भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाता है यह, कैसे...पढ़ें अगले पेज पर...
कितनी ऊंचाई पर उतरा था यह विमान... पढ़ें अगले पेज पर....
मजबूत सी-130, अमेरिका के सी- 17 ग्लोबमास्टर- III स्ट्रैटेजिक एयरलिफ्ट एयरक्राफ्ट के जैसा ही बड़ा है, जिसे अमेरिका में इस्तेमाल किया जाता है। ये विमान अधूरे बने रनवे पर एक छोटे एयरबेस पर उतर सकता है। भारतीय वायुसेना (आईएएफ) अगस्त 2013 में वास्तविक नियंत्रण रेखा से सिर्फ सात किलोमीटर दूर और समुद्र तल से 16614 फीट की ऊंचाई पर, पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी पर एक सी-130 जे उतार चुकी है। इस उदाहरण से सिद्ध होता है कि इस विमान का हमारी सामरिक क्षमता की दृष्टि से कितना महत्व है।
मात्र एक घटना से हम इसके महत्व को समझ सकते हैं। भारतीय वायु सेना के सी 130जे-30 सुपर हरक्यूलिस विमान ने दुनिया की सबसे उंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) पर एक महत्वपूर्ण क्षमता प्रदर्शन के तहत 20 अगस्त 2013 को लैंडिग की थी। कमांडिंग अधिकारी ग्रुप कैप्टन तेजबीरसिंह और 'वील्ड वाइपर' के साथियों ने वायु सेना मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अपने गृह हवाई अड्डे हिंडन से उड़ने के बाद 16614 फीट की उंचाई पर स्थित अक्साई चीन की हवाईपट्टी दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) को छुआ था।
दौलत बेग ओल्डी चीन की तरफ जाने वाले प्राचीन रेशम मार्ग पर एक महत्त्वपूर्ण अग्रिम चौकी क्षेत्र है। सेना का यह ठिकाना वर्ष 1962 के भारत-चीन संघर्ष के समय बनाया गया था। उत्तरी हिमालय क्षेत्र में स्थित इस सेना के रणनीतिक ठिकाने ने अब एक बार फिर से महत्त्व प्राप्त कर लिया है। इस अड्डे को वायुसेना ने भारतीय सेना के साथ मिलकर फिर से तब सक्रिय किया जब दो इंजन वाला एएन 32 चंडीगढ़ से उड़कर 43 वर्षों के अंतराल के बाद यहां उतरा था।
इस श्रेणी के विमान द्वारा सबसे अधिक ऊंचाई पर लैंडिंग की यह उपलब्धि उसे विश्व कीर्तिमान की योग्यता प्रदान करती है। यह उपलब्धि सैनिक बलों को विकसित क्षमताओं की विरासत के दोहन के योग्य बनाती है और एक बड़े नैतिक बल प्रोत्साहन का भी काम करेगी। यह इस तथ्य को भी रेखांकित करती है कि भारतीय वायुसेना, भारतीय सेना के समर्थन के लिए ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में ऑपरेशन चलाने में भी सक्षम है।
कुछ समय पहले अमेरिका के पूर्व दक्षिण एशियाई मामलों के सहायक मंत्री राबर्ट ब्लैक ने कहा था कि इन सौदों से भारतीय वायुसेना की मालवाहन और मानवीय प्रतिक्रिया क्षमता में काफी वृद्धि होगी। इस क्षमता से युक्त भारत अपने क्षेत्र में एकमात्र देश होगा जिससे उसे वैश्विक मामलों में अपनी भूमिका बढ़ाने में मदद मिलेगी। इन सभी विमानों की आपूर्ति के बाद भारत सी-17 विमानों के दूसरे सबसे बड़े बेड़े वाला देश हो जाएगा।
यह ऑपरेशन सफल नहीं होता यदि हर्क्यूलिस नहीं होता... पढ़ें अगले पेज पर....
