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Last Modified: शनिवार, 4 मई 2024 (19:14 IST)

राजनीति महज वोटों का जुगाड़ नहीं है

राजनीति महज वोटों का जुगाड़ नहीं है - Politics is not just about gathering votes
Indian Politics: लोकतांत्रिक राजनीति का अर्थ किसी भी तरह से वोट का जुगाड करना हो गया है। इसका नतीजा यह हुआ कि समाज और राजनीति में बिना वोट की राजनीति पूरी तरह लुप्त हो गई। भारत में आप सार्वजनिक रूप से कोई भी सवाल उठाओ तो उस पर बहस के बजाय, इसमें क्या राजनीति है, ऐसा सोचने लगते हैं। दूसरा काम हमारे देश में यह हुआ है कि देश की समूची राजनीति  रात-दिन वोटों की घट-बढ़ का गणित करने में ही अपनी ऊर्जा लगाए रहने में पूरी उलझ गई है। 
 
राजनीति का मकसद सिर्फ वोट हासिल करना : एक अरब चालीस करोड़ की आबादी वाले देश को शांतचित्त और प्रेमपूर्वक कैसे चलाया जाएगा यह ख्याल ही हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक मन में आता ही नहीं है। इतनी बड़ी आबादी का देश सरकार बनाने और गिराने को ही राजनीतिक जीवन का मूल मंत्र मानने लगा है। आजादी के बाद से धीरे-धीरे हमारी राजनीतिक हलचल केवल वोट हासिल करने के एकमात्र व्यक्तिगत और सामूहिक उपक्रम में बदल गई है। सत्ता हासिल कर क्या और कैसे करेंगे? यह विचार-विमर्ष और व्यवहार का विषय ही नहीं बन पाया है। लोकतंत्र में नागरिक चेतना नदारद हो, एक अजीब सी उदासीनता में बदल गई है। समूची राजनीति का एक सूत्री कार्यक्रम है कैसे चुनाव जीतें और सत्ता हासिल करें? इसी से हमारे देश की समूची राजनीति नागरिक ऊर्जा विहीन हो गई है। 
 
सबको इज्जत, सबको काम : देश की लगभग सारी राजनीतिक जमातें इस सवाल पर बगले झांकने लगती है। 'सबको इज्जत और सबको काम देने' की दिशा में आजादी के 75 साल बाद भी हमारी राजनीति प्रभावी सकारात्मक कदम नहीं उठा पाई। लोकतांत्रिक ढंग से सत्ता हासिल कर भी देश की विशाल लोकऊर्जा निस्तेज क्यों हैं? यह मूल राजनीतिक सवाल है। 75 साल की चुनावी राजनीति के बाद भी भारतीय समाज में यह भाव मजबूत क्यों नहीं हुआ कि 'भारत सबका और सब भारत के'। 
 
भारत के संविधान में पूरी संवैधानिक स्पष्टता होने के बावजूद भी धर्म, जाति, लिंग, स्थान और नस्ल के आधार पर भेदभाव पूर्ण व्यवहार करके प्रायः सभी राजनीतिक ताकतें मजबूती से भारत के लोगों द्वारा लड़ी गई लम्बी आजादी की लड़ाई की मूल भावना को ही ठेस पहुंचाने को अपनी राजनीति का मुख्य हिस्सा बनाकर, भारत के संविधान और आजादी आंदोलन की मुख्य धारा को ही सिकोड़ रहे हैं। भारत की असली ताकत भारत के लोग हैं और भारत के किसी भी नागरिक को अपमानित और अवांछित घोषित करने का अधिकार संविधान किसी भी निर्वाचित या अनिर्वाचित राजनीतिक या अराजनीतिक ताकत को सीधे या परोक्ष रूप से नहीं देता है। यही संविधान और आजादी आंदोलन की मूल भावना या नागरिकों की सार्वभौमिक ताकत हैं।
 
जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था : भारत में सरकारें लोगों के मतों से ही चुनी जाती रही हैं और चुनी जाएंगी भी, पर यह एक यांत्रिक प्रक्रिया नहीं है। यह एक जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था है जिसके मूल में स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से सभी राजनीतिक दल भारतीय जनता को चैतन्य बना कर सहभागिता सुनिश्चित कर सकते हैं।पर हम आजाद भारत में राजनीति की विभिन्न धाराओं के बीच इसका एकदम उलटा परिदृश्य बना बैठे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि भारत में नागरिकत्व वैसा नहीं खड़ा हो पाया, जिसकी कल्पना भारत के संविधान और आजादी आंदोलन की मूल भावना में निहित रही हैं। लोकतांत्रिक राजनीति व्यक्तिवादी नहीं हो सकती, यह विचार लोकतांत्रिक राजनीति की आधारशिला है। लोकतांत्रिक व्यवस्था मनमानी से नहीं सामूहिक विवेक और सहभागिता से ही चल सकती है। लोकतंत्र में लगातार विवेकशीलता, आपसी सहयोग बढ़ने के बजाय मनमानी और मनचाही कार्यप्रणाली का वर्चस्व बढ़ता ही जा रहा है।
 
आजादी आंदोलन का मूल विचार भारतीय समाज और नागरिकों की ताकत और दैनंदिन जीवन की चुनौतियों को मिलजुल कर हल करने की लोकव्यवस्था को खड़ा करना था। अपने राजनीतिक वर्चस्व को कायम रखना ही लोकतांत्रिक समझदारी नहीं है। राजनीति वोटों की जुगाड नहीं है। भारत में लोगों को ताकतवर बनाने की राजनीति के बजाय अपने एकाकी राजनीतिक वर्चस्व को कायम करने की संकुचित राजनीति ताकतवर हो गई है। भारत का नागरिक ताकतवर संविधान के होते हुए भी निरंतर असहाय और कमजोर हो गया है। 
 
लोगों को ताकतवर बनाने की राजनीति हो : भारत में लगभग सारी राजनीतिक जमातें किसी भी तरह खुद को ताकतवर बनाने में जुटी हैं। इस परिदृश्य को समूचे देश में पूरी तरह बदल कर भारत के लोगों को ताकतवर बनाने की राजनीति का उदय करना काल की चुनौती है। बिना वोट की राजनीतिक राजनीतिक चेतना उभरने पर ही हम भारतीय समाज और नागरिकों को निरन्तर आगे बढ़ाने वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं।

लोकाभिमुख राजनीति और अर्थव्यवस्था को खड़ा करना ही आजादी आन्दोलन की मूल भावना है।भारतीय लोकतंत्र में लोकाभिमुख विचार धारा को राजकाज में प्रतिष्ठित करने की दिशा में लोकसमाज को गोलबंद करने का वैचारिक आन्दोलन चलाये तो ही हम सब हिलमिल कर आजादी आन्दोलन की मूल भावना को साकार कर सकते हैं।