Cycling for Health: खूब चलाओ साइकिल। अपनी सेहत और इस खूबसूरत दुनिया की बेहतरी के लिए। पूरी तसल्ली के साथ। ढलान हो तो पैडल मारने की भी जरूरत नहीं। बिल्कुल रिलैक्स होकर। तब आप उस हवा का एहसास कर सकेंगे जो आपको सहला रही है। अगर कुछ देर की साइकिलिंग हो चुकी है और थोड़ा पसीना भी हो चुका है तो सहलाने वाली इस हवा का आनंद सिर्फ साइकिलिंग करने वाला ही महसूस कर सकता है। इस लिहाज से सोचेंगे तो साइकिल एयर कंडीशन का अहसास कराएगी।
साइकिलिंग के साथ आप प्रकृति का सौंदर्य भी देख सकते : साइकिल एक मात्र सवारी है जिसे अगर आप कहीं एकांत में चला रहे हैं तो आसपास की प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद ले सकते। किसी अन्य वाहन पर आप स्पीड का रोमांच तो उठा सकते हैं, पर प्रकृति की खूबसूरती को इतनी तसल्ली से नहीं निहार सकते। शायद ही कोई ऐसा हो जिसे दो पहिए के इस 'चमत्कार' की सवारी न आती हो।
पहले ऐसे सीखी जाती थी साइकिल : 1960 के दशक के लोग तो कई चरणों में साइकिल सीखते थे। पहले कैंची, इसके बाद डंडे पर और फिर सीट पर चलाकर परफेक्ट होते थे। घर में अमूमन एक अदद ही साइकिल होती थी। आराम से दो पीढ़ियां इसी पर सवारी करती थी। दूसरी साइकिल तभी खरीदी जाती थी जब बेटा, बाप की साइकिल से उसे चलाने में परफेक्ट हो जाता था। अब तो हर उम्र के लिए साइकिलों की भरपूर रेंज है। पहले तो एवन, हीरो और एटलस ब्रांड की साइकिल ही आम थीं। बाद में बीएसए आई। थोड़ी हल्की और फैंसी होने के नाते खूब पसंद भी की गई। अगर आपके पास रैले है तो यह फॉर्च्यूनर का अहसास कराती थी। अक्सर बड़े घरों के लोग दहेज में सोनी का बाजा (रेडियो), सीको की घड़ी, सोने की चेन और अंगूठी के साथ 'रैले साइकिल' ही मांगते थे।
साइकिल का भी होता था दुल्हन की तरह श्रृंगार : साइकिल अगर मेड इन बर्मिंघम हो। फुल चैन कवर, पहिए से लगे डायनमो से घिसकर रात में हैंडिल पर लाइट जलने वाली साइकिल तो मर्सिडीज बेंज जैसे होती थी। यह उसी के घर होती थी, जिसके घर का कोई सिंगापुर या किसी और देश में हो। फिर तो ऐसी साइकिल को लोग दुल्हन की तरह सजाते थे। आगे-पीछे पहिए के धूर्रों में 'फुलगेना', हैंडिल का ग्रिप रंगीन। साथ में चोटी भी। जो गति के साथ लहराती थी। गद्देदार सीट, बाल-बच्चे वाले हैं तो डंडे पर भी एक छोटी सी गद्दी और आगे डोलची। साइकिल नहीं मानों सोलह श्रृंगार करने वाली दुल्हन हो।
कभी पूरा घर गृहस्थी ढोती थी साइकिल : बाजार में उपलब्ध परंपरागत साइकिलों को छोड़ दें तो तब साइकिल आजकल की तरह अकेले चलने वाली सवारी नहीं थी। इनमें डंडा होता ही नहीं, कैरियर की कोई गुंजाइश ही नहीं होती। पहले अक्सर डंडे या कैरियर पर कोई चाहने वाला होता था। अगर एक उम्र के लोग हैं तो एक बेवजह थके न, इसलिए दोनों बारी-बारी से चला लेते। कभी-कभी तो डंडे या कैरियर पर प्रेमिका या पत्नी भी होती थीं। वैसे ऐसी प्रेमिका फिल्मों में ही अधिक दिखती थी, हीरो के साथ।
कुछ एक्सपर्ट और उत्साही लोग ट्रिपलिंग भी कर लेते थे। खासकर अगर स्कूल बंक कर फिल्म देखने जाना हो तब ऐसे साथी मिल ही जाते थे। तब साइकिल के और भी ढेर सारे उपयोग थे। मसलन आप दो बोरा एक कैरियर पर और एक तिकोने फ्रेम और चेन के ऊपर ले जा सकते थे। दोनों हैंडल पर झोला भी लटका सकते थे। अलबत्ता तब इसे पैदल ही 'डुगरना' होता था। ढलान पर पीछे चलने वाले को संतुलन बनाए रखने के लिए साइकिल को अपनी ओर खींचकर गति कम करनी होती। चढ़ाई पर धक्का देना होता। बोरे के संतुलन पर भी बराबर ध्यान देना होता।
बदले दौर में सेहत और पर्यावरण के लिए और प्रासंगिक हो गई साइकिल : अब सायकिल जरूरत के अनुसार सवारी गाड़ी या बोझ ढोने वाली भले न हो, पर सेहत और पर्यावरण के लिए यह अब भी उतनी ही प्रासंगिक है। बल्कि यूं कहें कि पहले से ज्यादा। लिहाजा आप भी इस दो पहिए की सुखद सवारी का आनंद लें। आज के दौर में हजारों और लाखों में मिलने वाली ये साइकिलें आपके स्टेटस को भी बनाएं रखेंगी।