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साहित्य की चोरी से सस्ती लोकप्रियता : समस्या और समाधान

साहित्य की चोरी से सस्ती लोकप्रियता : समस्या और समाधान - saahity kee choree se sastee lokapriyata
-डॉ अर्पण जैन 'अविचल'
 
इंटरनेट की दुनिया ने हिन्दी या कहे प्रत्येक भाषा के साहित्य और लेखन को जनमानस के करीब और उनकी पहुंच में ला दिया है, इससे रचनाकारों की लोकप्रियता में भी अभिवृद्धि हुई है। किंतु इन्हीं सब के बाद उनके सृजन की चोरी भी बहुत बड़ी है। जिन लोगों को लिखना नहीं आता या सस्ती लोकप्रियता के चलते वो लोगों व अन्य प्रसिद्ध लोगों की रचनाओं को तोड़-मरोड़कर या फिर कई बार तो सीधे उनका नाम हटाकर खुद के नाम से प्रचारित और प्रकाशित भी करवा लेते हैं।
 
ऐसी विकट स्थिति में असल चोर द्वारा कई बार इतना प्रचार कर दिया जाता है कि कई बार तो मूल रचनाकर को भी लोग साहित्य चोर समझ लेते हैं। साहित्यिक सामग्रियों की चोरी कर अपने प्रकाशित साहित्य या संदर्भ में शामिल कर लेना, अखबारों या सोशल मीडिया में अपने नाम से प्रचारित करना, दूसरे की कविताओं को सरेआम मंचों से सुनाना, साझा संग्रहों में स्वयं के नाम से दूसरे की रचनाएं प्रकाशित करवाना आदि साहित्य चोरों का प्रिय शगल बन चुका है।
 
किसी दूसरे की भाषाशैली, उसके विचार, उपाय आदि का अधिकांशत: नकल करते हुए अपनी मौलिक कृति के रूप में प्रकाशन करना साहित्यिक चोरी की श्रेणी में आता है। यूरोप में 18वीं सदी के बाद ही इस तरह का व्यवहार अनैतिक व्यवहार माना जाने लगा था। इसके पूर्व की शताब्दियों में लेखक एवं कलाकार अपने क्षेत्र के श्रेष्ठ सृजन की हूबहू नकल करने के लिए प्रोत्साहित किए जाते थे। साहित्यिक चोरी तब मानी जाती है, जब हम किसी के द्वारा लिखे गए साहित्य को बिना उसका संदर्भ दिए अपने नाम से प्रकाशित कर लेते हैं।
 
आज जब सूचना प्रौद्योगिकी का विस्तार तेजी से हुआ है, ऐसे में पूरा विश्व एक वैश्विक गांव में बदल गया गया है और ऐसे में साहित्य चोरों के अनैतिक कार्य आसानी से पकड़ में आ जाते हैं। इस समस्या को 'प्लेगरिज्म' कहा जाता है और यह अकादमिक बेईमानी है। प्लेगरिज्म कोई अपराध नहीं है बल्कि नैतिक आधार पर तो अमान्य है। इंटरनेट से कोई लेख डाउनलोड कर लेना, किसी और को अपने लेखन के लिए काम पर रख लेना, दूसरे के विचारों को अपने विचार दिखाने का प्रयास करना भी साहित्यिक चोरी मानी जाती है।
 
कानूनी रूप से भी देखा जाए तो साहित्यिक चोरी धोखाधड़ी की श्रेणी में भी आता है। इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। अगर आप किसी अन्य के रचनात्मक कार्य का उपयोग करते हैं, तो आपको उनके हर स्रोत का श्रेय देना होगा इसलिए ऑनलाइन या मुद्रित सामग्री के लिए फुटनोट या उद्धरण का उपयोग करें। किसी भी समय आप किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखी, रचना, आकर्षित या आविष्कार किए गए किसी भी चीज का हिस्सा या किसी का उपयोग करते हैं, तो आपको उन्हें क्रेडिट देना होगा। यदि आप लेखन या विचारों को चोरी करते हैं और उन्हें अपने ही रूप में बंद करते हैं, तो आप पकड़े जा सकते हैं।
 
क्या कहता है कानून?
 
