कविता : हिन्दी का जो मान हुआ
डॉ मधु त्रिवेदी | शुक्रवार,सितम्बर 15,2017
									   									   हिन्दी का जो मान हुआ है 
हर मुख से जब गान हुआ है 
									
								कविता : देश
डॉ मधु त्रिवेदी | गुरुवार,अगस्त 24,2017
									   									   उजालों को सताया जा रहा है, अंधेरों को बसाया जा रहा है। गरीबों की बढ़ी मुसीबत सुखद का, दिया फिर से हवाला जा रहा है। ... 
									
								कविता : पर्व आजादी का
डॉ मधु त्रिवेदी | बुधवार,अगस्त 16,2017
									   									   आ गया पर्व आजादी का, एकजुट ध्वज बनाने लगे। शान इसकी रहेगी सदा, हाथ दुश्मन न जाने लगे। भूल जाए न हम बात यह, 
									
								लघुकथा : परित्यक्ता
डॉ मधु त्रिवेदी | गुरुवार,अप्रैल 20,2017
									   									   जुम्मे-जुम्मे उसने बारह बसंत ही देखे थे कि पति ने परस्त्री के प्रेम-जाल में फंसकर उसे त्याग दिया। उसका नाम उमा था। अब ... 
									
								हिन्दी कविता : गीतिका
डॉ मधु त्रिवेदी | शुक्रवार,अप्रैल 14,2017
									   									   थाह दिल की जो नापता होगा, रोज गोता वो मारता होगा। देख मौका छुपे चला आता,  प्रीत का बीज रोपता होगा। आज दिलदार जो बना ... 
									
								दुर्गा मां पर हिन्दी कविता
डॉ मधु त्रिवेदी | गुरुवार,अप्रैल 6,2017
									   									   यहां पर रखी मां हटानी नहीं थी
झूठी भक्ति उसकी दिखानी नहीं थी, चली आ रही शक्ति नवरात्रि में जब
जला ज्योति की अब मनाही ... 
									
								हिन्दी गजल : मां की भक्ति...
डॉ मधु त्रिवेदी | गुरुवार,अप्रैल 6,2017
									   									   यहां पर रखी मां हटानी नहीं थी, झूठी भक्ति उसकी दिखानी नहीं थी।
चली आ रही शक्ति नवरात्रि में जब, जला ज्योति की अब मनाही ... 
									
								कविता : लाज अपने देश की सबको बचाना है...
डॉ मधु त्रिवेदी | शुक्रवार,जनवरी 27,2017
									   									   लाज अपने देश की सबको बचाना है, दुश्मनों के आज मिल छक्के छुड़ाना है। हर बार मिलकर मनाते पर्व गणतंत्र का, इसलिए अब ... 
									
								कविता : लड़ाई आज लड़ना है...
डॉ मधु त्रिवेदी | गुरुवार,जनवरी 19,2017
									   									   जमाकर पैर रखना राह कंकड़ों से संभलना है, अकेले जिंदगी की इस डगर पर आज बढ़ना है। बड़े ही लाड़ से जो बेटियां पलतीं पिता ... 
									
								हिन्दी कविता : अफसोस
डॉ मधु त्रिवेदी | बुधवार,नवंबर 9,2016
									   									   देख आज के हालात
सिर पकड़ बैठ जाता हूं
सब ओर लाचार बेचारी 
दीनता हीनता है
गरीबी और बेबसी है
फिर अफसोस क्यों ना हो 
									
								
