डॉ. पुष्पेन्द्र अवधिया, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बार- बार कहा है कि बिना टेस्ट कोरोना से युद्ध नहीं किया जा सकता। हाल ही में रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट का फेल होना और RT पीसीआर में लगने वाला लंबा समय स्थिति को और भी ज्यादा कठिन बना रहा है। ऐसे में यह देखना बहुत महत्वपूर्ण है कि कोरोना इन्फेक्शन की पहचान के लिए देश में उपलब्ध कौन से संसाधन इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
फ़िलहाल RT पीसीआर टेस्ट को कोरोना इन्फेक्शन कि जांच के लिए सर्वोत्तम तकनीक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। टेस्ट किट कि कमी और इस टेस्ट में लगने वाला समय इस विधि की प्रमुख चुनौतियां हैं। दूसरी ओर रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट भारत में बुरी तरह फेल हुए हैं। उसकी विवेचना जारी है।
इस बीच बिना लक्षण वाले मरीजों के रूप में हमारे सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई है। मेडिकल कॉउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के प्रमुख वैज्ञानिक के अनुसार भारत में कुल कोरोना पॉज़िटिव लोगों में से 80 प्रतिशत ऐसे हैं जिनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते।
ज्यादातर केसेस में लक्षण दिखाई देने के बाद ही कोई ट्रीटमेंट शुरू हो पाता है। बिना लक्षण वाले मरीजों से दो तरह की चुनौतियां हैं, एक तो बिना लक्षण वाला कोरोना पॉज़िटिव व्यक्ति अनजाने में ही कोरोना का संक्रमण फैलाता रहता है। दूसरा बड़ा खतरा स्वयं लक्षण हीन कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति को हो सकता है, जब तक लक्षण नहीं दिखते, इलाज शुरू नहीं होता।
इंदौर सहित मेट्रो शहरों में बहुत से सस्पेक्ट ऐसे हैं जिनमें लक्षण भी नहीं हैं और उनका पीसीआर टेस्ट भी पेंडिंग है। टेस्ट रिपोर्ट के इंतजार में काफी समय जाया हो रहा है। कई बार लम्बे इंतजार के बाद सैंपल रिजेक्ट होने कि ख़बरें भी आतीं हैं।
हम सब जानते हैं कि कोरोना वायरस प्रमुख रूप से हमारे लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट को इन्फेक्ट करता है। फेफड़े इनके निशाने पर होते हैं। कोरोना वायरस के नुकसान से फेफड़ों में पैच बनते हैं जिसे ग्राऊंड ग्लास ओपेसिटी कहा जाता है। कोरोना वायरस के इन्फेक्शन के कारण फेफड़ों में हुआ नुकसान जानलेवा हो सकता है।
प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लांसेट में फरवरी महीने में छपी रिपोर्ट यह दिखाती है कि बिना लक्षण के कोरोना पॉजिटिव (अलाक्षणिक मरीज) के फेफड़ों में भी कोरोना वायरस के संक्रमण से नुकसान पहुंच सकता है। इसी प्रकार मार्च 2020 में ही रेडियोलाजिकल सोसायटी ऑफ़ नार्थ अमेरिका जर्नल में प्रकाशित डायमंड प्रिंसेस क्रूज शिप की केस स्टडी से पता चलता है कि कुल 104 केसेस में से 73 प्रतिशत लोग बिना लक्षण के कोरोना पोजिटिव थे और उनमे से 83 प्रतिशत (कंसोलिडेटेड) के फेफड़ों में ग्राउंड ग्लास ओपेसिटी पाई गई थी, जो कि फेफड़ों में हो रहे नुकसान को दिखाता है।
शरीर में उपस्थित संक्रमण को प्रत्यक्ष (RT पीसीआर) और परोक्ष (रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट) रूप से पहचानने में सहायक हैं। परन्तु संक्रमण से शरीर में क्या नुकसान हो रहा है, यह इन टेस्ट के माध्यम से पता नहीं चल पाता।
