लाज अपने देश की सबको बचाना है,
दुश्मनों के आज मिल छक्के छुड़ाना है।
हर बार मिलकर मनाते पर्व गणतंत्र का,
इसलिए अब प्रतिज्ञा हमको कराना है।
याद वीरों की दिलाकर के यहीं गाथा,
मान भारत भूमि का अब बढ़ाना है।
कौन जाने यह कि आहुति कितनी दी हमने,
याद वो सारी हमें ही तो दिलाना है।
मांग उजड़ी पत्नियों की ही यहां पर क्यों,
बात बच्चों को यही समझा बताना है।
खो दिए हैं लाल अपने तब यहां पर जो,
फिर पुरानी आपसे दुहरा जताना है।
आबरू मां की बचाने के लिए हम अब,
गर पड़े मौका शीश अपना भी कटाना है।