्रतिवर्ष पटाखों का 4000 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। हालांकि कोर्ट के प्रतिबंध के चलते इस बार असमंजस की स्थिति बनी हुई है। यही कारण है कि अनिश्चितता एवं कोरोना की वजह से इस बार 40 फीसदी ही पटाखों का उत्पादन हुआ है। इस बार कारोबार 2500 करोड़ रुपए रहने की संभावना है।
 
तमिलनाडु के विरुदुनगर जिले में स्थित शिवाकाशी शहर में 365 दिन पटाखे बनाने का काम चलता है। जोखिम के बावजूद इन लाखों लोगों का जीवन यापन इसी काम से होता है। पटाखा कारोबार के कारण ही शिवाकाशी को कुट्‍टी जापान (छोटा जापान) भी कहा जाता है। 1940 के बाद से ही शिवाकाशी भारत की आतिशबाजी की राजधानी बन गई थी। हालांकि 1892 में पटाखों का निर्माण शुरू करने वाला कोलकाता पहला शहर था।
 
ग्रीन पटाखे कितने 'ग्रीन' : पटाखा उद्योग से जुड़े लोगों में का मानना है कि प्रदूषण के चलते पिछले कुछ वर्षों से ग्रीन पटाखा शब्द प्रचलन में आया है। ऐसा माना जाता है कि इस तरह के पटाखों से प्रदूषण नहीं होता, लेकिन जानकारों का मानना है कि ग्रीन क्रैकर्स जैसा कुछ होता ही नहीं है। सल्फर, बेरियम और अन्य रसायन से ही पटाखों का निर्माण होता है। इनके बिना पटाखों का निर्माण ही नहीं हो सकता। दरअसल, पटाखों पर प्रतिबंध ही इसलिए लगाया गया है कि इनमें बेरियम का प्रयोग होता है। 
 
पटाखा उद्योग के जानकार श्रीधर कहते हैं कि भारत में वैदिक काल से ही पटाखे फोड़ने का चलन रहा है। ऋग्वेद में इसे 'अग्नि उपासह' कहा गया है। वेद व्यास के संस्कृत श्लोक 'उल्का दानम' में दिवाली के दौरान पटाखों को फोड़ने का उल्लेख है। श्रीधर ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा और न्यायपालिका और राज्य सरकार के फैसले के नाम पर पटाखा उद्योग पंगु हो गया है। 
उन्होंने कहा कि पटाखों की लेबलिंग, असेंबलिंग, पैकेजिंग और इससे जुड़े अन्य कार्यों में लगे पुरुष और महिला मजदूर बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। उन्हें कई वर्षों से वेतन वृद्धि से भी वंचित रखा गया है। उल्लेखनीय है कि 
 
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में एंटीमनी, लीथियम, मरकरी, आर्सेनिक, लेड और स्ट्रोंटियम क्रोमेट के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। अब बेरियम के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। 
 
प्राचीन परंपरा : दिवाली मनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। वेदों में भी पटाखे जलाने का उल्लेख मिलता है। दिवाली को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है, जैसे- दीपावली, दीपालिका, दीपा ओली, दीपमाला आदि। प्राचीन कश्मीर में इसे सुकसुप्तिका के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु में यह त्योहार राक्षस नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
ये भी पढ़ें
दिवाली पर आतंकी हमले के अलर्ट, सुरक्षा सख्‍त