मृणाल जी, आपने अपनी ही गरिमा का अपमान किया है
मृणाल पांडे। कल से सोशल मीडिया पर चर्चित हैं अपने उस ट्विट की वजह से जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर वैशाखनंदन लगाया है। मृणाल जी मैं आपकी प्रशंसक हूं। कुल जमा 3 मुलाकात हुई है आपसे।
सबसे पहले भोपाल के होटल पलाश में जब आप अपनी मां और साहित्यकार शिवानी जी, प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी के साथ माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में आई थीं। हम सभी 20 विद्यार्थियों को आपके साक्षात्कार की जिम्मेदारी मिली थी। उसी के दूसरे दिन फिर आपके व्याख्यान में हमारी संक्षिप्त बातचीत हुई थी। तीसरी बार भोपाल में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में हम मिले थे आप वेबदुनिया की प्रदर्शनी देखने आई थी। इन तीन मुलाकात के आईने में झांककर मैं इस ट्विट को समझने की कोशिश कर रही हूं। क्या यह सचमुच आप ही हैं? या आपका अकाउंट हैक हुआ है जैसा कि ऐसे मौकों पर ज्यादातर बुद्धिजीवियों का हो जाता है।
पहली मुलाकात में मैंने पाया था कि आप मितभाषी हैं। अपनी गरिमा को लेकर सतर्क, असहज प्रश्नों पर किंचित नाराज हो जाने वाली। अपनी मां शिवानी के एकदम विपरीत। शिवानी जी जहां मुक्त झरने की तरह झर झर हंस रही थी वहीं आप नपी-तुली मुस्कान के साथ बोलते हुए भी थम जाती। मुझे याद है प्रभाष जोशी जी के मुक्त ठहाके और शिवानी जी की खिलखिलाहट के बीच यदाकदा ही आप खुल कर हंसी थीं। मैं नई नवेली पत्रकार बनने को आतुर लड़की आपसे डर रही थी लेकिन शिवानी जी से मैंने खूब बातें की। दूसरी मुलाकात में भी आप उतना ही बोली थी जितना सोचकर आई थी। हम विद्यार्थी सम्मान से दोहरे हुए जा रहे थे कि कितना गरिमामयी व्यक्तित्व है आपका, अभिमानी नहीं माना था हमने। कुछ ने दबे स्वर में कहा भी कि यह 'अभिजात्य शैली' इन्हें अपनी मां से कितना अलग करती है पर किसी तरह का दुराग्रह हमने तब भी नहीं पलने दिया ।
विश्व हिन्दी सम्मेलन में भी आपने अपनी किंचित असहमति को कम शब्दों में कह दिया था लेकिन अचानक यह ट्विट देखकर मुझे लगा कि अगर आप जैसी गरिमामयी महिला इस स्तर तक आ कर सोच सकती हैं तो हमें आपसे डरने की जरूरत नहीं थी, ना तब ना अब...आपके प्रति सम्मान तो घटना था ही, वह घटा ही पर दुख इस बात का ज्यादा है कि विरोध के नित नवीन घटिया तरीकों को आजमाते हुए समाज निरंतर पतनशील हो रहा है ऐसे में जिनकी जिम्मेदारी है इस पतन को रोकने की, इस पतन के प्रति अपने विरोध जताने की वही इस भेड़चाल में शामिल हो रहे हैं।
आपके इस एक ट्विट ने आपके समूचे व्यक्तित्व और सोच पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। मैं याद कर रही हूं आपकी रचनाएं, आपकी भाषा, आपकी स्मित मुस्कान, आपकी अभिजात्य पांडित्यपूर्ण अभिव्यक्ति और फिर मेरे सामने आ जाता है आपका यह ट्विट। मैं मोदी भक्त नहीं पर मैं मोदी विरोधी भी नहीं। मैं सोनिया विरोधी नहीं लेकिन मैं सोनिया भक्त भी नहीं, मैं राहुल को पसंद नहीं करती पर मैं उसे नापसंद भी नहीं करती लेकिन मैं कभी भी किसी भी व्यक्ति के खिलाफ इस स्तर का ट्विट या कमेंट इसलिए नहीं करती हूं क्योंकि यह मेरी गरिमा के विरूद्ध है।
मोदी जी पर आपका ट्विट मोदी जी को अपमानित करने से पूर्व स्वयं आपको अपमानित कर रहा है। आपकी साहित्यिक विरासत को अपमानित कर रहा है। आपके प्रति मेरी सोच को बदलने पर मजबूर कर रहा है। आपका उनके प्रति सम्मान नहीं है न सही, लेकिन इस देश की व्यवस्था के प्रति तो है? इस देश की लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रति तो है,इस देश में आपके प्रशंसक पाठक के प्रति तो है? अगर हां तो एक ऐसा काम जो आपकी ही गरिमा और व्यक्तित्व पर अशोभनीय प्रश्न बन कर खड़ा है, कैसे कर सकती हैं?
मृणाल जी, आपने अपनी ही गरिमा का अपमान किया है...जाने क्यों यह कहने से खुद को नहीं रोक पा रही हूं कि अपनी समृद्ध साहित्यिक विरासत का तो ख्याल किया होता...