वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 का बजट प्रस्तुत करते हुए गुरु रविंद्रनाथ टैगोर की यह पंक्ति सुनाई- उम्मीद ऐसी चिड़िया है जो अंधेरे में भी चहचहाती है।
पूरे वर्ष में कोरोना के संकट ने जिस ढंग से दुनिया सहित भारत की अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंचाया उसके कारण समाज के हर तबके के मनोविज्ञान में चिंता और निराशा सघन हुई। इन परिस्थितियों में बजट ऐसा चाहिए था जो लोगों के अंदर उनके और संपूर्ण देश के बेहतर भविष्य की उम्मीद पैदा करे, देश के समक्ष समस्याएं और चुनौतियां जितनी गहरी है उनका वास्तविक मूल्यांकन कर उनसे निपटने और सामना करने के लिए साहसपूर्ण व्यावहारिक प्रभावी कदम उठाने का जोखिम ले...।
क्या मोदी 2 सरकार के इस दूसरे बजट को हम इस कसौटी पर खरा पा सकते है? तीन दिनों पूर्व संसद में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने बजट की दिशा का संकेत दे दिया था। साफ था गरीबों, किसानों के कल्याण, आम आदमी के जेब में खरीद के लिए धन आने, विकास के पथ पर सरपट दौड़ने का रास्ता तैयार करने और साहस के साथ जोखिम भरे सुधार सरकार के मूल लक्ष्य होंगे।
इस समय कृषि कानून के विरोध में राजधानी में किसान संगठनों का एक आंदोलन चल रहा है। बड़े वर्ग का ध्यान इस ओर रहा होगा कि कृषि और किसानों से संबंधित क्या घोषणाएं होती हैं। विस्तार से समस्त प्रावधानों का यहां उल्लेख संभव नहीं है, लेकिन कृषि और ग्रामीण आधारभूत संरचना,कृषि के लिए कर्ज की राशि, फसलों के न्यूनतम मूल्य, कृषि से संबंधित उद्योगों को प्रोत्साहित करने, नष्ट होने वाले 22 फसलों को ऑपरेशन ग्रीन में शामिल करने आदि बातें निश्चय ही आकर्षक हैं।
यह पहली बार है जब कृषि आधारभूत संरचना के धन का उपयोग कृषि उत्पाद बाजार समिति यानी एपीएमसी के लिए भी किया जा सकेगा। जो लोग मंडियों को खत्म किए जाने की साजिश का आरोप लगा रहे थे उनको कम से कम तत्काल तो उत्तर मिल गया होगा। वैसे गांव कृषि और किसान को हम संपूर्ण व्यवस्था से अलग करके नहीं देख सकते। इसी तरह समाज और अर्थव्यवस्था के सम्पूर्ण हिस्सों को गांव, गरीब, किसानों से अलग नहीं कर करते। संतुलित बजट वही माना जाएगा जब समाज, अर्थ और व्यवस्था से जुड़े सभी पहलुओं को आवश्यकता, उपादेयता, अनुपात के अनुसार स्थान दिया जाए। राजनीति को अलग करके विचार करें तो यह स्वीकार करना होगा कि सीतारमण का बजट इन मायनों में संतुलित है।
यह पहले से साफ था कि स्वास्थ्य को पूरी तरह भारतीय परंपराओं को भी सशक्त करते हुए विश्वस्तरीय बना देने के लिए सारे पहलुओं को समेटे हुए व्यापक योजना और प्रावधान होंगे। स्वास्थ्य का कुल बजट 2 लाख 23000 करोड़ है। यानी आवंटन रिकॉर्ड 137 प्रतिशत बढ़ा है। इसमें 64,180 करोड़ रुपए के बजट के साथ प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना शुरू होगी।
इस कार्यक्रम के अर्थ से ही स्पष्ट है कि इसका लक्ष्य क्या है। 70 हजार गांवों के वेलनेस सेंटर्स को इससे मदद मिलेगी। 602 जिलों में क्रिटिकल केयर अस्पताल शुरू होंगे। नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल या राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र को मजबूत किया जाएगा। इंटीग्रेटेड हेल्थ इन्फॉर्मेशन पोर्टल शुरू किया जाएगा ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं या पब्लिक हेल्थ लैब्स को कनेक्ट कर सकें।
