रविवार, 22 दिसंबर 2024
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50 रुपए की ये पुड़िया फलों को बना रही जहर, प्रतिबंध के बावजूद बाजार में मिल रहा कैल्शियम कार्बाइड

फलों और सब्जियों को पकाने वाले केमिकल दुकानों पर बिक रहे हैं खुलेआम

Calcium Carbide for Fruit Ripening
Calcium Carbide for Fruit Ripening
  • कैल्शियम कार्बाइड का भाव 2000 रुपए किलो है।
  • इससे आम, पपीता, केले जैसे फल पकाए जाते हैं।
  • लौकी को बढ़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन का इस्तेमाल।
Fruit Ripening Agents : जो हरी सब्‍जियां और फल आप खा रहे हैं वो आपके लिए हेल्‍दी नहीं, बल्‍कि स्‍लो पाइजन है। क्‍योंकि हर जगह समय से पहले पकाए गए फल और सब्‍जियां बेची जा रही हैं, जिनमें बेहद खतरनाक कैमिकल मिलाए जा रहे हैं। ये कैमिकल आपकी हेल्‍थ को दुरुस्त रखना तो दूर उल्‍टा पेट में जहर जमा कर रहे हैं। कैसे वो हम आपको बता रहे हैं। ALSO READ: चीज़ कर रहा लाखों इंदौरियों की हेल्‍थ का कबाड़ा, नकली चीज़ बांट रहा पेट, फेफड़ों और दिल की बीमारियां
 
दरअसल, फलों को जिस केमिकल से पकाया जा रहा है, उसका नाम कैल्शियम कार्बाइड (calcium carbide) है। यह केमिकल भारत में बैन है और इसके बाबजूद भी यह इंदौर जैसे शहर में खुले आम बिक रहा है। वेबदुनिया ने जब कस्टमर बनकर इंदौर के कृषि फ़र्टिलाइज़र की दुकान के मालिक आलोक सिंह (बदला हुआ नाम) से बात की तो हैरान करने वाले सच सामने आए। ALSO READ: जो चीज़ आपकी प्‍लेट में परोसा जा रहा जानते हैं कितना खतरनाक है हेल्‍थ के लिए, जानिए डायटीशियन से
 
फलों को पकाने वाला पाउडर भारत में बैन लेकिन दुकानों में खुलेआम बिक रहा:
जब वेबदुनिया टीम ने आलोक सिंह से पूछा कि क्या आपके पास कैल्शियम कार्बाइड पाउडर है तो उसने आसपास देखते हुए बहुत धीमी आवाज में बोला 'हां मिल जाएगा।' आलोक ने बताया कि मार्केट में कैल्शियम कार्बाइड का भाव 2000 रुपए किलो है क्योंकि यह भारत में बैन है।

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण  (FSSAI) द्वारा इस केमिकल को बैन किया गया है। यह पाउडर की तरह नहीं बल्कि खड़े नमक की तरह दिखता है। इसका पाउडर बनाकर फलों पर इस्तेमाल किया जाता है।
 
कौने में छिपाकर रखा था ये मसाला, 50 रूपए की एक पुड़िया:
आलोक ने इस पाउडर को बाकि प्रोडक्ट की तरह साधारण जगह पर नहीं रखा था। यह पाउडर उसकी दुकान के स्टोरेज रूम के किसी कोने में पीली थेली में रखा हुआ था। उसने हमें यह पाउडर एक छोटे से प्लास्टिक बैग में अच्छे से पैक करके दिया।

उसने बोला कि यह बहुत बास मारता है इसलिए मैंने आपको प्लास्टिक में पैक करके दिया है। किसान/वेंडर इसका पाउडर बनाते हैं और कागज़ में रखकर फालों में छिड़कते हैं। इसके बाद फल को पकने में सिर्फ 3 दिन लगते हैं। वेबदुनिया टीम ने 50 रूपए में 25 ग्राम कैल्शियम कार्बाइड ख़रीदा।
Calcium Carbide for Fruit Ripening
क्यों है कैल्शियम कार्बाइड भारत में बैन?
कैल्शियम कार्बाइड, जिसे आम तौर पर 'मसाला' के नाम से जाना जाता है। अक्सर कुछ व्यापारियों द्वारा आम, केला, पपीता जैसे फलों पर एसिटिलीन गैस छोड़ने के लिए कैल्शियम कार्बाइड उपयोग किया जाता है। एसिटिलीन गैस से फल जल्दी पकता है। FSSAI के अनुसार यह मनुष्यों के लिए हानिकारक है।

इसके सेवन से चक्कर आना, बार-बार प्यास लगना, पेट में जलन, कमजोरी, निगलने में कठिनाई, उल्टी, त्वचा में छाले जैसी समस्या हो सकती है। कैल्शियम कार्बाइड से निकलने वाली एसिटिलीन गैस व्यापारी/किसान के लिए भी उतनी ही हानिकारक है।
 
एथिलीन गैस से पकाया जाता है आम:
इसके बाद हमारी टीम ने आलोक से एथिलीन गैस के बारे में पूछा। एथिलीन गैस भी फल पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि यह केमिकल FSSAI द्वारा बैन नहीं किया गया है। एथिलीन गैस कई तरह की प्रक्रिया से बनाई जा सकती है। इस केमिकल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल आम पकाने के लिए किया जाता है।

