शुक्रवार, 8 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. These moments are the restoration of the courage of Mahatma Gandhi!

ये क्षण महात्मा गांधी के साहस की पुनर्स्थापना के हैं!

ये क्षण महात्मा गांधी के साहस की पुनर्स्थापना के हैं! - These moments are the restoration of the courage of Mahatma Gandhi!
महात्मा गांधी का विचार और उनकी ज़रूरत वर्तमान की विभाजनकारी राजनीति के लिए चरखे के बजाय मशीनी खादी से बुनी गई ऐसी नक़ाब हो गई है जिसके पीछे उनकी सहिष्णुता, अहिंसा और लोकतंत्र का मज़ाक़ उड़ाने वाले क्रूर और हिंसक चेहरे छुपे हुए हैं। ये चेहरे गांधी विचार की ज़रा-सी आहट को भी किसी महामारी की दस्तक की तरह देखते हैं और अपने अनुयायियों को उसके प्रतिरोध के लिए तैयार करने में जुट जाते हैं। यही कारण है कि ग्वालियर में हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रतिमा की बिना किसी विरोध के प्राण-प्रतिष्ठा हो जाती है और अलीगढ़ में राष्ट्रपिता के पुतले पर सार्वजनिक रूप से गोलियां चलाकर 30 जनवरी 1948 की घटना का गर्व के साथ मंचन कर दिया जाता है।
 
दक्षिण अफ़्रीका की 7 जून 1893 की घटना की तरह अगर आज की तारीख़ में कोई सवर्ण किसी मोहनदास करमचंद गांधी को ट्रेन से उतारकर प्लेटफ़ार्म पर पटक दे तो कितने लोग उनकी मदद के लिए आगे आने की हिम्मत करेंगे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। विदेशों में बसने वाले भारतीय या एशियाई मूल के नागरिक आए-दिन अपने ऊपर होने वाले नस्लीय हमले चुपचाप सहते रहते हैं जिनमें लूट और हत्याएं भी शामिल होती हैं। इन हमलों के ख़िलाफ़ कहीं कोई छटपटाहट नहीं नज़र आती।
 
अलग-अलग दलों और धड़ों में बंटा देश का राजनीतिक नेतृत्व गांधी और उनके विचारों को काफ़ी पीछे छोड़ चुका है। उसके लिए ज़रूरत सिर्फ़ गांधी के आश्रमों (सेवाग्राम और साबरमती) के आधुनिकीकरण या उन्हें भी ‘सेंट्रल विस्टा’ जैसा ही कुछ बनाने की बची है। गांधी के अहिंसक ‘डांडी मार्च‘ को हिंसक ‘डंडा मार्च’ में बदल दिया गया है।
 
अमेरिका और यूरोप स्थित तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थान मानवाधिकारों, धार्मिक सहिष्णुता, नागरिक-स्वतंत्रता, मीडिया की आज़ादी और लोकतंत्र आदि विषयों को लेकर दुनिया भर के देशों की जो प्रावीण्य सूची (ग्लोबल इंडेक्स) हर साल जारी करते हैं, उसमें कई क्षेत्रों में भारत का स्थान लगातार नीचे जा रहा है पर नेतृत्वकर्ताओं को महात्मा गांधी के विचार से ज़्यादा भरोसा अपने प्रतिबद्ध मतदाताओं की ताक़त पर है। एक राष्ट्र के रूप में नागरिकों को जिस तरह के संवेदनाशून्य रोबोटों में ढाला और प्रशिक्षित किया रहा है, उनके कदमों में जिस तरह की तेज़ी और स्वरों में जैसी तीक्ष्णता लाई जा रही है, भविष्य की सम्भावनाओं को लेकर ख़ौफ़ उत्पन्न करती है।
 
अपने एक आलेख में मैंने एक डरे हुए राष्ट्र के नागरिकों जैसी मानसिकता का ज़िक्र करते हुए उल्लेख किया था कि हम अपनी इस शर्म को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने में संकोच कर रहे हैं कि एक विचार के रूप में गांधी की ज़रूरत हमें नहीं बची है। हमारे शिखर पुरुषों ने नागरिकों को स्वतंत्रता संग्राम के नए नायक और स्व-रचित इतिहास के पन्ने सौंप दिए हैं। जासूसी के आयातित उपकरणों के मार्फ़त नागरिकों पर नज़र भी रखी जा रही है कि वे क्या पढ़, सुन और बोल रहे हैं।
 
किसी समय अपनी कमाई से घर चलाने वाले पिता को जैसे उनके सेवा-निवृत होते ही पहले ड्रॉइंग रूम से हटा कर पीछे के किसी कमरे और फिर वृद्धाश्रम में स्थानांतरित कर दिया जाता है वैसे ही राष्ट्र के विकास की अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए गांधी को भी एक ग़ैर-ज़रूरी सामान या ‘एक्सेस बैगेज’ साबित किया जा रहा है। इस काम की शुरुआत आज़ादी के सूर्योदय के पहले ही तब हो गई थी जब नवम्बर 1946 में गांधी को साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहे अविभाजित बंगाल के एक हिस्से नोआख़ली की यात्रा पर जाना पड़ा था। गांधी को कोई चार महीने वहां रहना पड़ा था और इसी बीच दिल्ली में राष्ट्र के विभाजन की कार्रवाई पूरी कर ली गई। धर्म को पहले राष्ट्र के विभाजन का हथियार बनाया गया था और अब उसका इस्तेमाल नागरिक-समाज को बांटने के लिए किया जा रहा है।
 
गांधी के होने की ज़रूरत अब इसलिए बढ़ती जाएगी कि हिंसा के इस्तेमाल को सत्ता की प्राप्ति और सत्ता में बने रहने का आज़माया हुआ हथियार स्थापित कर दिया गया है। पिछले साल अमेरिका में इसका प्रयोग हुआ था। अब ब्राज़ील में होने जा रहा है। दक्षिण अमेरिका, यूरोप और एशिया के कई देश क़तार में हैं। वीरों का नया आभूषण अहिंसा के स्थान पर हिंसा बन गया है। अहिंसा के प्रति सैद्धांतिक रूप से प्रतिबद्ध निहत्थे नागरिक राज्य की संगठित हिंसा का मुक़ाबला सिर्फ़ गांधी के हथियार से कर पाने में ही सक्षम हो सकेंगे।
 
सत्ताओं की राजनीतिक ज़रूरत के लिए विभाजन की नई विभीषिकाओं को जन्म दिए जाने की आशंकाओं के बीच हो रही साहसिक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को इन उम्मीदों के साथ नहीं देखा जा रहा है कि राहुल गांधी आज के समय के महात्मा गांधी हैं और उनके द्वारा धारण किए जाने वाले महंगे टी-शर्ट में भी लोगों को हाथ से कते सूत से बुनी बापू की धोती के दर्शन हो रहे हैं बल्कि इसलिए कि युवा नेता के स्वागत के लिए सड़कों पर उमड़ती भीड़ विभाजनकारी ताक़तों के ख़िलाफ़ अहिंसा को हथियार बनाकर खड़े होने के महात्मा गांधी के साहस की पुनर्स्थापना कर रही है। (यह लेखक के अपने विचार हैं। वेबदुनिया का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala