नई दिल्ली। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने के बाद पार्टी को मिली सफलता से न केवल वह पार्टी में एकछत्र नेता बनकर उभरे बल्कि उनका राजनीतिक कद बढ़ा है तथा यह माना जाने लगा है कि वह अगले कुछ महीनों में होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
एक वर्ष पहले गांधी के अध्यक्ष संभालने के बाद पार्टी ने 2018 में चुनावी रण में अच्छा प्रदर्शन किया जिसके चलते वह भाजपा को तीन राज्यों में सत्ता से बाहर करने में सफल हुई जबकि इससे पहले उसे लगातार एक के एक बाद शिकस्त का सामना करना पड़ रहा था। कर्नाटक में जिस तरह पार्टी के रणनीतिकारों ने तेजी और चतुराई से काम किया उसके आगे भाजपा की एक नहीं चल पाई और विधानसभा में बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद सत्ता से बाहर होना पड़ा।
पिछले नवंबर-दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ सीधी लड़ाई वाले तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाई उससे न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा बल्कि गांधी का राजनीतिक कद भी बढ़ा। द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) जैसे सहयोगी दल ने उन्हें विपक्षी दलों की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने का सुझाव दिया वहीं कांग्रेस की कट्टर विरोधी रही शिवसेना ने भी गांधी के नेतृत्व की सराहना की।
बीते वर्ष गांधी ने विभिन्न राजनीतिक मंचों में जिस आत्मविश्वास से प्रभावी उपस्थिति दर्ज की उससे उनकी छवि में जबरदस्त सुधार हुआ और जनमानस को उनके व्यक्तित्व में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिला। कांग्रेस के दिल्ली में हुए 84वें महाअधिवेशन में पार्टी अध्यक्ष के रूप में गांधी के नाम पर मोहर लगी थी और इसमें उन्होंने जिस विजन के साथ अपनी बात रखी उससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उन पर भरोसा बढ़ा और उन्हें लगा कि पार्टी की कमान सही हाथों में है।
कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद श्रीमती सोनिया गांधी ने भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संदेश दिया था कि राहुल गांधी कांग्रेस के एकमात्र नेता हैं। श्रीमती गांधी ने फरवरी में कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में पार्टी के नेताओं स्पष्ट शब्दों में संदेश देते हुए कहा कि 'राहुल अब सबके बॉस हैं। वह मेरे भी बॉस हैं।'
गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने पहले गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रभावशाली प्रदर्शन किया और फिर कर्नाटक में गठबंधन सरकार बनाकर समर्थकों का जो विश्वास अर्जित किया साल के अंत तक तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनाकर इस विश्वास को और मजबूती प्रदान की। इससे कांग्रेस कार्यकर्ता गांधी के मुरीद हो गए और विपक्षी दलों की गठबंधन की राजनीति में भी उनका वजन बढ़ा है। बाद में द्रमुक के प्रमुख स्टालिन ने खुले मंच से कहा कि गांधी विपक्षी दलों की तरफ से प्रधानमंत्री पद का चेहरा है।
गांधी के व्यक्तित्व में हाल के वर्षों बड़ा बदलाव आया है और उन्होंने अपनी आलोचनाओं और विरोधियों की टिप्पणियों पर ध्यान दिए बिना अपनी बात पूरे जोर-शोर से सामने रखनी शुरू कर दी। उन्होंने स्वयं पत्रकारों से कहा कि उनके विरोधी उन्हें क्या नाम देते हैं और क्या कहते हैं इससे उन्हें अब कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि आलोचना सुनते-सुनते उनकी चमड़ी बहुत मोटी हो चुकी है इसलिए अब इनका उन पर कोई असर नहीं होता। उन्होंने स्वीकार किया कि बदले माहौल में किस तरह की राजनीति करनी है यह सब भी उन्होंने आलोचना करने वालों से सीखा है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने विदेशों में भारतीय समुदाय के लोगों से उसी तर्ज पर मिलना शुरू किया जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिलते रहे हैं। अमेरिका और खाड़ी देशों की यात्रा के दौरान उन्होंने भारतीय समुदाय के लोगों से मिलकर उनसे जो बात की उससे वह खासे चर्चा में रहे और उनका व्यक्तित्व नए रूप में सामने आया।
