आखिर हो क्या गया है कांग्रेस के साढ़े तीन लोगों के आलाकमान को? जिसके कारण यह सबसे पुरानी पार्टी सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा और रॉबर्ट वाड्रा की यह पार्टी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी भी हो गई है। कांग्रेस की इस लगातार हो रही जजर्र स्थिति से इससे जुड़े या इसके चाहने वालों में तो भारी बेचैनी है, मग़र वस्तु स्थिति ऐसी भी है कि इस पार्टी के मुखर और परंपरागत विरोधियों तक को चिंता होने लगी है।
कारण यह कि जब से नवजोत सिंह सिद्धू भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में आए हैं, उन्होंने 2 बार पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और राज्य के वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुनील जाखड़ को एक दिन भी चैन की नींद नहीं सोने दिया। हमारी राजनीतिक व्यवस्था की सबसे परम्परागत एवं बुरी बात यह है कि सजायाफ्ता, जमानतशुदा और बेपढ़े तो ठीक हैं, बॉलीवुड के साथ ही खेलों में शानदार जीवन जी चुके अकस्मात राजनीति में भी आकर देवी-देवता बन जाते हैं, जैसे कि सिद्धू, लेकिन इस बार तो कांग्रेस के इतिहास के इस अध्याय को शायद ही कोई याद रखना चाहेगा कि जो कांग्रेस चाटुकारिता एवं मक्खनबाज़ों से पगी रही हो उसमें भी किसी नए पार्टी अध्यक्ष की नियुक्ति पर देशभर में उस व्यक्ति विशेष को लेकर इतना कोहराम मचा हो।
जैसे ही सिद्धू के नाम की घोषणा की गई, सोशल मीडिया पर उनके विरोध में बमबारी हो गई। याद दिलाया गया कि नवजोत सिंह वही क्रिकेट टर्न्ड पॉलिटिशियन हैं, जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बारे में ऐसी सार्वजनिक टिप्पणियां की हैं कि कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति इनसे बात तक नहीं करे।
सनद रहे कि स्व. राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए कह दिया था कि मुझे मालूम है कि मैं केन्द्र से जो एक रुपया भेजता हूं, उसमें से ज़रूरतमंदों तक 10 से 15 पैसे तक ही पहुंचते। इस वक्तव्य की काफी भर्त्सना हुई थी, लेकिन नवजोत सिंह का शब्दाचरण आज भी सन्न कर देता है। उन्होंने कहा था कि एक में से 10 या 15 पैसे ही पहुंच पा रहे हैं तो तू (स्व. राजीव गांधी) काहे का प्रधानमंत्री रे...!!!!!! जब डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तब नवजोत सिंह की सार्वजनिक टिप्पणी आई थी, पीछे चोरों की बारात। आगे सरदार, न असरदार।
जब पहली बार अमृतसर से भाजपा की ओर से पहली बार लोकसभा में गए तो पीएम नरेंद्र मोदी को अपना भगवान तक कह बैठे। उन्हीं मोदी के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार में सबसे बड़ा फेंकू और गुरु क्या मिला ठु्ल्लू। बेशक, नवजोत सिंह की क्रिकेट कमेंटरी से बार-बार प्रमाण मिलता रहा है कि वे बहुत पढ़े-लिखे, विद्वान और वर्सटाइल हैं, लेकिन कहा जाता है कि कभी-कभी अतिज्ञानी होना भी अक्ल का अजीर्ण कहलाता है।
यह कई बार ज़ाहिर हो चुका है कि नवजोत की असली नज़र तो पंजाब के मुख्यमंत्री पद पर है। इस तरह की अतिमहत्वाकांक्षा पालना किसी भी फील्ड में कभी गलत नहीं माना गया, लेकिन कोई भी पद आपकी जागीर नहीं हो सकता खासकर लोकतंत्र में। नवजोत सिंह इस बीच एक हत्या के मामले में फंस गए। हाईकोर्ट से तीन साल की सजा हुई, लेकिन पूर्व केन्दीय मंत्री स्व. अरुण जेटली के हाथ में केस जाने से नवजोत सिंह को जमानत मिल गई। फलतः नवजोत सिंह ने जेटली से गहरी दोस्ती गांठ ली, मगर ये क्या! जैसे ही भाजपा ने अमृतसर से अरुण जेटली को टिकट दिया, जेटली और भाजपा नवजोत सिंह के लिए किस चिड़िया का नाम हो गए।
जब नवजोत तीन महीने की रस्साकशी के बाद पंजाब कांग्रेस के चीफ़ बने तो उन्होंने तुगलकी फरमान जारी कर दिया। ऐलान हुआ कि सभी मंत्री रोज़ाना उनके निवास पर जाकर अपने कामकाज की उन्हें ब्रीफिंग करें। सनद रहे कि जब स्व. आचार्य कृपलानी अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे, तब उन्होंने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. पंडित नेहरू के लिए निर्देश निकाला था कि पार्टी मुखिया होने के कारण चूंकि मेरा ओहदा बड़ा है, सो केन्द्रीय मंत्रिमंडल के प्रत्येक कामकाज से मुझे नियमित अवगत कराया जाता रहे।
इतिहास में दर्ज़ है कि पंडितजी ने उनके निर्देश को मानने से साफ़ तौर पर इनकार कर दिया। हां, आचार्य कृपलानी को वरिष्ठ मंत्री पद ज़रूर ऑफ़र कर दिया, ताकि कृपलानी को पूरी जानकारियां अपने आप मिलती रहें। नाराज़ कृपलानी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। नवजोत सिंह को यह खुशफहमी पालने से हरदम बचना चाहिए कि वे कोई दूसरे आचार्य कृपलानी हैं।
याद रखा ही जाना चाहिए कि कृपलानी गांधीजी के सबसे पहले और विश्वस्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। नवजोत सिंह सिद्धू को पसंद करने वाले लोग तक कहते रहे हैं कि ये आदमी तो ऐसे पेश आता है जैसे अवतारी पुरुष हो, या इनमें जैसे सुर्खाब के पर लगे हों, शायद इसीलिए इन पर किसी टिप्पणी का कोई असर ही नहीं होता। सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर जब नवजोत सिंह ने बकवास की भी हदें पार कर दीं, तो जिन कपिल शर्मा के शो में ये प्राजी हुआ करते थे, उन्हें भी इन प्राजी को अपने शो से अंतिम बार बिदा करने दरवाजे तक आना पड़ा।
जब इमरान खान ने शपथ ग्रहण की तो पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमररिंदर सिंह के लाख मना करने पर सिद्धू वाघा सीमा से पाकिस्तान चले गए। फिर न सिर्फ़ इमरान खान से गलबहियां कर लीं, बल्कि पाकिस्तान की सेना के अध्यक्ष जनरल क़मर बाजवा से गले मिलकर उनकी पीठ थपथपाई।
जान लें कैप्टन अमररिंदर सिंह भारतीय सेना में कैप्टन रह चुके हैं और उन्होंने 1965 की जंग भी लड़ी थी। कदाचित इसी कारण पद छोड़ते वक़्त अमरिंदर सिंह ने मीडिया को नवजोत सिंह के पाकिस्तान से रिश्तों को लेकर आशंका भी ज़ाहिर कर दी थी। नवजोत सिंह की एक शिकायत यह भी बताई जाती है कि उनकी पत्नी को विधानसभा चुनाव क्यों नहीं लड़वाया गया। बता देना उचित रहेगा कि उनकी पत्नी का नाम भी नवजोत है और वे स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं।(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)