कविता : हिन्दी का जो मान हुआ
हिन्दी का जो मान हुआ है
हर मुख से जब गान हुआ है
विश्व गुरू यह कहलाती है
बालक भाषा भान हुआ है
हिन्दी में गूंजी किलकारी
घर नन्हा मेहमान हुआ है
संस्कृत जननी है कहलाती
जन बोली का प्रान हुआ है
अम्मा पप्पा बोले बच्चा
नादां पर सबके कान हुआ
जीवन दायिनी रही हिन्दी
इसमें मां उर पान हुआ है
हिन्दुस्तान की माटी पलता
खेल कूद शैतान हुआ है
अजान अबोध औ चंचल
बालरूप भगवान हुआ है
हिन्दुस्तान की माटी पलता
खेल कूद शैतान हुआ है
जीवन बीता हिन्दी मे ही
संविधान न सम्मान हुआ है
हिन्दी हूं माथे बिन्दी हूं
देश तभी कप्तान हुआ है