इस संबंध में एक दूसरा उदाहरण है कि ऑपरेशन राहत में इसकी भूमिका। उत्तराखंड में बाढ़ की विनाशलीला के बाद जिंदा बचे लोगों को पहाड़ों पर से निकालना एक बहुत कठित काम था। मौसम ठीक होने पर तो उत्तराखंड के आसमान में दर्जनों हेलीकॉप्टर मंडराते दिखते हैं, लेकिन कुदरत की विनाश लीला के बाद मौसम बहुत अधिक खराब था तब इस विमान की सेवाएं ली गई थीं। इन हेलीकॉप्टरों के जरिए ही जगह-जगह फंसे लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाई गई और लोगों को बचा कर सुरक्षित जगह पर लाया जा सका।
वायुसेना ने इस मिशन का नाम दिया था ऑपरेशन राहत। ये ऑपरेशन सफल नहीं हो पाता अगर गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर तैनात भारी-भरकम सी-130 जे विमान ने एक विशेष मिशन अंजाम नहीं दिया होता। यह स्थिति साफ होते ही कि मौजूदा हालात में बचाव का सबसे बड़ा जरिया हेलीकॉप्टर हैं, निजी हेलीकॉप्टरों समेत आर्मी और वायुसेना के पायलटों ने रेसक्यू मिशन पर उड़ना शुरू कर दिया। इसके साथ ही तमाम एयरबेस पर हवाई ईंधन की कमी भी महसूस होने लगी।
इसी मौके पर विशाल सी-130 जे सुपर हरक्यूलिस विमान काम आया, जो अपनी टंकी में ईंधन भरकर धारसू एयरबेस ले गया। इसने एक खाली पड़े हेलीकॉप्टर में अपनी टंकी का 8000 लीटर ईंधन भर दिया। इसके साथ ही राहत अभियान ने गति पकड़ ली। यही नहीं, एक और सी-130 जे ने हरसिल समेत राज्य के कई इलाकों में अपने आधुनिक रडार के जरिए रेकी की। इस रेकी की ही मदद से पता लगाया जा सका कि किस इलाके में कितने लोग फंसे हो सकते हैं और कहां कितनी बड़ी तबाही हुई है। इस सूचना के मिलने के बाद वायुसेना के आठ मी-17 और मी-17वी5 हेलीकॉप्टरों ने हर मुश्किल हालात में चुनौतीपूर्ण रेसक्यू मिशन अंजाम दिया था।
भारतीय वायुसेना में शुमार हुए पहले सी-130जे विमान के बाद अब अमेरिका ने इस कुनबे के दूसरे विमान बेचने की कोशिशें भी तेज कर दी है। विमान निर्माता अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन की कोशिश अब भारत को तूफानों की पड़ताल में माहिर हरिकैन हंटर विमान बेचने की है। भारी मालढोही सी-130जे विमान के प्लेटफॉर्म पर बने हरिकैन हंटर विमान में वातावरण के छोटे से छोटे बदलावों को भी पकड़ने की क्षमता रखते हैं।
अमेरिकी खेमे की कोशिश यह विमान प्रधानमंत्री की अगुआई वाले राष्ट्रीय आपदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनडीएमए) को बेचने की है। कंपनी के अधिकारियों का दावा है कि इस संबंध में हुई मुलाकातों के बाद एनडीएमए ने विमान खरीदने में रुचि दिखाई है। उनका कहना है कि फिलहाल भारत में मौसम का आकलन मुख्यत: जमीन पर स्थित रडार नेटवर्क के सहारे होता है। ऐसे में यह विमान मौसम विशेषज्ञों और आपदा प्रबंधन से जुड़े लोगों को आसमान में हो रहे मौसमी बदलावों को पढ़ने की बेहतर क्षमता दे सकता है।
ऐसी दुर्घटनाओं से हमारी रक्षा तैयारियों को पलीता लग सकता है, इससे सभी संबंधित लोगों को यह जानना और समझना होगा कि इस दुर्घटना का कारण क्या है और इस इस दुर्घटना को रोका जा सकता था ? जब तक हम ऐसा नहीं कर पाते हैं तो हम अपनी इस हालत के लिए खुद ही जिम्मेदार होंगे और हमारी तकनीकी श्रेष्ठता कोई काम नहीं आ सकेगी।