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भिया अपना इंदौर अपना इंदौर है, भोपाल में वो बात नहीं ...!

भिया अपना इंदौर अपना इंदौर है, भोपाल में वो बात नहीं ...! - Hindi Blog On Indore And Bhopal
भिया अपना इंदौर अपना इंदौर है, भोपाल में वो बात नहीं ...
 
हाँ भिया, तुम मानो या नी मानो....बिलकुल सई बात है। अपना इंदौर अपना इंदौर है, भोपाल में वो बात नहीं । फिर चाहे पोहे जलेबी का स्वाद ले लो..चाहे इंदौर कि हुल्लड़बाजी ....। कईं से कईं तक आप बराबरी नी कर सकते ...क्या ... इंदौर और भोपाल में उतना ही अंतर है जैसे इंदौर पोहे या इन्दोरी साबूदाने कि खिचड़ी और सागर गैरे के सैंडविच में....
 
कित्ता ही न्यू मार्केट घूम लो, राजबाड़ा से कोई बराबरी नी...और डीबी मॉल जैसे तो इंदौर में चार चार हैं भिया... कां जाना है कां नी, डिसाइड करने में ही १५ मिनट लग जाते हैं। हां जनजातीय संग्रहालय कि ज़रूर तारीफ करनी पड़ेगी। बाकि इसके अलावा तो बस वो छोटा तालाब और बड़ा तालाब ही है और क्या...वो तो हमने रीजनल पार्क में ही बोटिंग करने लायक बना लिए हैं। और भोपाल में कभी जबरन कालोनी, पागनीस पागा जैसे नाम तो जीवन में नी सुने होंगे...। और नी नी करके स्वच्छता के मामले में भी इंदौर आगे हो गया है...इसलिए भिया अपना इंदौर अपना इंदौर है, भोपाल में वो बात नी है ...। चलो अब जरा सामान्य भाषा में समझा दूं ...।
 
मध्यप्रदेश के दो बड़े शहर इंदौर और भोपाल। हालांकि एमपी के महानगरों में ग्वालियर और जबलपुर भी शामिल हैं लेकिन चूंकि भोपाल राजधानी है और इंदौर व्यावसायिक राजधानी, इसलिए इन दो नगरों की चर्चा ज्यादा होती है ...तो मैं बात कर रही थी इन दो शहरों की। वैसे तो इन दोनों शहरों की आपस में कोई तुलना ही नहीं की जा सकती, लेकिन फिर भी दोनों के अंतर को महसूस करते हुए मैंने दोनों शहरों के प्रति अपने भाव ज़ाहिर करने का प्रयास किया। 
 
ये भाव उपन्न हुए ही इसलिए हैं क्यूंकि अंतर साफ महसूस किया जा सकता है। और चूंकि भाव बादलों की तरह घुमड़ ही आए हैं तो उन्हें भीने से ही बरसा कर यानि जाहिर करके आनंद ही लिया जाए। तो बात करें अगर इंदौर की, तो ये शहर अपने आप में गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए भी युवा है...जो अपने अतीत को भी सम्मान देता है और वर्तमान के साथ साथ भविष्य का स्वागत भी उत्साह के साथ करता है। वही भोपाल की बात करें तो यह आज भी अपनी पहचान को सिर्फ और सिर्फ अतीत से जोड़कर नवाबों की तरह तो जीता है लेकिन युवाओं सा उत्साह यहां नजर नहीं आता। एक तरफ इंदौर में शोर है, तो भोपाल में शांति...।
 
इंदौर युवा की तरह मिनी मुंबई होकर हर वक्त हर आवाज पर झूमता है तो भोपाल अपने राजधानी होने की उपाधि संभाले उसी गरिमा में जीता है...मौन सा। एक तरफ भोपाल राजनीति और राजनेताओं से लबरेज ...तो वहीं इंदौर की बात करें तो यहां छोटे बड़े सभी नेता हैं या यूं कहें कि सभी ''नेता बनते हैं''। भोपाल अपनी धीमी गति रखता है...तो यहां सभी ''तेज चलते हैं भिया''। शायद इसलिए भोपाल किसी सरकारी विभाग सा फील देता है तो इंदौर प्राइवेट डिपार्टमेंट सा।
 
इंदौर में सुबह से लेकर रात तक भीड़ भरी रौनक दिखती है तो भोपाल में भीड़ में भी कई बार सन्नाटा। इंदौर में श्रावण का महीना यानि जिस रस्ते से गुजरो, बोल बम की गूंज सुनाई देगी..वहीं भोपाल में हर पर्व शांति से गुजरता है....संस्कृति की समृद्धता इंदौर में इस समय देखी जा सकती है ...।
 
और हां सबसे खास बात तो मैं भूल ही गई....जायका...जो किसी भी शहर की पहचान होता है। इंदौर और भोपाल का बिलकुल अलग है...।भई जायके के मामले में तो इंदौर ही बेस्ट है। यहां का स्वाद तो लाजवाब है ही....व्यंजनों के प्रकार ही इतने हैं कि एक या दो चीज़ों का स्वाद चखने भर से आपका काम ही नहीं चल पाएगा। स्वाद और वैराइटी के मामले में खाने का सुख आपको भोपाल में नहीं मिल पाएगा। और अब तो स्वच्छता के मामले में भी इंदौर भोपाल से आगे निकल चुका है।