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Last Updated :नई दिल्ली , मंगलवार, 11 जून 2024 (18:21 IST)

मोदी के आभामंडल में डूबे कार्यकर्ता, भागवत के बाद अब आर्गेनाइजर ने दिखाया BJP को आईना

भागवत ने मणिपुर हिंसा को लेकर दी थी नसीहत

मोदी के आभामंडल में डूबे कार्यकर्ता, भागवत के बाद अब आर्गेनाइजर ने दिखाया BJP को आईना - After RSS chief Bhagwat, now the organizer shows the mirror to BJP
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी एक पत्रिका ने कहा है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के ‘अतिआत्मविश्वासी’ कार्यकर्ताओं और कई नेताओं का सच से सामना कराने वाले हैं। पत्रिका के मुताबिक, नेता और कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi ) के आभामंडल के आनंद में डूबे रह गए और उन्होंने आम जन की आवाज को अनदेखा कर दिया।
 
‘आर्गेनाइजर’ पत्रिका के ताजा अंक में छपे एक लेख में यह भी कहा गया कि आरएसएस भाजपा की ‘जमीनी ताकत’ भले ही न हो लेकिन पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने चुनावी कार्य में सहयोग मांगने के लिए स्वयंसेवकों से संपर्क तक नहीं किया।
इसमें कहा गया है कि चुनाव परिणामों में उन पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी स्पष्ट है, जिन्होंने बगैर किसी लालसा के काम किया। इनके स्थान पर सोशल मीडिया तथा सेल्फी संस्कृति से सामने आए कार्यकर्ताओं को महत्व दिया गया।
 
अतिआत्मविश्वास ले डूबा : आरएसएस के आजीवन सदस्य रतन शारदा ने लेख में उल्लेख किया, ‘‘2024 के आम चुनाव के परिणाम अतिआत्मविश्वास से भरे भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए सच्चाई का सामना कराने वाले हैं। उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का 400 से अधिक सीटों का आह्वान उनके लिए एक लक्ष्य था और विपक्ष के लिए एक चुनौती।’’
 
भाजपा लोकसभा चुनाव में 240 सीटों के साथ बहुमत से दूर रह गई है। लेकिन उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 293 सीटें मिली हैं। कांग्रेस को 99 सीटें जबकि ‘इंडिया’ गठबंधन को 234 सीटें मिलीं।
 
सेल्फी से लक्ष्य नहीं हासिल किए जाते : चुनाव के बाद, जीतने वाले दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी कांग्रेस को समर्थन देने का वादा किया है। इससे ‘इंडिया’ गठबंधन के सांसदों की संख्या 236 हो गई है। शारदा ने कहा कि सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी साझा करने से नहीं, बल्कि मैदान पर कड़ी मेहनत से लक्ष्य हासिल किए जाते हैं।
 
आभा मंडल का ले रहे थे आनंद : उन्होंने कहा कि चूंकि वे अपने आप में मगन थे, मोदीजी के आभामंडल का आनंद ले रहे थे, इसलिए आम आदमी की आवाज नहीं सुन रहे थे।’’ आरएसएस विचारक ने लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन के पीछे ‘अनावश्यक राजनीति’ को भी कई कारणों में से एक बताया।
 
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र अनावश्यक राजनीति और ऐसी जोड़तोड़ का एक प्रमुख उदाहरण है जिससे बचा जा सकता था। अजित पवार के नेतृत्व वाला राकांपा गुट भाजपा में शामिल हो गया जबकि भाजपा और विभाजित शिवसेना (शिंदे गुट) के पास आरामदायक बहुमत था। शरद पवार दो-तीन साल में फीके पड़ जाते क्योंकि राकांपा अपने भाइयों के बीच अंदरूनी कलह से ही कमजोर हो जाती। 
 
शारदा ने कहा, ‘‘यह गलत सलाह वाला कदम क्यों उठाया गया? भाजपा समर्थक आहत थे क्योंकि उन्होंने वर्षों तक कांग्रेस की इस विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, उन्हें सताया गया था। एक ही झटके में भाजपा ने अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी। महाराष्ट्र में नंबर वन बनने के लिए वर्षों के संघर्ष के बाद आज वह सिर्फ एक और राजनीतिक पार्टी बन गई है और वह भी बिना किसी अलग पहचान वाली।’’
 
भाजपा ने इस चुनाव में महाराष्ट्र में खराब प्रदर्शन किया क्योंकि वह कुल 48 में से 2019 के 23 निर्वाचन क्षेत्रों के मुकाबले केवल नौ सीटें जीत सकी। शिंदे गुट के नेतृत्व वाली शिवसेना को सात सीटें और अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को सिर्फ एक सीट मिली है।
 
शारदा ने किसी नेता का नाम लिए बगैर कहा कि भगवा आतंकवाद को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने वाले, हिंदुओं पर अत्याचार करने वाले, 26/11 को ‘आरएसएस की शाजिश' कहने वाले तथा आरएसएस को आतंकवादी संगठन बताने वाले कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करने जैसे फैसलों ने भाजपा की छवि को ‘खराब’ किया और इससे आरएसएस से सहानुभूति रखने वालों को भी ‘बहुत चोट’ पहुंची।
 
इस सवाल पर कि क्या आरएसएस ने इस चुनाव में भाजपा के लिए काम किया है या नहीं, शारदा ने कहा, ‘‘मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि आरएसएस भाजपा की जमीनी ताकत नहीं है। असल में, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के अपने कार्यकर्ता हैं।’’
 
उन्होंने कहा कि मतदाताओं तक पहुंचने, पार्टी का एजेंडा समझाने, साहित्य बांटने और वोटर कार्ड बांटने जैसे नियमित चुनावी कार्य पार्टी की जिम्मेदारी हैं।
 
उन्होंने कहा कि आरएसएस उन मुद्दों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ा रहा है जो उन्हें और राष्ट्र को प्रभावित करते हैं। 1973-1977 की अवधि को छोड़कर, आरएसएस ने सीधे राजनीति में भाग नहीं लिया।
 
संघ विचारक ने कहा कि इस बार भी आधिकारिक तौर पर तय किया गया था कि आरएसएस कार्यकर्ता 10-15 लोगों की स्थानीय, मोहल्ला, इमारत, कार्यालय स्तर की छोटी-छोटी बैठकें आयोजित करेंगे और लोगों से कर्तव्य के तौर पर मतदान करने का अनुरोध करेंगे। इसमें राष्ट्र निर्माण, राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवादी ताकतों को समर्थन के मुद्दों पर भी चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि अकेले दिल्ली में इस तरह की 1.20 लाख सभाएं आयोजित की गईं।
 
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, चुनाव कार्य में (आरएसएस) स्वयंसेवकों का सहयोग लेने के लिए, भाजपा कार्यकर्ताओं, स्थानीय नेताओं को अपने वैचारिक सहयोगियों तक पहुंचने की आवश्यकता थी। क्या उन्होंने ऐसा किया? मेरा अनुभव और बातचीत मुझे बताती है, उन्होंने ऐसा नहीं किया। 
 
उन्होंने कहा कि क्या यह सुस्ती, आराम और अति आत्मविश्वास की भावना थी कि ‘आएगा तो मोदी ही, अबकी बार 400 पार? मुझे नहीं पता।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सेल्फी पोस्ट करके दिखावा करना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।’’ उन्होंने कहा कि अगर भाजपा स्वयंसेवक, आरएसएस तक नहीं पहुंचे तो उन्हें जवाब देना होगा कि उन्हें ऐसा क्यों लगा कि इसकी आवश्यकता नहीं थी? Edited by : Sudhir Sharma इनपुट भाषा