सोमवार, 23 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. The NOTA Party

नोटा से सहमे राजनीतिक दल

नोटा से सहमे राजनीतिक दल - The NOTA Party
चुनाव से संबंधित एक अच्छा समाचार सुनने को मिला है। महाराष्ट्र चुनाव आयोग ने आदेश दिया है कि सभी निकाय चुनाव में यदि नोटा को सबसे अधिक मत मिलते हैं, तो चुनाव स्थगित करके दोबारा चुनाव कराया जाएगा। राज्य चुनाव आयुक्त जेएस सहरिया ने कहा कि वे नोटा की सहायता से चुनाव प्रक्रिया को बेहतर करने की उम्मीद कर रहे हैं और ऐसा मतदाताओं की बढ़ी हुई भागीदारी से होगा। नोटा राजनीतिक दलों को योग्य प्रत्याशियों को उतारने के लिए मजबूर करेगा।


हमने निश्चय किया कि इसे बदला जाए और नोटा को अधिक प्रभावी बनाया जाए। चुनाव अधिकारियों ने कहा है कि संशोधित नोटा नियम अगले वर्ष के लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के लिए भी प्रभावी हो सकते हैं, बशर्ते भारतीय चुनाव आयोग इस प्रकार का संशोधन करें। अभी तक की स्थिति के अनुसार नोटा नियम स्थानीय निकाय चुनावों के लिए लागू हैं, क्योंकि हमने धारा-243 के अंतर्गत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए परिवर्तन कर दिए हैं। चुनाव आयोग धारा-324 के अंतर्गत ऐसे परिवर्तन कर सकता है।

 
वैसे ये अपने आप में ऐतिहासिक निर्णय है। निकाय चुनाव में मतदाता कम होते हैं और वे प्रत्याशियों के गुण-दोषों को भी भली-भांति जानते हैं। ऐसे में नोटा के मत अधिक होने पर चुनाव स्थगित करके दोबारा चुनाव कराया जाएगा। ऐसी परिस्थिति में राजनीतिक दलों का प्रयास रहेगा कि वे योग्य प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारें। देश में पिछले कई वर्षों से नोटा लागू है, परंतु लोकसभा और विधानसभा चुनावों में नोटा को अधिक मत मिलने पर चुनाव रद्द करने संबंधी कोई निर्णय नहीं लिया गया है। पिछले बहुत समय से यह मांग उठती रही है कि नोटा को अधिक मत मिलने पर चुनाव को स्थगित करके दोबारा चुनाव कराए जाएं।

 
नोटा का अर्थ है नन ऑफ द एबव अर्थात इनमें से कोई नहीं। जो मतदाता प्रत्याशी के भ्रष्ट, अपराधी होने या ऐसे ही किसी अन्य कारण से उन्हें मत न देना चाहें तो वे नोटा का बटन दबा सकते हैं। इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन में यह बटन गुलाबी रंग का होता है, जो स्पष्ट दिखाई देता है। उल्लेखनीय है कि देश में वर्ष 2015 में नोटा लागू हुआ था। वर्ष 2009 में चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर कहा था कि वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा का विकल्प उपलब्ध कराना चाहता है, ताकि जो मतदाता किसी भी प्रत्याशी को मत न देना चाहें, वे इसे दबा सकें।

इसके पश्चात नागरिक अधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने भी सर्वोच्च न्यायालय में नोटा के समर्थन में एक जनहित याचिका दायर कर नोटा को लागू करने की मांग की। इस पर वर्ष 2013 में न्यायालय ने मतदाताओं को नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने का निर्णय किया। तत्पश्चात निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। साथ ही चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया था कि नोटा के मतों की गणना की जाएगी, परंतु इन्हें रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि नोटा से चुनाव परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वर्ष 2013 में देश में पहली बार चुनाव में नोटा का प्रयोग किया गया। उल्लेखनीय है कि विश्व के अनेक देशों में चुनावों में नोटा का प्रयोग किया जाता है। इनमें बांग्लादेश, यूनान, यूक्रेन, स्पेन, स्वीडन, चिली, फ्रांस, बेल्जियम, कोलंबिया, ब्राजील, फिनलैंड आदि देश सम्मिलित हैं। 
 
वास्तव में नोटा मतदाताओं को प्रत्याशियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देने का विकल्प उपलब्ध कराता है। नोटा के मतों की भी गणना की जाती है। नोटा से पता चलता है कि कितने मतदाता किसी भी प्रत्याशी से प्रसन्न नहीं हैं, वे चुनाव में खड़े किसी भी प्रत्याशी को इस योग्य नहीं समझते कि वे उसे अपना प्रतिनिधि चुन सकें। नोटा के विकल्प से पूर्व मतदाता को लगता था कि कोई भी प्रत्याशी योग्य नहीं है, तो वह मतदान का बहिष्कार कर देता था और मत डालने नहीं जाता था। इसी स्थिति में वह मतदान के अपने मौलिक अधिकार से स्वयं को वंचित कर लेता था। इसके कारण उसका मत भी निरर्थक हो जाता था। परंतु नोटा ने मतदाताओं को प्रत्याशियों के प्रति अपना मत प्रकट करने का अवसर दिया है।

 
देश में नोटा के प्रति लोगों में अधिक जागरूकता नहीं है। आज भी अधिकतर मतदाता नोटा के विषय में नहीं जानते। नोटा लागू होने के पश्चात देश में लोकसभा, विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के कई चुनाव हो चुके हैं, परंतु नोटा के अंतर्गत किए गए मतदान की दर मात्र 2 से 3 प्रतिशत ही रही है। विशेष बात ये है कि इनमें अधिकांश वो क्षेत्र हैं, जो नक्सलवाद से प्रभावित हैं या फिर आरक्षित हैं।
 
पांच राज्यों में चुनावी माहौल है। सभी दल अपनी जमीन मजबूत करने में लगे हैं। वर्ष 2019 लोकसभा के ठीक पहले ये विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा, इसलिए नोटा से राजनीतिक दल घबराए हुए हैं।

 
भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि आमजन अपने मतदान का प्रयोग कर अपनी भूमिका से लोकतंत्र की रक्षा करते हैं।