15 हेल्थ इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर्स शुरू किए जाएंगे, नौ बायो सेफ्टी लेवल लैब शुरू होंगी। बजट में गांव से शहर तक स्वास्थ्य ढांचे को ऐसा बना देने का लक्ष्य है जिसमें सबको उचित इलाज और स्वस्थ रहने का आधार उपलब्ध हो सके। इस नाते भी यह बजट ऐतिहासिक है।
विकसित देशों की कतार में खड़े होने के लिए भारत हर क्षेत्र से जुड़े आधारभूत ढांचा को वैश्विक स्तर पर लाना अपरिहार्य है। इस पर पहले भी फोकस हुआ है। मोदी सरकार ने आरंभ से ही इसकी पूरी कोशिश की है। पिछले बजट में 110 लाख करोड़ रुपये पांच वर्षों में खर्च की घोषणा हुई थी। कोरोना आघात से बाहर निकलने का संकेत देते हुए इस बजट में ऐसे प्रावधान हैं जिनसे 2020 की भी भरपाई हो जाए। 1.10 लाख करोड़ रुपए का रिकॉर्ड आवंटन तो केवल रेलवे के लिए हैं।
भारतमाला परियोजना के लिए 3.3 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान है। रेलवे ने राष्ट्रीय रेल योजना 2030 बनाया है ताकि भविष्य के लिए पूरी तरह तैयार रेल प्रणाली बनाई जा सके। मार्ग आधारभूत संरचना के लिए आर्थिक गलियारे बनाए जाएंगे। सड़क परियोजनाओं को चुनावी राजनीति का तोहफा बताना आसान है। लेकिन क्या इसकी आवश्यकता नहीं थी? बंगाल में 25 हजार करोड़ रुपए से हाईवे का निर्माण, 34 हजार करोड़ रुपए असम में नेशनल हाईवेज पर, 65 हजार करोड़ रुपए से केरल में 1100 किमी नेशनल हाईवे का निर्माण आदि को चुनावी जनरिए से देखा जा सकता है।
किंतु तमिलनाडु में तो भाजपा बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं कर रही होगी। वहां भी 3500 किमी नेशनल हाईवेज परियोजना के तहत 1.03 लाख करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा है। इसे देश की आवश्यक आधारभूत संरचना को वर्तमान एवं भविष्य के अनुरुप सशक्त करने की दृष्टि से देखना उचित होगा। आधारभूत ढांच के क्षेत्र में केवल निर्माण और विस्तारों की ही घोषणाएं नहीं है। डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट यानी विकास वित्तीय संस्थान की जरूरत बताते हुए एक विधेयक लाने की घोषणा है।
सार्वजनिक आधारभूत ढांचा के मुद्रीकरण पर ध्यान देने की घोषण है। इसके लिए नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन शुरू होगी। इसका एक डैशबोर्ड बनेगा ताकि इस मामले में हो रही तरक्की को देखा जा सके।
निस्संदेह, कोई भी बजट सबको संतुष्ट नहीं कर सकता। पर जरा दूसरे नजरिए से देखिए। ऐेसे संकट के काल में 34.83 लाख करोड़ का बजट असाधारण साहस का परिचय देने वाला है। आप कोरोना काल में वित्त मंत्री द्वारा घोषित तीन पैकेजों, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना तथा रिजर्व बैंक की योजना को मिला दीजिए तो 20 लाख करोड़ से ज्यादा की राशि सरकार पहले ही दे चुकी है। इनको साथ मिलाकर देखिए और राजनीतिक नजरिए से परे होकर विचार करिए।
चीन ने सीमा पर और उसके परे भारत के अंतरराष्ट्रीय-क्षेत्रीय रक्षा हितों के समक्ष जो चुनौतियां पेश कर दीं हैं उसमें भारत के पास रक्षा व्यवस्था को किसी स्थिति से निपटने के लिए कमर कसने के अलावा कोई चारा नहीं था। 4 लाख 78 हजार करोड़ की राशि का आवंटन करना पड़ा है। अगर सबके सिर से बोझ कम कर दिया जाए तो धन आएगा कहां से? विदेशी निवेश के लिए भी आपको पूरा ढांचा उपलब्ध कराना ही होगा और इसकी पूरी कोशिश बजट में है। हम न भूलें कि किसी के सिर पर करों का बोझ बढ़ाया नहीं गया है।