एथिलीन गैस न सिर्फ आपको इंदौर जैसे शहर बल्कि ऑनलाइन भी आसानी से मिल जाएगी। इसका पाउडर फॉर्म भी आता है जिसका भाव 50 रुपए किलो है। हालांकि इसका भाव केमिकल प्रोसेस और ब्रांड के अनुसार बदल सकता है। लेकिन कैल्शियम कार्बाइड खुला ही बिकता है।
Calcium Carbide for Fruit Ripening
एथिलीन गैस नहीं है भारत में बैन:
आम, पपीता, केला जैसे जल्दी खराब होने वाले फलों को लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता है। इन फल को पकने के बाद लंबी दूरी तक ले जाया नहीं जा सकता क्योंकि वे खराब हो जाते हैं। इसलिए किसान/वेंडर, फलों को खराब होने से बचाने के लिए, कच्चे फलों की कटाई करते हैं। बेचने से पहले इन फलों को एथिलीन गैस और कैल्शियम कार्बाइड जैसे केमिकल से पकाते हैं। इसलिए FSSAI ने फलों को केमिकल से पकाने के लिए एथिलीन गैस के उपयोग की अनुमति दी है।
 
ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन से पकाई जाती है लोकी:
इसके बाद हमने इंदौर की अन्य फ़र्टिलाइज़र शॉप पर ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन के बारे में भी पूछा। इन फ़र्टिलाइज़र शॉप के मालिकों ने हमें बहुत तिरछी नज़रों से देखा। ऐसा इसलिए क्योंकि इस इंजेक्शन का इस्तेमाल गैर कानूनी है। इसे अधिकतर लौकी पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस इंजेक्शन को रात में लौकी पर लगाया जाता है और सुबह तक लौकी 2-3 इंच तक बढ़ी हो जाती है।
 
ऑर्गेनिक खेती के कारण ग्रो बैग की डिमांड:
हालांकि यह इंजेक्शन हमें इंदौर के कृषि फ़र्टिलाइज़र बाज़ार में आसानी से नहीं मिला। एक फ़र्टिलाइज़र दुकान के मालिक सुभाष जैन (बदला हुआ नाम) ने इस पर आक्रोश जताया और कहा कि आप इस तरह के इंजेक्शन का इस्तेमाल न करें। बता दें कि इस शुभ चिन्तक की दुकान पर भी कैल्शियम कार्बाइड मौजूद था। उसने बताया कि केमिकल से पके फल-सब्जियों के कारण अब कस्टमर ग्रो बैग का इस्तेमाल करने लगे हैं। अब लोग घर पर ही ऑर्गेनिक सब्जियों का इस्तेमाल करते हैं।
 
डायटीशियन से जानें केमिकल से पके फलों के नुकसान:
डायटीशियन डॉ प्रीति शुक्ला ने वेबदुनिया को बताया कि केमिकल से पके फल डायबिटीज का खतरा बनते हैं। इन फलों में शुगर की मात्रा ज्यादा होती है। शुगर ज्यादा होने के कारण स्किन एलर्जी, पेट में जलन, शरीर में दर्द, उल्टी और दस्त जैसी समस्या हो सकती है। इस तरह के ज्यादा फल खाने से मोटापा बढ़ता है। रोज हमें सिर्फ 100 ग्राम फल ही खाना चाहिए। ज्यादा फल खाना हमारी हेल्थ के लिए हानिकारक है।
 
क्यों बढ़ रही है ग्रो बैग की डिमांड?
ग्रो बैग में आसानी से उगने वाली कुछ सब्जी या फल उगाए जा सकते हैं। इसमें टमाटर, औषधि, पालक, मिर्ची जैसी सब्जियां उगाई जाती हैं। ये बैग इको फ्रेंडली होते हैं। इन्हें बालकनी या गार्डन में आसानी से रखा जा सकता है। इसमें मिट्टी और बीज डालें। इसके बाद नियमित पानी और देखभाल से इसमें सब्जियां उगने लगेंगी। भारत में इसकी डिमांड बढ़ने लगी है क्योंकि लोगों को इंजेक्शन और केमिकल से पके साग-सब्जियों से अब डर लगता है।
 
ऑर्गेनिक फलों की डिमांड के कारण रासायनिक खेती छोड़ने पर मजबूर किसान:
वेबदुनिया ने फलों की खेती करने वाले किसान सतीश धाकड़ (बदला हुआ नाम) से बात की। सतीश, पपीता की खेती करते हैं और उनका खेत रतलाम में मौजूद है। सतीश ने बताया कि 'ऑर्गेनिक फलों की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ने लगी है इसलिए मैं पिछले 1 साल से ऑर्गेनिक पपीता की खेती कर रहा हूं। इससे पहले मैं रासायनिक खेती करता था जिसमें फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल किया जाता था। ऑर्गेनिक और केमिकल से पके पपीता में ज्यादा अंतर नहीं होता है। हालांकि ऑर्गेनिक पपीता कम मीठा होता है। बारिश के मौसम में पके पपीते में बीज ज्यादा होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पपीता को पर्याप्त मात्रा में पानी मिलता है।'
 
बाज़ार में भले ही ऑर्गेनिक फल और सब्जी की डिमांड बढ़ रही हो लेकिन सबसे ज्यादा केमिकल से पके ही फल और सब्जी बेचे जा रहे हैं। कैल्शियम कार्बाइड जैसा केमिकल जो भारत में बैन है उसे खरीदना एवोकाडो से भी ज्यादा आसान है।