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Written By Author शरद सिंगी
Last Modified: रविवार, 19 मार्च 2017 (21:46 IST)

चुनाव चर्चा में उल्लेख से अभिभूत गर्दभ समाज

चुनाव चर्चा में उल्लेख से अभिभूत गर्दभ समाज - Election discussion
होली के अवसर पर गधों का एक विशाल सम्मेलन आयोजित हुआ। पूरे देशभर के विभिन्न प्रजातियों के गधे, गदहापुर में एकत्रित हुए। सबसे पहले समाज के सचिव ने पिछले वर्ष का लेखा-जोखा रखा। ढेंचू-ढेंचू की प्रशंसात्मक ध्वनि के बीच सचिव ने उत्तरप्रदेश के चुनावों में मिली जबरदस्त लोकप्रियता का वर्णन किया। कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा की गई सम्मानजनक टिप्पणियों पर आभार व्यक्त किया गया तो कुछ लोगों की आपत्तिजनक टिप्पणियों पर नाराजगी जाहिर की गई और उन पर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लगाने का प्रस्ताव भी रखा गया। 
गर्दभ समाज के स्वर्णिम इतिहास का बखान करते हुए अध्यक्ष ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने मानव सभ्यता के विकास में अनन्य योगदान दिया है। पुराणों में मां दुर्गा की अवतार माता शीतला के वाहन के रूप में हमारा उल्लेख है। इस वाहन पर बैठकर शीतलामाता ने ज्वरासुर जैसे अनेक असुरों का वध किया था। 
 
कुछ दशकों पूर्व तक मनुष्य के पास हम जैसा एक ही ऐसा धीर, गंभीर एवं स्थिर प्राणी था जिसको बिना नकेल पहनाए उस पर बोझा ढोया जा सकता था। सदियों तक मनुष्य के देशाटन का बोझ हमने अपनी पीठ पर ढोया है। मानवता को पूरी पृथ्वी पर फैलाने में हमारा विशेष योगदान रहा है। 
 
गधाधिराज ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि यूरोप के प्राचीन साहित्य में गधे का वर्णन एक प्रिय और वफादार पालतू पशु के रूप में अनेक साहित्यिक पुस्तकों में हुआ है। यहां तक कि जीसस क्राइस्ट ने जब यरुशलम में प्रवेश किया था तब हमारे किसी पूर्वज सौभाग्यशाली गर्दभ को ही अपना वाहन चुना था।
 
वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए गधा शिरोमणि ने आगे कहा कि यदि हम आधुनिक इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो सन् 1828 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार एंड्रू जैक्सन ने हमें अपनी पार्टी का पहचान चिन्ह (लोगो) बनाया। तब से लेकर आज तक यह डेमोक्रेटिक दल हमारे पहचान चिन्ह पर ही सवारी करता आ रहा है। राष्ट्रपति ओबामा ने भी हमारे इसी पहचान चिन्ह पर 10 साल तक सवारी की किंतु हिलेरी की सवारी हमें रास नहीं आई और हम ने दुलत्ती झाड़ दी। 
 
ध्यान रहे, हम बोझा तो ढो सकते हैं किंतु सवार हमारी पसंद का ही होना चाहिए। सवार हमारे सामने गाजर रखकर हमें दौड़ा नहीं सकता। यदि जबरदस्ती कोई हमारी सवारी करता है तो फिर हम दुलत्तियों से ही फैसला करते हैं। भारत के इन चुनावों में कुछ लोगों ने हमारी इच्छा के विरुद्ध सवारी करनी चाही तो हमने दुलत्तियों से उनको उनकी जगह दिखा दी। अब औंधे मुंह जमीन चाट रहे हैं। 
 
नेताओं के बयानों से आहत अध्यक्ष ने आगे कहा कि अब हम उस मानव समाज की बातें करें, जो हमारे एहसानों के बोझ तले तो दबा है किंतु अपनी प्रजाति को श्रेष्ठ समझता है और हमें कमतर। आज हम उसकी इस श्रेष्ठता का गहराई का विश्लेषण करते हैं। 
 
भारत के सारे विशेषज्ञ और ज्ञानी-ध्यानी हाल ही के प्रादेशिक चुनाव परिणामों से पहले टीवी पर बैठकर अपने-अपने ज्ञान की उल्टी कर रहे थे तथा गूढ़ तर्कों के साथ अपने-अपने विश्लेषण को सही ठहरा रहे थे। ये विशेषज्ञ टीवी पर अलग-अलग दलों के कसीदे पढ़ रहे थे किंतु परिणाम उनके अनुमानों के विपरीत निकले और बाद में सभी खीसे निपोरते नजर आए। 
 
वृथा ही मनुष्य अपने आपको बुद्धिमान प्राणियों की श्रेणी में रखता है। जो सामने दिख रहा है, वह तो समझ नहीं सकता। जो अनदेखा है, उसे भांपने का प्रयास करके अपने को बुद्धिजीवी कहता है। सुनता वही है, जो सुनना चाहता है। वक्त की दीवार पर स्पष्ट लिखी इबारत को पढ़ने में वह असमर्थ है। ऊपर से बुद्धिमान होने का तमगा भी चाहता है। 
 
होली की रात को गर्दभ समाज के रंगारंग कार्यक्रम के साथ सहभोज हुआ। कार्यक्रमों में धर्म, संप्रदाय और जातियों में बंटे तथाकथित बुद्धिमान मनुष्य समाज की खिल्ली उड़ाई गई। क्षेत्रों, प्रांतों और देशों में विभाजित मानव समाज की सोच से प्राणी समाज की सोच को बेहतर और ऊंचा बताया गया। मानव समाज में व्याप्त सामाजिक अन्याय, लिंगभेद, भ्रष्टाचार और मनुष्य के दोगले आचरण जैसे अनेक विषयों पर गधा समाज के कलाकारों ने अपनी हास्य प्रस्तुतियां दीं और अपने समाज के लिए वाहवाही लूटी। 
 
अंत में महू के लोकप्रिय साप्ताहिक 'प्रिय पाठक' का वाचन हुआ जिसमें महू के गणमान्य नागरिकों को होली के अवसर पर दी गई विभिन्न उपाधियों का आनंद लिया गया। संपादक दिनेश सोलंकी को महू की 'सूअर समस्या' जोर-शोर से उठाने के लिए अगले सम्मलेन में सम्मानित करने का फैसला लिया गया वहीं नगर के अन्य स्वनामधन्य नेताओं की इस विषय पर खामोशी और उदासीनता पर आश्चर्य भी प्रकट किया गया।