रविवार, 22 दिसंबर 2024
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कही-अनकही 18. : लोग क्या कहेंगे?

कही-अनकही 18. : लोग क्या कहेंगे? - short story about relationship kahi ankahi
एना शादी के बाद अपना फेसबुक प्रोफाइल फोटो बदलने का सोच रही है क्योंकि हाल ही में शादी के समय बहुत सारे अच्छे फोटो क्लिक हुए हैं... 
 
‘कौनसा फोटो लगाऊं आदि? ये कितना स्मार्ट है न वन पीस वाला?’
 
‘वन पीस? एना कोई साड़ी वाला है क्या?’
 
‘हां है न... लेकिन ये वन पीस वाला कितना सुन्दर है! यही लगाऊंगी .’
 
‘एना सुनो, तुमको अभी मेरे पूरे खानदान से फ्रेंड रिक्वेस्ट आएंगे...सारे तुम्हें एक्सेप्ट करने पड़ेंगे . तुम ज़रा साड़ी वाला ही लगाओ .’
 
‘अरे? ये तो मेरी सोशल मीडिया प्रोफाइल है न? मेरी पसंद का ही लगाऊंगी न?’
 
‘नहीं तुम समझो ज़रा. सब देखेंगे तो क्या कहेंगे... शर्म नहीं हैं...’
 
‘शर्म? आदि ऐसे तो मेरे पुराने और भी बहुत फोटो हैं वेस्टर्न ड्रेस में .’
 
‘हां... वो ज़रा हाईड कर दो या डिलीट ही कर दो... बेहतर है .’
 
‘तुम हटा रहे हो क्या आदि तुम्हारे पुराने फोटो?’
 
‘मैं तुम्हारे घरवालों का फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट तो करूं पहले... हाहाहा...’
 
कुछ समय बाद एना ने अपनी दोस्त से बात की...
 
‘हेलो शैव्या... कैसी है? हसबैंड ऋतिक कैसा है? आजकल कोई खबर ही है बहुत दिन से... सोशल मीडिया पर भी दिखी नहीं...’
 
‘हां एना, कुछ पोस्ट नहीं किया काफी समय से . लेकिन तेरी कितनी अच्छी पोस्ट्स हैं आज कल!’
 
‘पसंद आई तुझे? तो तूने लाइक या शेयर तो की नहीं?’
 
‘अरे... ससुराल वाले हैं न फ्रेंड लिस्ट में यार... कुछ भी करो तो नज़र रखते हैं. क्या पोस्ट किया, क्या शेयर किया, कहां कमेंट किया...’
 
‘अरे? ये क्या बात हुई? ऋतिक भी चेक करता है?’
 
‘ऋतिक के पास तो मेरे सारे पासवर्ड हैं, लेकिन उसकी दो सोशल मीडिया प्रोफाइल है. एक घरवालों को दिखाने की, और एक उसकी खुद की जिसमें सब दोस्त हैं... मैं भी दो बना रही थी, लेकिन ऋतिक का मानना था कि क्या करोगी तुम दो-दो प्रोफाइल का? एक के लिए ही कहां समय मिलता है तुमको...’
 
कुछ दिनों बाद एना की बहुत सी फ्रेंड्स आज मूवी देखने साथ गईं. सब मिल कर सेल्फी ले रही थीं, पोज़ कर रही थीं, लेकिन रीमा हमेशा पीछे छुप जाती, या फोटो क्लिक करने चले जाती .
 
‘रीमा कम से कम एक फोटो में तो आ जा साथ में! इतना क्यों छुप रही है?’
 
‘यार... तुम लोग प्लीज फोटो अपलोड करो तो मुझे टैग मत करना... घर पर प्रॉब्लम हो जाएगी कि मूवी देखने फ्रेंड्स के साथ गई और वहां जा कर ऐसे मस्ती की...’
‘अरे? लेकिन ये तो नॉर्मल है न? सभी जाते हैं...’
‘हां, लेकिन फेसबुक पर अपलोड किया तो दूर के रिश्तेदार भी देखेंगे... कहेंगे बहू को इतनी छूट दे रखी है और फिर घर में ? सोशल मीडिया है न एना, सोसाइटी क्या कहेगी?’
 
क्या कोई अपनी मर्जी से, अपने हिसाब से, अपनी ज़िन्दगी जी नहीं सकता? क्या हर चीज़ समाज के हिसाब से, कथित नियमानुसार होनी ज़रूरी है – 
 
वे नियम जो सिर्फ महिलाओं पर ही लागू होते हैं? सोशल मीडिया के आधार पर आप किसी का आंकलन कैसे कर सकते हैं? डिजिटल मीडिया सिर्फ एक जरिया है वह ज़िन्दगी जीने का और दिखाने का जो आप लोगों को दिखाना चाहते हैं... आप वास्तव में वही हैं जो आप हैं, लेकिन लोग आपको उस रूप में भी तो नहीं अपनाना चाहते... इन ‘कही-अनकही’ बातों का कोई इलाज है क्या?
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