Last Updated :नई दिल्ली (भाषा) , बुधवार, 9 जुलाई 2014 (20:02 IST)
हिरासत में होने वाली मौतों में इजाफा
देश में हिरासत में होने वाली मौतों में लगातार बढ़ोतरी के मद्देनजर केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश जारी कर इस प्रकार के किसी भी मामले की सूचना 24 घंटे के भीतर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को देने को कहा है।
केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने यह जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2007-08 में पुलिस की हिरासत में हुई मौतों की संख्या 188 थी जबकि यह आँकड़ा वर्ष 2006-07 में 118 था। वर्ष 2004-05 में यह संख्या 136 थी और उसके अगले साल आँकड़ा बढ़कर 139 हो गया।
जायसवाल ने बताया राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हिरासती हिंसा साबित होने वाले मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ विभागीय या अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है।
उन्होंने बताया कि पिछले तीन सालों तथा मौजूदा साल के दौरान एनएचआरसी ने आठ मामलों में अनुशासनात्मक तथा तीन मामलों में सजा दिए जाने की सिफारिश की।
उन्होंने साथ ही बताया कि एनएचआरसी ने पुलिस हिरासत में मौत के मामलों में 69.45 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी फैसला दिया।
हिरासती मौतों के मामले में वृद्धि से चिंतित गृह मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार सभी राज्यों को महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिनका पालन सभी प्रशासनों को गिरफ्तारियों के समय करना होगा।
इसके साथ ही राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को इन दिशा-निर्देशों के क्रियान्वयन पर करीब से नजर रखने को भी कहा गया है।
गृह मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक के जरिये सीआरपीसी में संशोधन तथा गिरफ्तारी के संबंध में अन्य प्रावधान किए गए हैं।
सीआरपीसी की धारा 176 में पहले ही संशोधन करके यह व्यवस्था की गई है कि पुलिस हिरासत के दौरान किसी व्यक्ति की मौत, लापता होने या किसी महिला के बलात्कार की स्थिति में मामले की न्यायिक जाँच अनिवार्य होगी।
मौत के मामले में शव का पोस्टमार्टम मौत के 24 घंटे के भीतर करवाना होगा। इसके अलावा पुलिस तथा केन्द्रीय अर्धसैनिक बलों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में मानवाधिकारों को भी शामिल किया गया है।
सूत्रों ने बताया कि मानवाधिकारों के मामलों में पुलिस को सभी स्तरों पर संवेदनशील बनाया जा रहा है। इसके साथ ही राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगों का गठन करने को कहा गया है।
जायसवाल ने बताया कि लेकिन कई राज्य हैं जिन्होंने केन्द्र द्वारा बार-बार कहे जाने के बावजूद इस दिशा में कदम नहीं उठाया है।