इसके अलावा उन्होंने मंदिरों में जाना शुरू किया है और त्रिपुंड लगाकर जनता के बीच जाकर यह संदेश देने का पूरा प्रयास किया कि वह भी हिंदू हैं और उन्हें भी अपने देवी-देवताओं पर भरोसा है। बीते साल इस संदर्भ में उन्होंने कैलास मानसरोवर की दुर्गम यात्रा कर यह सिद्ध किया कि वह भी किसी ‘शिवभक्त’ से कम नहीं हैं। इस क्रम में ‘जनेऊधारी’ के रूप में और अपने गोत्र का नाम बताने को लेकर भी वह खूब सुर्खियों में रहे। चुनाव प्रचार के दौरान जिस क्षेत्र में भी गए वहां के प्रसिद्ध मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की और लोगों का विश्वास जीता।
कांग्रेस ने साल की शुरुआत से ही सरकार के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाए रखा। साल के पहले दिन उसने असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का मुद्दा उठाया और मोदी सरकार को घेरते हुए कहा कि उसे असम के शांति समझौते 1985 का अनुपालन करना चाहिए। यह समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया था।
गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने बीते वर्ष में जिस तेवर के साथ मोदी और उनकी सरकार पर हमले शुरू किए उसने सरकार की बेचैनी जरूर बढ़ाई है। गांधी का हर हमला सीधे मोदी पर होता है। राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर उन्होंने मोदी को पूरे साल घेरे रखा और सरकार इस पर सफाई देते दिखी। भ्रष्टाचार के पुराने मामलों को लेकर भाजपा की ओर से गांधी परिवार पर लगातार हमलों का भी उन पर असर पड़ता नहीं दिखा। पीछे हटने की बजाय गांधी ने प्रधानमंत्री के विरुद्ध अपने आरोपों को और धार दी।
राफेल मसले पर तो गांधी ने खुद कई प्रेस कांफ्रेंस की और प्रधानमंत्री से लगातार इस मुद्दे पर सवाल पूछते रहे हैं। उनका यह भी आरोप था कि मोदी कांग्रेस द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब नहीं देते हैं। पार्टी ने मोदी सरकार पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को बर्बाद करने का भी आरोप लगाया। उनका यह भी आरोप रहा है कि सरकार नेहरू गांधी की विरासत को बदलना चाहती है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने मोदी को ‘तानाशाह’ बताकर लगातार कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है। इस क्रम में उनका सबसे तगड़ा हमला यह था कि मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कभी प्रेस से संवाद नहीं किया है। देश को जनता से जुड़े सवालों का जवाब नहीं दिया है। उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री के पास सवालों का जवाब नहीं हैं इसलिए वह लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस से बच रहे हैं।
सरकार पर भय, डर और आतंक का माहौल बनाने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने कहा कि मोदी सरकार ने उस व्यक्ति, संस्था और राजनीतिक पार्टी का दमन किया है जिसकी बात उसको पंसद नहीं आती या जो उसकी नीतियों के खिलाफ बोलता है। पार्टी का आरोप है कि इस सरकार ने अपने कार्यकाल में उन पत्रकारों और संस्थानों को निशाना बनाया है, जिन्होंने सरकार की गुणवत्ता को सराहा नहीं है।
पार्टी ने डोकलाम में चीन के कब्जे तथा पाकिस्तानी आतंकवादियों के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाए जाने पर भी सरकार को खूब घेरे रखा और आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ने अपने भिन्न-भिन्न बयानों से इस बारे में देश को गुमराह किया है।
उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों के प्रेस कांफ्रेंस करने को भी कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाया और इसके बहाने विपक्षी एकता को साधने का भी प्रयास किया। विपक्ष के 15 राजनीतिक दलों के 114 सांसदों के हस्ताक्षरित ज्ञापन को कांग्रेस के नेतृत्व में राष्ट्रपति को सौंपा गया।