मंगलवार, 1 अप्रैल 2025
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. Hindi Poem Jeevan Sandhya

नई कविता : जीवन-संध्या

jeevan sandhya
लो देखते ही देखते
गुजर गए
उम्र के तीनों पड़ाव ।
 
बीत गया हंसते-खेलते
प्यार-दुलार में बचपन।
 
दब कर जिम्मेदारियों के तले
निकल गई जवानी भी
और आ ही गई 
वह तड़पाती
जीवन-संध्या 
जिसकी कल्पना से ही 
बहुधा थरथराते हैं सब।
 
कहीं मिथ्या तो कहीं सच है
जीवन की यह अबूझ सांझ
जिसमें होते हैं वे सभी पल
जो जिए हैं हमने अब तक
और जिन्हें जीना है
उस वक्त तक
जब सुकून से, सो सकेंगे हम
चिर-निद्रा में ।
 
शास्वत सत्य भी है यही ।
 
फिर क्यों न हम इस 
जीवन-संध्या को
खुशियों से भर दें।
 
नैसर्गिक कष्ट और
अवसाद से रहकर दूर
बांट दें अपने अनुभव सारे
जो करें, 
किसी न किसी का कल्याण
करें राह सुगम, मानने वालों की ।
 
निश्चित मानिए ,
जीवन की संध्या में यदि
हम रहेंगे प्रसन्न , 
बांटेंगे अपने अनुभव
भूलकर दर्द सारा
तो दे सकेंगे बहुत कुछ 
जिसकी जरूरत है आज
घर-परिवार और समाज को ।
 
तो आइए, लें संकल्प
जीवन-संध्या को
खुशनुमा और प्रेरक बनाने का
अपनी ओर से 
भूलकर सारे दर्द ।