बौद्धिक संपदा अधिकार : बौद्धिक संपदा (Intellectual property) किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा सृजित कोई संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज, प्रतीक, नाम, चित्र, डिजाइन, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेंट आदि को कहते हैं। जिस प्रकार कोई किसी भौतिक धन (फिजिकल प्रॉपर्टी) का स्वामी होता है, उसी प्रकार कोई बौद्धिक संपदा का भी स्वामी हो सकता है। इसके लिए बौद्धिक संपदा अधिकार प्रदान किए जाते हैं।
 
आप अपने बौद्धिक संपदा के उपयोग का नियंत्रण कर सकते हैं और उसका उपयोग करके भौतिक संपदा (धन) बना सकते हैं। इस प्रकार बौद्धिक संपदा के अधिकार के कारण उसकी सुरक्षा होती है और लोग खोज तथा नवाचार के लिए उत्साहित और उद्यत रहते हैं। बौद्धिक संपदा कानून के तहत इस तरह बौद्धिक संपदा का स्वामी को अमूर्त संपत्ति के कुछ विशेष अधिकार दिए हैं, जैसे कि संगीत, वाद्ययंत्र, साहित्य, कलात्मक काम, खोज और आविष्कार, शब्दों, वाक्यांशों, प्रतीकों और कोई डिजाइन आदि।
 
इस तरह की साहित्यिक चोरियां इंटरनेट पर आम हो चली है। कई चोरों के हौसले तो इतने बुलंद हैं कि वे लोगों की रचनाओं में कुछ एक शब्दों का हेर-फेर करके खुद की पुस्तक भी मुद्रित करवा लेते हैं। इस तरह चोरी से बचने के लिए साहित्यकारों को भी कुछ प्रबंध करना होंगे जैसे-
 
1. सबसे पहले तो अपनी मौलिक रचनाएं अपने ब्लॉग पर मय दिनांक और समय के साथ प्रकाशित करें। ऐसा करने से आपकी रचनाओं के प्रथम प्रकाशन का संदर्भ और मौलिकता का साक्ष्य उपलब्ध होगा।
 
2. सोशल मीडिया में प्रकाशन के पूर्व रचनाएं साझा करने से बचें अन्यथा आप सबूत देने में असमर्थ रहेंगे और साहित्य चोर उस पर खुद की मौलिकता का प्रमाण दर्ज कर लेगा।
 
3. यदि आपने भी किसी संदर्भ का उपयोग किया है, तो संदर्भ सूची में उसका उल्लेख जरूर करें, अन्यथा आप पर भी साहित्य चोरी का आरोप लग सकता है।
 
4. सोशल मीडिया में रचनाओं को हर जगह अपने ब्लॉग की लिंक या जहां प्रकाशित हुई है, उसी संदर्भ के साथ साझा करें, यह चोर की मनोस्थिति पर भी प्रभाव डालेगा।
 
5. कहीं भी आपको आपकी रचनाओं की चोरी नजर आए, तो तुरंत उसकी शिकायत मय पर्याप्त साक्ष्य के और स्वयं की मौलिक रचना होने के साक्ष्य के साथ नजदीकी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाएं।
 
6. अपनी पुस्तकें मय आईएसबीएन (ISBN) के प्रकाशित करवाएं।
 
प्लेजरिज्म से बचने के लिए कुछ आम टिप्स-
 
1. शुरुआत में बिना किसी कोट, डाटा, रिपोर्ट, रिसर्च की मदद लिए अपने विचारों को लिखने की आदत डालें।
 
2. किसी और का आइडिया चुराने से बचने के लिए आर्टिकल लिखने से पहले ही अपने तर्क और तथ्य तैयार कर लें। ध्यान रहे कि किसी और के आइडियाज से आपका अपना आर्टिकल तैयार नहीं हो सकता। हां, वो आपके लेख में रेफरेंस के तौर पर जरूर हो सकते हैं।
 
3. याद रखिए कि निजी विचारों और तथ्यों के बीच बाल भर का फर्क होता है। इस फर्क को हमेशा दिमाग में रखें। मसलन, 'माहवारी एक ऐसी वजह है जिसके कारण भारत की 80% महिलाएं शोषण और दमन का सामना कर रही हैं। यह एक तथ्य है जिसकी सत्यता को उचित सोर्स से प्रमाणित किया जाना जरूरी है।' मुझे नहीं लगता कि मेंसट्रुअल लीव पॉलिसी भारत में महिलाओं की बड़ी समस्याओं को हल कर पाएगी। ये पूरी तरह से एक निजी विचार है जिसे सत्यापित करने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर आपके लेख में कोई आंकड़ा या तथ्य शामिल है तो उसका सत्यापन किया जाना बहुत जरूरी है।
 
4. जानकारी के लिए अन्य वेबसाइट्स और स्रोतों से कॉपी-पेस्ट कर रहे हैं तो संभल जाएं। जाहिर सी बात है कि इन वेबसाइट्स और जानकारी के स्रोतों को भी अपनी मीडिया सामग्री को लेकर उतनी ही चिंता होगी जितनी कि आपको है। अपने लेख में इस्तेमाल की गई जानकारियों का सोर्स लिखना कभी न भूलें।
 
