2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद भाजपा ने जो कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखा था वह क्या अब तार –तार हो गया है ? क्या खामोशी के साथ कांग्रेस अपनी वापसी करती जा रही है ? क्या भाजपा के हाथ से राज्यों की सत्ता फिसलती जा रही है?
यह कुछ ऐसे सवाल है जो इन दिनों देश के सियासी गलियारों में तेजी से उठ रहे हैंं। महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस ने एक और बड़े और सियासी रुप से महत्वपूर्ण राज्य में अपना कब्जा जमा लिया है। इससे पहले कांग्रेस राजनीतिक रुप से 4 बड़े राज्यों पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में भाजपा के किले को ध्वस्त कर अपना झंडा फहरा चुकी है।
2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार केंद्र भाजपा सत्ता में काबिज हुई तो वह 7 राज्यों में सत्ता में काबिज थी। इसके बाद मोदी-शाह की जोड़ी ने पूरे देश में कांग्रेस की सरकारों को उखाड़ फेंकने और कांग्रेस मुक्त भारत का जो नारा दिया उसके चलते एक-एक कर भाजपा राज्यों में अपनी सरकारें बनाती गई।
2018 की शुरुआत आते- आते भाजपा अकेले या गठबंधन में देश में 21 राज्यों पर अपना कब्जा जमा चुकी थी। इस बीच भाजपा उत्तर भारत से निकलकर पूर्वी भारत तक अपने पैस पसार चुकी थी और पूर्वोत्तर राज्य असम में पहली बार सरकार बना चुकी थी।
लेकिन सियासत की कहानी यहीं से धीमे -धीमे बदलने लगी। मई 2018 में कर्नाटक में हुए विधनासभा चुनाव में भाजपा लाख दावे के बाद भी अपनी सरकार नहीं बना पाई और कांग्रेस-जेडीएस सरकार सत्तारुढ़ होती है। हालांकि कर्नाटक से कांग्रेस को मिली खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकती है और जोड़ -तोड़ की सियासत के चलते कांग्रेस के हाथ से कर्नाटक का किला निकल जाती है।
2018 के दिसंबर में कांग्रेस को 2014 के बाद पहली बड़ी जीत हासिल होती है जब उसने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा को पटखनी देते हुए अपनी सरकारें बना दी। इनमें मध्य प्रदेश और छ्त्तीसगढ़ ऐसे राज्य थे जहां कांग्रेस ने 15 साल के वनवास के बाद जीत का स्वाद चखा था।
इन तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली जीत उसके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं थी। हालांकि इसके बाद लोकसभा चुनाव में एक बार फिर देश में मोदी लहर देखने को मिलती है और भाजपा पहली बार 300 का आंकड़ा पाकर देश की सत्ता पर लगातार दूसरी बार कब्जा जमा लेती है और कांग्रेस 2014 के मुकाबले अपने प्रदर्शन में मामूली सुधार ही कर पाती है।
लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में फिर बाजी पलटती है। दोनों ही राज्यों में सत्ता में काबिक भाजपा के चुनावी नतीजे किसी आघात से कम नहीं थे। जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के शोर के बीच हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा का प्रदर्शन काफी फीका रहता है।
हरियाणा में भाजपा का वोट प्रतिशत लोकसभा चुनाव के मुकाबले 22 फीसदी गिरा जाता है और जिस भाजपा को लोकसभा चुनाव में 58.02 फीसदी वोट मिले थे उसको विधानसभा चुनाव में मात्र 36.44 फीसदी वोटों से संतोष करना पड़ा।
लोकसभा चुनाव में हरियाणा में सभी 10 सीटों पर कब्जा जमाने वाली भाजपा जिसने 75 पार का सपना देखा था वह 40 फीसदी सीटों पर सिमट गई और दुष्यंत चौटाला की बैसाखी के सहारे किसी तरह अपनी सत्ता बचाने में सफल हुई। वहीं हरियाणा में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जिसको 28.42 फीसदी वोट मिले थे उसके वोट प्रतिशत में मामूली गिरावट होती है लेकिन 28.13 फीसदी वोट के साथ उसकी सीटों में 21 अंकों का इजाफा हो जाता है।
वहीं महाराष्ट्र में भी 2014 के मुकाबले भाजपा के वोट प्रतिशत में दो फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत 27.8 फीसदी से घटकर 25.7 फीसदी रह गया और उसकी सीटें की संख्या 105 रह गई।
वहीं कांग्रेस जिसने 2014 के मुकाबले इस बार के चुनाव में अपने सीटों की संख्या में 2 अंकों का इजाफा करते हुए 42 से 44 कर ली लेकिन उसका वोट प्रतिशत 18 फीसदी से घटकर 15.9 फीसदी तक रह गया। 2018 की शुरुआत तक जो भाजपा देश के कुल 71 फीसदी आबादी पर अपना शासन चला रही थी वह महाराष्ट्र में सत्ता गंवाने के बाद 40 फीसदी के आसपास सिमट गई है वहीं कांग्रेस ने चुपचाप वापसी करते हुए महाराष्ट्र में सरकार गठन के साथ 25 फीसदी जतना तक अपनी पहुंच बना ली।
कांग्रेस की चुपचाप वापसी को लेकर किसी समय मोदी को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चुनावी रणनीतिक प्रशांत किशोर का यह कहना कि बिना किसी महत्वपूर्ण और सार्थक प्रयास के अपनी राजनीतिक महत्ता और सत्ता में भागीदारी बनाए रखने में कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व का कोई मुकाबला नहीं है।
देश के बदलते सियासी माहौल को लेकर वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि पहले भाजपा ने जिस तरह हिंदी हार्ट लैंड के बड़े राज्य मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ को खोया और अब महाराष्ट्र में नंबर गेम में आगे रहने के बाद सरकार बनाने से चूकना यह दिखता है कि लोग अब भाजपा के विकल्प की तलाश करने लगे है।