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Last Updated : रविवार, 25 जुलाई 2021 (13:25 IST)

संसद में विधेयक पास होने से संवर जाएंगी लाखों बच्चों की जिंदगियां

संसद में विधेयक पास होने से संवर जाएंगी लाखों बच्चों की जिंदगियां - Human trafficking, law, kids and trafficking,
रोहित श्रीवास्तव
मानव दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) ड्रग्स और हथियार के बाद दुनिया का तीसरा सबसे संगठित अपराध है। सभ्य समाज के लिए अभिशाप बन चुका यह अपराध मानवीय मूल्यों की मूल भावना को कलंकित करता है।

इसे आधुनिक दासता के रूप में भी जाना जाता है। बच्चे और महिलाएं इसका सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। कोरोनाकाल में बाल दुर्व्यापार बढ़ा है। आशंका जताई जा रही है कि लॉकडाउन से उपजे आर्थिक संकट के चलते भविष्य में जबरिया बाल मजदूरी, यौन व्यापार, भिखमंगी, बाल विवाह आदि के लिए बच्चों की खरीद फरोख्त बढ़ेगी।

संयुक्‍त राष्‍ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय द्वारा जारी मानव दुर्व्यापार पर वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार मानव दुर्व्यापार का सबसे आम रूप यौन शोषण है। यौन शोषण की शिकार मुख्य रूप से महिलाएं और लड़कियां हैं।
रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में दुर्व्यापार के शिकार लोगों में से लगभग 20 फीसदी बच्चे हैं। भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में मानव दुर्व्यापार के 2260 मामले दर्ज हुए थे। दुर्व्यापार के शिकार कुल 6616 लोगों में 2914 बच्चे और 3702 वयस्क शामिल थे।

बच्चों के अधिकारों की पैरवी करने वाली गैरसरकारी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के अनुसार कोरोना महामारी से शुरू होने से अब तक उसने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ संयुक्त कार्रवाई करते हुए बाल दुर्व्यापार के शिकार 9000 से अधिक बच्चों को मुक्त कराया है। इस संयुक्त कार्रवाई में 260 ट्रैफिकर कानून की गिरफ्त में आए हैं।

मानव दुर्व्यापार जैसी सामाजिक बुराई से अगर हमें निपटना है तो इसको दोनों छोरों से पराजित करना होगा। एक छोर क़ानूनी है तो दूसरा सामाजिक। एक मजबूत कानून बना कर और लोगों को जागरुक कर ही हम इस संगठित अपराध की कमर तोड़ सकते हैं। एक सशक्त कानून अपराधियों को कड़ा संदेश देगा और उनके मन में डर पैदा करेगा। जबकि जनजागरुकता अभियान इस जघन्य अपराध के प्रति लोगों को सजग और सचेत करेगा।

बाल दुर्व्यापार की प्रति सख्त कानून बनाने और जागरुक करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी लगातार सक्रिय हैं। उनकी मांग पर भारत सरकार मानव दुर्व्यापार विरोधी एक विधेयक मानसून सत्र में संसद में पेश करने जा रही है। संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद जब यह विधेयक कानून में परिवर्तित हो जाएगा, तब यह मानव दुर्व्यापार को जड़ से मिटाने के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

प्रस्तावित मानव दुर्व्यापार विरोधी विधेयक-2021 के प्रावधान बड़े सख्त हैं और इसमें दुर्व्यापार के तकरीबन सभी पहलुओं को शामिल किया गया है। विधेयक में दुर्व्यापार के 23 उग्र रूपों का उल्लेख है। विधेयक में उग्र रूपों में जबरन या बंधुआ मजदूरी, एसिड अटैक और जननांग विकृति इत्यादि शामिल हैं। विधेयक में जबरन मजदूरी कराना,भीख मंगवाना, समय से पहले यौन परिपक्वता के लिए दवाएं खिलाना और हार्मोन के इंजेक्शन देना, विवाह या विवाह का लालच देकर महिलाओं तथा बच्चों का दुर्व्यापार करना अपराध माना गया है। विधेयक का उद्देश्य बाल श्रम, बाल यौन शोषण,अंगों के गैर कानूनी ढंग से व्यापार, कानून के विरुद्ध काम करने में बच्चों के उपयोग, बिना नियमों का पालन किए बच्चा गोद लेना, महिलाओं की खरीद फरोख्त पर रोक लगाना है।

विधेयक में सजा और जुर्माने का सख्त प्रावधान है। दुर्व्यापार के अधिकतर मामलों में कम-से-कम सात वर्ष की सज़ा का प्रावधान है। साथ ही अगर कोई व्यक्ति एक ही अपराध (दुर्व्यापार) दोबारा करता है या एक से ज्यादा व्यक्तियों को ट्रैफिकिंग का शिकार बनाता है तो उसे 10 साल की कठोर कारावास की सजा हो सकती है, जिसे आजीवन कारावास तक भी बढ़ाया जा सकता है।

