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Last Modified: बीजिंग/नई दिल्ली , सोमवार, 14 जुलाई 2025 (23:32 IST)

बिना रुकावट के कारोबार सिर्फ हमारे नहीं, पूरी दुनिया के हित में, चीनी विदेश मंत्री से बोले विदेश मंत्री एस जयशंकर

China
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ वार्ता के दौरान कहा कि भारत और चीन को तनाव कम करने समेत सीमा संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने में ‘अच्छी प्रगति’ पर काम करना चाहिए और ‘प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों एवं बाधाओं’ से बचना आवश्यक है।
 
बैठक में अपने प्रारंभिक भाषण में जयशंकर ने कहा कि द्विपक्षीय संबंध इस आधार पर ‘सकारात्मक रूप’ में विकसित हो सकते हैं कि मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए और न ही प्रतिस्पर्धा संघर्ष में बदलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि संबंध केवल पारस्परिक सम्मान, पारस्परिक हित और पारस्परिक संवेदनशीलता के आधार पर ही बनाए जा सकते हैं।
 
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत को उम्मीद है कि एससीओ की आगामी बैठक में ‘आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति’ को बरकरार रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि इसका प्राथमिक कार्य आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद से मुकाबला करना है। उनकी टिप्पणी को पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद को दिए जा रहे समर्थन के संदर्भ में देखा जा रहा है।
 
नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने वार्ता को ‘रचनात्मक और दूरदर्शी’ बताते हुए कहा कि दोनों पक्ष लोगों के बीच संपर्क को सुविधाजनक बनाने के लिए एक-दूसरे के देश की यात्रा और सीधी उड़ान कनेक्टिविटी सहित ‘‘अतिरिक्त व्यावहारिक कदम’’ उठाने पर सहमत हुए हैं।
 
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए दो दिन की चीन यात्रा पर पहुंचने के कुछ ही घंटों बाद जयशंकर ने वांग से मुलाकात की। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 2020 में हुए सैन्य गतिरोध और इसके पश्चात दोनों देशों के संबंधों में आए गंभीर तनाव के बाद जयशंकर की यह पहली चीन यात्रा है।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि विदेश मंत्री ने सीमा पार नदियों पर सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित किया, जिसमें चीनी पक्ष द्वारा जल विज्ञान संबंधी आंकड़ों का प्रावधान पुनः शुरू किया जाना भी शामिल है।
 
जयशंकर ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग के साथ भी वार्ता की और कहा कि भारत-चीन संबंधों के निरंतर सामान्य बने रहने से पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणाम प्राप्त हो सकते हैं और ‘जटिल’ वैश्विक स्थिति के मद्देनजर दोनों पड़ोसी देशों के बीच विचारों का खुला आदान-प्रदान बहुत महत्वपूर्ण है।
 
वांग के साथ बैठक में अपनी टिप्पणी में जयशंकर ने ‘‘प्रतिबंधात्मक’’ व्यापार उपायों और ‘बाधाओं’ से बचने की आवश्यकता को रेखांकित किया, जो कि महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात के साथ-साथ उर्वरकों की आपूर्ति से संबंधित मुद्दों पर बीजिंग के दृष्टिकोण के स्पष्ट संदर्भ में था। उन्होंने कहा कि हमने पिछले नौ महीनों में अपने द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में अच्छी प्रगति की है। यह सीमा पर तनाव के समाधान और वहां शांति बनाए रखने की हमारी क्षमता का परिणाम है।
 
विदेश मंत्री ने कहा कि यह आपसी रणनीतिक विश्वास और द्विपक्षीय संबंधों के सुचारू विकास का मूलभूत आधार है। अब यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम तनाव कम करने सहित सीमा से जुड़े अन्य पहलुओं पर भी ध्यान दें। जयशंकर ने नई दिल्ली के इस रुख को भी दोहराया कि भारत-चीन संबंध ‘परस्पर सम्मान, पारस्परिक हित और पारस्परिक संवेदनशीलता’ पर आधारित होने चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि पड़ोसी देशों और आज विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, हमारे संबंधों के विविध पहलू और आयाम हैं। हमारे लोगों के बीच संपर्क को सामान्य बनाने की दिशा में उठाए गए कदम निश्चित रूप से पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं।
 