कई लोग अलग-अलग विषय उठाकर बजट की हमेशा आलोचना करते हैं। बजट को समग्रता में देखने से ही आप सही निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं, खंड-खंड में विचार करने से नहीं। उदाहरण के लिए जो पूछ रहे हैं कि इसमें रोजगार के लिए क्या किया गया है उनको ध्यान रखना चाहिए कि आधारभूत संरचना के जितनी परियोजनाएं हैं , ग्रामीण आधारभूत संरंचना या शहरी, स्वच्छ जल मिशन, मिशन पोषण कार्यक्रम, शिक्षा क्षेत्र के कदम... सबमें बिना घोषणा के करोड़ों रोजगार के अवसर पैदा होंगे।स्वास्थ्य मूल राज्यों का विषय है लेकिन पूरी योजना साकार हुई तो स्वास्थ्य क्षेत्र की पूरी तस्वीर बदल जाएगी।
देश का कौन सा वर्ग और क्षेत्र इसमें समाहित नहीं होगा? इसमें कितने लोगों को रोजगार मिलेगा जरा इसकी कल्पना करें। आर्थिक विकास में इसका सतत स्थायी योगदान होगा। अर्थव्यवस्था आम मनुष्य के जीवन से अलग हटके नहीं हो सकती । व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र बनता है। इसलिए राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण का आधार और उसकी दिशा भी बजट में दिखाई देनी चाहिए। आप ध्यान देंगे तो 100 सैनिक विद्यालय खोलने की ऐतिहासिक घोषणा इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
आने वाली पीढ़ी को अनुशासित, मानसिक रूप से संतुलित व देश के लिए समर्पित संस्कारों से ओतप्रोत करने में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। आज इसका महत्व समझ में नहीं आए लेकिन भविष्य में जब इसके योगदान का मूल्यांकन होगा तो निश्चित रूप से 2021-22 के बजट को याद किया जाएगा। इसी तरह राष्ट्रीय भाषाओं में अनुवाद की योजना है। अन्य भाषाओं की पुस्तकों का हिंदी में, हिंदी की पुस्तकों का अन्य भाषाओं में, अन्य भाषाओं की पुस्तकों का भी दूसरी अन्य भाषाओं में होने से संपूर्ण देश में पढ़ने लिखने वाले लोगएक दूसरे की सभ्यता संस्कृति से परिचित होंगे। इससे सांस्कृतिक विविधता वाले देश में एकता का पुनर्जागरण होगा । यह भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की एक आधार भूमि बन सकती है।
इसी तरह उच्च शिक्षा के लिए आयोग, केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना, हजारों विद्यालयों का उन्नतिकरण, आदिवासियों के लिए और एकलव्य विद्यालयों की स्थापना एवं उन्नतिकरण, आदिवासी छात्रों की छात्रवृत्ति का नए सिरे से रचना, अनुसंधान एवं अन्वेषण के लिए मोटी राशि और व्यवस्थाएं आदि भविष्य में महाशक्ति की भूमिका निभाने के लिए भारतीय प्रतिभा तैयार करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।
इस तरह कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि कोरोना संकट के काल में आघात पहुंची अर्थव्यवस्था को, निराश-उदास-हताश भारतीय मानस को तथा भारत को लेकर दुनिया की धारणा को फिर से उम्मीद, विश्वास और सकारात्मक लक्ष्यों की पटरी पर दौड़ाने की दृष्टि से यह बजट याद किया जाएगा।
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी राय है, वेबदुनिया से इसका संबंध नहीं है)