साथ ही उस पर 10 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। विधेयक में दुर्व्यापार के मामलों में एफआईआर होने के 30 दिन के भीतर ही पीड़ित को तत्काल राहत देने का भी प्रावधान है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर संगठित गठजोड़ को तोड़ने के लिए, विधेयक में अपराधी की संपत्ति की कुर्की और जब्ती का प्रावधान है। इस प्रक्रिया से प्राप्त राशि का उपयोग पीड़ितों के राहत और पुनर्वास के लिए किया जाएगा। विधेयक में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को मानव दुर्व्यापार से निपटने और रोकथाम के लिए जांच और समन्वय का दायित्व सौंपा गया है।

दुर्व्यापार के मामलों में सजा की दर कम है। सुनाई में ही सालों लग जाते हैं। ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई के उद्देश्य से विधेयक में प्रत्येक जिले के लिए विशेष लोक अभियोजकों के साथ नामित अदालत का प्रावधान है। विधेयक में अल्पकालिक और दीर्घकालिक पुनर्वास के लिए 'संरक्षण गृह' और पुनर्वास गृहों की व्यवस्था है। इन गृहों का पंजीकरण अनिवार्य है और इसका पालन न करने पर दंड की व्यवस्था है। गवाहों और पीडितों की पेशी में देरी की वजह से सुनवाई लंबी खिचती जाती है। 

विधेयक के तहत नामित अदालत को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पीड़ित के बयान को रिकॉर्ड करने का दायित्व सौंपा गया है। विशेष रूप से सीमा पार और अंतर-राज्यीय अपराधों के मामलों में जहां पीड़ित को किसी अन्य राज्य या देश से वापस लाया गया हो और वह सुरक्षा या गोपनीयता के कारणों से अदालत के सामने पेश होने में असमर्थ हो। प्रस्तावित विधेयक किसी भी अपराध का संज्ञान लेने की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर ट्रायल पूरा करने का भी प्रावधान करता है।

प्रस्तावित विधेयक में मानव दुर्व्यापार से संबंधित अपराधों को लेकर कड़ा रुख अपनाया गया है। देश की सुप्रीम जांच एजेंसी एनआईए को जांच और समन्वय की जिम्मेदारी सौंपना भारत सरकार की मानव दुर्व्यापार के प्रति गंभीरता को दर्शाता है। इससे दुर्व्यापार के मामलों में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई होने की उम्मीद जागी है।

दुर्व्यापार के मामलों के ट्रायल्स को एक वर्ष के भीतर पूरा करने की बात यह सुनिश्चित करेगी कि पीड़ित को न्याय मिलने में देरी न हो क्योकि 'न्याय में देरी होना न्याय से वंचित होने के समान है। पीड़ित को 30 दिन में आर्थिक राहत देना हो या फिर पीड़ित के पुनर्वास के लिए 'संरक्षण गृह' और पुनर्वास गृहों का प्रावधान, यह पीड़ित को मानसिक और आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगा। निष्कर्ष के तौर पर कहा जाए तो यह एक सशक्त कानून साबित होगा जिससे दुर्व्यापार के पीड़ितों को समय पर न्याय, पुनर्वास और सामाजिक संरक्षण मिल पाएगा।

नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी ने मानव दुर्व्यापार विरोधी विधेयक, 2021 के संसद में पेश होने से पहले देश के राजनीतिक दलों और सांसदों से अपील की है कि वे एक पूरी पीढ़ी को बचाने वाले इस विधेयक को जारी मानसून सत्र में पारित कराने का प्रयास करें।

गौरतलब है कि साल 2017 में श्री सत्यार्थी ने बाल दुर्व्यापार के खिलाफ एक सख्त कानून बनाने और लोगों को इस बारे में जागरुक करने के लिए देशव्यापी ऐतिहासिक भारत यात्रा का आयोजन किया था। तब सत्यार्थी के नेतृत्व में 12 लाख भारतीयों ने ‘भारत यात्रा’ में शामिल होकर मजबूत मानव दुर्व्यापार विरोधी कानून बनाने की मांग उठाई थी। बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ 35 दिनों तक चली यह ऐतिहासिक जन-जागरुकता यात्रा तब 22 राज्यों से गुजरते हुए 12 हजार किलोमीटर की दूरी तय की थी।

सत्यार्थी की इस मांग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए देशभर के बाल अधिकार कार्यकर्ता, समाजसेवी संस्थाओं के सदस्य और मुक्त बाल मजदूर नेता भी जन-जागरुकता अभियान चला रहे हैं। वे अपने-अपने स्थानीय सांसदों से मिल रहे हैं और उनसे मानव दुर्व्यापार विरोधी विधेयक- 2021 पास कराने की अपील भी कर रहे हैं। मानव दुर्व्यापार विरोधी विधेयक के पास होने और कानूनी जामा पहनने से देश के लाखों बच्चों को बाल श्रम, वेश्यावृत्ति, बाल विवाह, भीखमंगी आदि से बचा कर उनका जीवन संवारा जा सकेगा।

इस आलेख में व्‍यक्‍‍त विचार लेखक के निजी अनुभव और निजी अभिव्‍यक्‍ति है। वेबदुनि‍या का इससे कोई संबंध नहीं है।
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