जयशंकर ने कहा कि इस संदर्भ में यह भी आवश्यक है कि प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों और बाधाओं से बचा जाए। मुझे उम्मीद है कि इन मुद्दों पर और विस्तार से चर्चा होगी। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के बीच ‘‘स्थिर और रचनात्मक’’ संबंध न केवल एक-दूसरे के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए लाभकारी हैं।
 
उन्होंने कहा कि यह सबसे अच्छा तभी होगा जब संबंधों को आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता के आधार पर देखा जाए। जयशंकर ने कहा कि हम पहले भी इस बात पर सहमत हुए हैं कि मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए और न ही प्रतिस्पर्धा कभी संघर्ष में बदलनी चाहिए। इस आधार पर, हम अब अपने संबंधों को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं। 
 
जयशंकर ने कहा कि द्विपक्षीय संबंधों के लिए दोनों पक्षों को ‘‘दूरदर्शी दृष्टिकोण’’ अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने पिछले वर्ष अक्टूबर में कज़ान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच हुई बैठक का भी उल्लेख किया।
 
उन्होंने कहा कि हमारे नेताओं की बैठक के बाद से भारत-चीन संबंध धीरे-धीरे सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हमारी जिम्मेदारी इस गति को बनाए रखने की है। जयशंकर ने कहा कि हाल के दिनों में, हम दोनों को अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में मिलने और रणनीतिक संवाद करने के कई अवसर मिले हैं। हमारी उम्मीद है कि अब यह नियमित होगा और एक-दूसरे के देशों में होगा।’’
 
विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों पक्षों ने राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मनाई है और पांच साल के अंतराल के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू होने की सराहना की।
 
विदेश मंत्रालय ने कहा कि जयशंकर ने द्विपक्षीय संबंधों के सुचारू विकास के लिए सीमा पर शांति और सौहार्द के ‘‘सकारात्मक प्रभाव’’ पर भी प्रकाश डाला और तनाव कम करने तथा सीमा प्रबंधन की दिशा में निरंतर प्रयासों का समर्थन किया।
 
जयशंकर और वांग ने साझा हित के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा की तथा द्विपक्षीय यात्राओं और बैठकों सहित संपर्क में बने रहने पर सहमति व्यक्त की। विदेश मंत्री ने चीनी पक्ष को एससीओ की सफल अध्यक्षता के लिए शुभकामनाएं दीं और कहा कि भारत ‘‘अच्छे परिणाम एवं निर्णय’’ सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
 
बीजिंग में जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, वांग ने कहा कि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में बड़ा परिवर्तन आया है और शक्तिशाली देशों द्वारा एकतरफा संरक्षणवाद एवं धौंस जमाए जाने जैसी चीजों ने विश्व के समक्ष गंभीर चुनौतियां उत्पन्न कर दी हैं।
 
उन्होंने कहा कि दो प्रमुख पूर्वी सभ्यताओं और प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं के नजदीक स्थित होने के कारण चीन और भारत को सद्भावना के साथ रहना चाहिए तथा पारस्परिक सफलता हासिल करनी चाहिए।
 
हान के साथ अपनी बैठक में जयशंकर ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच विचारों का खुला आदान-प्रदान ‘‘बहुत महत्वपूर्ण’’ है। वांग और हान के अलावा जयशंकर ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय विभाग के मंत्री लियू जियानचाओ से भी मुलाकात की।
 
जयशंकर की इस यात्रा से तीन सप्ताह से भी कम समय पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीनी बंदरगाह शहर किंगदाओ की यात्रा की थी। पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध मई 2020 में शुरू हुआ और उसी वर्ष जून में गलवान घाटी में घातक झड़प के परिणामस्वरूप दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में गंभीर तनाव पैदा हो गया था।
 
पिछले वर्ष 21 अक्टूबर को हुए समझौते के तहत डेमचोक और देपसांग के अंतिम दो टकराव बिंदुओं से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद गतिरोध प्रभावी रूप से समाप्त हो गया। प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग के बीच कज़ान में हुई बैठक में विभिन्न वार्ता तंत्रों को फिर से सक्रिय करने का निर्णय लिया गया।   भाषा Edited by: Sudhir Sharma 
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