शिक्षा विभाग में तो आ गया रेगुलेशन एक्ट-
 
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सचिव पीके ठाकुर ने विश्वविद्यालयों सहित छात्रों के नाम जन सूचना जारी की है कि रिसर्च और साहित्य चोरी की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसी के चलते यूजीसी ने दूसरे के ज्ञान को अपना बनाने के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए विशेषज्ञों की कमेटी बनाई थी जिसकी सिफारिशों के आधार पर अब साहित्यिक चोरी रोकने के लिए रेगुलेशन 2017 तैयार किया गया है। इसके आधार पर रिसर्च स्कॉलर्स, शिक्षक या विशेषज्ञ अपनी-अपनी राय भेज सकते हैं। यह रेगुलेशन 9 पन्नों का है। कमेटी ने अपनी सिफारिश में लिखा है कि साहित्य, रिसर्च की चोरी पर जीरो टॉलरेंस पॉलिसी होनी चाहिए। यदि कोई रिसर्च स्कॉलर्स 10 फीसदी सामग्री की चोरी करता पकड़ा गया तो कोई जुर्माना नहीं लगेगा। 40 फीसदी कंटेंट चुराने वाले छात्र को कोई अंक नहीं दिया जाएगा। 60 फीसदी सामग्री चोरी का इस्तेमाल करने पर रजिस्ट्रेशन तक रोकने की सिफारिश की गई है।
 
यदि कोई शिक्षक 40 फीसदी तक साहित्यिक चोरी करता पकड़ा जाता है, तो लिखित सामग्री को हटाने के साथ ही 1 साल तक उसके प्रकाशन पर भी रोक लगेगी। 60 फीसदी से अधिक की चोरी करने पर लिखित सामग्री हटाने के साथ-साथ 3 साल तक प्रकाशन पर रोक लगाने की भी तैयारी है, वहीं ऐसे शिक्षक को 3 साल तक के लिए अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, एमफिल और पीएचडी स्कॉलर्स का गाइड न बनाने की भी सिफारिश की गई है। यदि छात्र गलती करता है तो रजिस्ट्रेशन पर रोक लग जाएगी जिससे उसकी डिग्री भी ब्लॉक होगी। वहीं शिक्षक यदि गलती करता है कि उसे 1 साल तक प्रकाशन पर रोक के साथ वेतनवृद्धि रुकेगी, वहीं यदि बार-बार गलती की जाती है तो उसे नौकरी से निकालने का भी प्रावधान होगा।
 
एमफिल और पीएचडी रिसर्च स्कॉलर्स यदि अपनी थीसिस या रिसर्च में किसी व्यक्ति द्वारा तैयार सामग्री का प्रयोग करते हैं तो उन्हें इसकी जानकारी देनी होगी। यदि कोई स्कॉलर साहित्यिक चोरी करता पकड़ा जाता है तो उसका रजिस्ट्रेशन तक रद्द हो सकता है, वहीं यदि शिक्षक ऐसा करता पकड़ा गया तो उसके इंक्रीमेंट, प्रकाशन पर रोक लग सकती है। नियमों का बार-बार उल्लंघन करने पर शिक्षक की नौकरी भी जा सकती है।
 
इन सबके अतिरिक्त मौलिक साहित्य की कमी और साहित्य चोरी जैसी घटनाओं से भाषा की समृद्धता और लेखन शैली प्रभावित होती है। सत्य तो यह भी है कि तथाकथित साहित्य चोरों को सार्वजनिक अपमान का डर न होना भी इसका कारण है। ऐसी स्थिति में हिन्दी प्रचार हेतु प्रतिबद्ध अंतरताना मातृभाषा.कॉम द्वारा एक मुहिम भी चलाई जा रही है जिसमें साहित्य चोरी की घटना को संवेदनशील मसला मानकर सप्रमाण शिकायत आने पर उस साहित्य चोर के विरुद्ध न्यायायिक दावा भी लगाया जाएगा, साथ ही सोशल मीडिया पर भी बेनकाब करेगा। इसी तरह से अन्य हिन्दी साहित्यिक संस्थानों को भी आगे आना चाहिए और साहित्य चोरी के विरुद्ध एक सार्थक आवाज बनकर खड़े होना होगा जिससे कि इस तरह की साहित्य चोरी पर नकेल कसकर भाषा की मौलिकता और अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे से बचा जा सकता है।