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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली (भाषा) , मंगलवार, 23 अक्टूबर 2007 (12:25 IST)

बेबुनियाद शक मानसिक रोग का सूचक

शिजोफ्रेनिया डॉ. राकेश चड्ढा डॉ. राजेश सागर
तेजी से विकसित हो रहे इस समाज में यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखें तो बेबुनियाद किसी पर शक, वहम करता हो, अपने आप में खोया रहता हो और डरता हो, सामाजिक और पारिवारिक कार्यकलापों में रुचि नहीं लेता हो तथा अपने घर से बिलकुल बाहर नहीं निकलता हो, तो आप समझ लें कि वह व्यक्ति शिजोफ्रेनिया का शिकार हो सकता है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के डॉ. राकेश चड्ढा और डॉ. राजेश सागर ने बताया कि उपयुक्त सभी लक्षण शिजोफ्रेनिया रोग के सूचक हैं। यह एक गंभीर मानसिक रोग है और भारत में करीबन एक प्रतिशत लोग इस रोग से पीडि़त हैं।

उन्होंने बताया कि यहाँ पर यह बात समझना जरूरी है कि अकसर यह बीमारी धीरे-धीरे शुरू होती है। एकाग्रता में कमी, अपनी ही दुनिया में खोए रहना, हलका चिड़चिड़ापन, कार्यकुशलता और सामाजिक मेलजोल में कमी तथा नींद और भूख में कमी इस रोग के शुरुआती लक्षण हैं।

उन्होंने कहा कि इसके रोगी को कई प्रकार के विभ्रम हो सकते हैं और कानों में अदृश्य लोगों की आवाजें सुनाई देती हैं। यहाँ विभ्रम का अर्थ है कि रोगी एक पक्की गलत धारणा शुरू कर देता है, जो बिलकुल बेबुनियाद होती है। यहाँ तक क‍ि रोगी के परिजन और मित्र भी इसे सच नहीं मानते हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि इसके रोगी कई प्रकार के शक पाल लेते हैं, जैसे उनको किसी साजिश या षड्‍यंत्र में फँसाया जा रहा है। ऐसे लोगों को देखकर लोग हँसते हैं और उनकी चर्चा करते हैं।

डॉ. चड्ढा और डॉ. सागर ने बताया कि इसके रोगी को ऐसी आवाजें सुनाई देती हैं जो वास्तव में नहीं होती हैं और रोगी इन्हें सच मानता है, जबकि इन आवाजों का वास्तविक स्रोत बाहरी न होकर मरीज के दिमाग में ही होता है।

रोगी के लिए ये विभ्रम और अदृश्य लोगों की आवाजें अटल सत्य होती हैं, इसलिए वह डरा-डरा और बेचैन नजर आता है और अपने घर से बिलकुल बाहर नहीं निकलता है।

यह पूछे जाने पर कि ऐसे रोगी की देखभाल कैसे की जाए, उन्होंने कहा कि लक्षणों के प्रकट होते ही इलाज शीघ्र से शीघ्र शुरू कर देना चाहिए। सुरक्षित, सफल और प्रभावकारी इलाज दवाइयों के रूप में आज उपलब्ध हैं। यदि इन दवाओं का सेवन डॉक्टर की सलाह के अनुसार किया जाए तो ये दवाइयाँ दिमाग में रासायनिक असंतुलन को सुधारती हैं।

उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में देखने में आया है कि शिजोफ्रेनिया के रोगी शक के कारण दवाइयाँ लेने से मना कर देते हैं। ऐसी स्थिति में निपटने के लिए दवाई के इंजेक्शन भी उपलब्ध हैं।

इस प्रकार के रोगी के इलाज का असर कुछ ही सप्ताहों में नजर आना शुरू हो जाता है। यहाँ पर सबसे जरूरी बात यह है कि रोगी को स्वस्थ हो जाने के बाद भी नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाना और दवाइयाँ खाते रहना चाहिए।

डॉ. चड्ढा ने कहा कि अगर इस रोग का इलाज समय पर नहीं होता है तो बीमारी तेजी से बढ़ती चली जाती है और रोगी धीरे-धीरे नकारात्मक लक्षणों से ग्रस्त होता चला जाता है।