Delhi MCD Election 2022: आखिर क्यों हारी भाजपा? दिल्ली MCD चुनाव में AAP की जीत के 5 बड़े कारण
दिल्ली नगर निगम चुनाव (Delhi MCD Election) में अन्तत: भाजपा का 15 साल पुराना किला ध्वस्त हो ही गया। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा आखिर एमसीडी में अपनी सत्ता क्यों नहीं बचा पाई? और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने ऐसा क्या कर दिया कि उनका जादू दिल्लीवासियों पर चल गया? इस चुनाव में दिल्ली के लोगों ने ऐसी 'झाड़ू' चलाई कि भाजपा औंधे मुंह गिर गई। हालांकि इसके पीछे एक नहीं कई कारण हैं, जिसके चलते भाजपा एमसीडी से बाहर हो गई।
एंटी-इन्कंबेंसी : केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बावजूद जिस तरह से एमसीडी में अरविन्द केजरीवाल नीत आम आदमी पार्टी को सीटें मिली हैं, उससे साफ लगता है कि लोगों में भाजपा को लेकर काफी नाराजगी थी। उन्होंने पहले ही मन बना लिया था कि इस बार भाजपा को एमसीडी कुर्सी नहीं सौंपनी है। यही कारण है केजरीवाल 130 के लगभग सीटें जीतने में सफल रहे। यदि पिछले इतिहास पर नजर डालें तो भाजपा ने 2012 में 138 तथा 2017 में 181 सीटें जीतने में सफलता प्राप्त की थी। लेकिन, 2022 में उसका विजय रथ रुक गया। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चुनाव प्रचार में उतारने के बाद भी भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी।
केजरीवाल का जादू : जिस तरह केन्द्र में नरेन्द्र मोदी का जादू चलता है उसी तरह दिल्ली के लोगों में अरविन्द केजरीवाल का जादू सिर चढ़कर बोलने लगा है। झुग्गी झोपड़ी आवासीय योजना, मुफ्त बिजली योजना, गरीब विधवा बेटी और अनाथ बालिका शादी योजना, दिल्ली ड्राइवर कोरोना हेल्प योजना, दिल्ली इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी, राशन कार्ड योजना, श्रमिक भत्ता योजना आदि योजनाओं के चलते खासकर निचले तबके के लोगों में केजरीवाल का काफी असर है।
भाजपा को उल्टा पड़ा नकारात्मक प्रचार : भाजपा ने जिस तरह से चुनाव के समय एक के बाद एक आप नेताओं से जुड़े वीडियो वायरल किए, उसका लोगों में नकारात्मक असर ही देखने को मिला। दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा को यह दांव उलटा पड़ गया। आप सरकार के मंत्री सत्येन्द्र जैन के जेल के वीडियो वायरल होने के बावजूद लोगों ने आम आदमी पार्टी के पक्ष में मतदान किया।
दंगा प्रभावित इलाकों में ज्यादा वोटिंग : कहा जा रहा है कि दिल्ली के दंगा प्रभावित और कमजोर वर्ग के इलाकों में तुलनात्मक रूप से ज्यादा मतदान हुआ है। इसका भी फायदा आम आदमी पार्टी को मिला है। मुस्लिम एवं दंगा प्रभावित वार्डों- सीलमपुर, मुस्तफाबाद, कर्दमपुरी, नेहरू विहार, चौहान बांगर आदि इलाकों में 60 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ। इसके साथ ही शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में ज्यादा मतदान देखने को मिला। ऐसा भी लगता है कि भाजपा से जुड़े मतदाताओं ने वोटिंग को लेकर अरुचि दिखाई। दिल्ली में कुल 50.48 फीसदी मतदान हुआ है। राजधानी के आधे ही लोगों ने स्थानीय सरकार को लेकर रुचि दिखाई।
आप ने आक्रामक तरीके से लड़ा चुनाव : उपराज्यपाल से लगातार विवाद एवं ईडी के छापों के बीच आम आदमी पार्टी ने आक्रामकता के साथ चुनाव लड़ा। मनीष सिसोदिया के यहां पड़े छापों को आप ने अपने पक्ष में भुनाया। केजरीवाल ने कई मौकों पर कहा कि सिसोदिया निर्दोष हैं, यदि वे दोषी होते तो उन्हें कभी का गिरफ्तार कर लिया जाता। कट्टर ईमानदार बनाम कट्टर भ्रष्ट की जंग में आखिरकार केजरीवाल ने बाजी मार ही ली।
इसमें कोई संदेह नहीं कि केजरीवाल का बढ़ता कद आने वाले समय में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा। गुजरात में भी इस बार आप को अच्छे वोट मिले हैं। कई इलाकों में तो आप का वोट प्रतिशत प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस से ज्यादा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि 2027 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा का सीधा मुकाबला आम आदमी पार्टी से हो।
Writter & Edited by: Vrijendra Singh Jhala