शुक्रवार, 8 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. nirbhaya case and indira jaising

इंदिरा जयसिंह, कुछ तो सोच समझ कर बोलिए

इंदिरा जयसिंह, कुछ तो सोच समझ कर बोलिए - nirbhaya case and indira jaising
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता इंदिरा जयसिंह ने निर्भया की मां आशा देवी से उनकी बेटी के बलात्कार के दोषियों को क्षमा कर देने की अपील कर भारतवर्ष की समस्त संवेदनशील नारियों को आहत किया है। यदि वह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के नाते भी ऐसा कह रही हैं, तो क्या दूसरा पक्ष नहीं देखेंगी? यदि दोषियों के लिए मानवाधिकार की हिमायत है तो जिस लड़की के साथ इतना बर्बरतापूर्ण कृत्य हुआ, उसके मानवाधिकारों के विषय में भी तो बात होनी चाहिए। 
 
उसने बलात्कार भी पूरी दरिंदगी के साथ झेला और मृत्यु भी तिल-तिल मरकर पाई। 
 
इंदिरा जी! क्या वह मनुष्य नहीं थी? क्या उसे इस अधिकार से भी वंचित रखा जाए कि वह अपने उन दोषियों को सजा भी ना दिलवाए, जिन्होंने उसकी नारी सुलभ प्रतिष्ठा और जीवन दोनों ही अत्यंत क्रूरतापूर्वक छीन लिए? 
जरा सोचिये, उन बलात्कारियों के मन में एक पल के लिए भी ये ख्याल न आया कि हम अपनी क्षणिक वासना की झोंक में एक लड़की के साथ कितनी हैवानियत कर रहे हैं! उन हत्यारों ने तनिक भी ये नहीं सोचा कि इस बर्बरता से न केवल उस समय विशेष पर उस लड़की को कितनी पीड़ा हुई होगी और बाद में वो कितना दर्द झेलकर मरेगी! 
 
निश्चित रूप से राक्षस रूप को इस 21 वीं सदी में साकार कर देने वाले इन अपराधियों को मृत्युदंड ही दिया जाना चाहिए, फिर भले ही उनके परिवार आजीवन उन्हें खो देने का दुःख ढोयें क्योंकि निर्भया और उसके परिवार के दुःख के सामने ये दुःख महत्वहीन है। बल्कि ऐसे कुल-कलंकियों से मुक्ति पाना उनके परिवार के लिए भी संतोष का विषय होना चाहिए ताकि वे एक ओर अपनी आत्मा का बोझ कुछ कम कर सकें और दूसरी तरफ सामाजिक बहिष्कार से कुछ हद तक अपनी रक्षा कर सकें। 
 
इंदिरा जी ने निर्भया की मां के समक्ष सोनिया गांधी का उदाहरण रखा है, जिन्होंने राजीव जी के हत्यारों को क्षमा कर दिया था। यहां कहना चाहूंगी कि वह मामला इस घटना से सर्वथा भिन्न था। राजीव जी की हत्या राजनीतिक असहमति से उपजे आक्रोश का नतीजा थी, लेकिन इस घटना में तो बिना किसी शत्रुता के सीधे-सीधे एक महिला की अस्मिता से अत्यंत हिंसक तरीके से खिलवाड़ किया गया और अमानवीयता की सारी हदें पूरी दबंगता से पार कर दी गईं। इसके लिए दोषी कठोर से कठोरतम दंड अर्थात् मृत्युदंड के ही हकदार हैं। 
 
यदि इंदिरा जी की बात मानकर उन्हें क्षमा कर दिया जाएगा तो यह एक परंपरा बन जाएगी। बलात्कार का ग्राफ तो यूं भी दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन इस क्रूरतम मामले में क्षमा से तो ऐसे अपराधियों के हौसले और बढ़ जाएंगे और कोई हैरानी की बात नहीं होगी कि इस क्षमा से कदम कदम पर ऐसी दरिंदगी अपने पैर पसारे दिखाई देगी। 
 
जब कोई दर्द स्वयं पर से गुज़रता है, तब उसकी तकलीफ महसूस होती है। 
 
आशा देवी ने सही कहा कि यदि इंदिरा जी और उनकी पुत्री के साथ यह घिनौना कृत्य होता तो क्या वे माफ कर देतीं? नहीं, बिल्कुल नहीं क्योंकि तब उन्हें उस कष्ट का साक्षात् अहसास होता। 
बलात्कार इतना भीषण अपराध है, जिसका शिकार व्यक्ति जीवित रहे, तो भी वह और उसका परिवार शेष जीवन उसके दंश के साथ ही बिताते हैं तथा सहज आनंदपूर्ण जीवन उनके लिए आकाश-कुसुम ही बना रहता है। और यदि बलात्कार पीड़िता की मृत्यु हो जाए (जैसा निर्भया केस में हुआ) तो उसके परिजन आजीवन मानसिक व सामाजिक प्रताड़ना को भोगते हैं।
 
 इसी साल 80 वर्ष की होने जा रही इंदिरा जी तो वय और अनुभव में इतनी वरिष्ठ हैं कि इन सब बातों की समझ निश्चित तौर पर उन्हें होगी ही। फिर कैसे इतनी असंगत बात कह गईं ? 
 
मेरे विचार से उन्हें आशा देवी से क्षमा याचना करते हुए अपने शब्द वापस लेने चाहिए। एक बेहद दुखी मां की आत्मा को उन्होंने और छलनी किया है। हम उस मां का दुःख कम तो नहीं कर सकते, लेकिन कम से कम ऐसे बेतुके प्रस्ताव रख उसकी पीड़ा को और ना बढ़ाएं। 
 
बल्कि हमारी सामूहिक कोशिश तो यह होनी चाहिए कि हम उसके साथ कदम-दर-कदम मजबूती के साथ खड़े रहें। दोषियों को शीघ्रातिशीघ्र मृत्युदंड की उसकी एकमात्र मांग को पुरज़ोर समर्थन दें ताकि वह अपनी बेटी की अंतिम इच्छा को पूरा करने के इस समर में स्वयं को अकेला महसूस ना करे। कानूनी लड़ाई तो वह अकेली लड़ ही रही है और उसे ही लड़ना भी होगा। लेकिन क्या हम अपना नैतिक समर्थन भी उसे नहीं दे सकते जो उसके मनोबल को थामे रखने में स्तंभ का कार्य करेगा? 
 
विचार कीजिएगा इंदिरा जी, अपनी उस समस्त मानवीय सोच के साथ, जिसने आपको मानवाधिकार कार्यकर्ता बनाया है। 
ये भी पढ़ें
राष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता : सबकी शान होती हैं बेटियां