फेफड़ों का CT स्कैन या चेस्ट एक्स-रे की मदद लेकर कोरोना द्वारा हो रहे नुकसान का सीधे-सीधे पता लगाया जा सकता है और इसे RT पीसीआर के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है।
वुहान के 62 रोगियों पर CT स्कैन के अध्ययन में यह बात सामने आई कि कोविड-19 की प्राम्भिक अवस्था में 62 लाक्षणिक पेशेंट में से 52 रोगियों के फेफड़ों में ग्राउंड ग्लास ओपेसिटी मिली। यानी लगभग 84 प्रतिशत मरीजों में। यह रिपोर्ट इसी वर्ष मार्च में अमेरिकन जर्नल ऑफ रोएंटजनोलॉजी में प्रकाशित हुई है।
फेफड़ों में ग्राउंड ग्लास ओपेसिटी जैसी असमान्यता का पाया जाना कोरोना का महत्वपूर्ण लक्षण है और इस अवस्था में दिया गया उपचार काफी निर्णायक हो सकता है। रेडियोलाजिकल सोसायटी ऑफ़ नार्थ अमेरिका जर्नल में 26 फ़रवरी 2020 में प्रकाशित 1014 केसेस की स्टडी से साफ़ तौर पर यह निष्कर्ष निकलता है कि चेस्ट CT, RT पीसीआर की तरह ही कोरोना वायरस के संक्रमण की पहचान के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस स्टडी में चेस्ट CT और RT पीसीआर कि डायग्नोस्टिक वैल्यू की तुलना कि गई है, यह स्टडी स्थापित करती है कि चेस्ट CT, RT पीसीआर से बेहतर और ज्यादा विश्वसनीय विधि है।
9 अप्रैल 2020 को जर्नल ऑफ़ मेडिकल वायरोलाजी में प्रकाशित रिपोर्ट से पता चलता है कि RT पीसीआर विधि कि अक्षमता के कारण लगभग 21 प्रतिशत लोगों को कोरोना मुक्त घोषित कर दिया गया (फाल्स निगेटिव) जो बाद के टेस्ट में कोरोना पॉजिटिव पाए गए।
चेस्ट CT से जिस ग्राउंड ग्लास ओपेसिटी और अन्य असमान्यताओं का पता लगाया जाता है, वही काम डिजिटल चेस्ट एक्स-रे से भी किया जा सकता है। इंदौर शहर में कई (संभवतः 85) डिजिटल एक्स-रे मशीनें उपलब्ध हैं। डिजिटल एक्स-रे मशीन में एक पेशेंट का चेस्ट एक्स-रे निकालने में लगभग 7 मिनट का औसत समय लगता है। इस प्रकार एक मशीन से प्रतिदिन सैकड़ों सैम्पल हैंडल किए जा सकते हैं।
एक्स-रे मशीन और सस्पेक्टेड रोगी के बीच पर्याप्त दूरी भी रखी जा सकती है, जो CT स्कैन में संभव नहीं है। एक्स- रे मशीन जैसा संसाधन पीसीआर की तुलना में आसानी से सुलभ है और एक्स- रे मशीन ऑपरेट करने वाला स्टाफ भी पहले से ही इस काम में माहिर है। एक्स- रे टेस्ट पर प्रति व्यक्ति होने वाला व्यय भी बहुत कम है।
एक और बात जो डिजिटल एक्स- रे को और भी ज्यादा उपयोगी बनाती है वह है पोर्टेबल एक्स-रे मशीनों का इस्तेमाल। इन मशीनों का इस्तेमाल कर के रोगियों की जांच उनके गांव मुहल्ले, क्वारेंटाइन सेंटर के आसपास ही की जा सकती है। चेस्ट CT स्कैन के लिए उन्हें इधर उधर लाने ले जाने से होने वाले एक्सपोज़र से बचा जा सकता है। एक्स-रे के रिजल्ट भी बहुत जल्दी (कुछ ही घंटों में) मिल सकते हैं।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि रैपिड किट और पीसीआर टेस्ट की कमी से जूझ रहे भारत जैसे देशों में एक्स- रे मशीन ऐसा विकल्प साबित हो सकता है जो न केवल कोरोना से होने वाले डैमेज को तुरंत पकड़ सकता है बल्कि समय पर सही इलाज शुरू हो जाए तो कई कीमती जिंदगियों को बचाया जा सकता है।
(लेखक देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में माइक्रोबायोलॉजी के शोधार्थी हैं)
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