शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Ayesha Case : बस ज्यादा बखेड़ा मत करना

Ayesha Case : बस ज्यादा बखेड़ा मत करना - Ayesha Suicide Case
जिसका जीवन बखेड़ा बन गया, जिसे मौत ने लील लिया, जिसकी खुशियों पर ग्रहण लग गया, जिसके सपने, उम्मीदें, हसरतें मिट्टी में मिल गए , जिसका मातृत्व लूट गया,  जीवन देने वाली प्यास बुझाने वाली कलकल बहती शांत नदी साबरमती में जिसे स्वयं को सौंप दिया, जिससे सात जन्मों का नाता था, भांवरें न पड़ी तो क्या अल्लाह पाक के सामने कुबूल है कुबूल है की इबारत तो गढ़ी थी, कुरान को साक्षी माना था जवां आंखों में सपने थे, तो अम्मी अब्बू के कलेजे का टुकड़ा थी, हंसमुख, जिंदादिल, दोस्तों की दोस्त, पढ़ी-लिखी आयशा को डस लिया एक शैतान ने ...
 
किसी के प्यार में पड़कर बेवफाई में घिर कर अपनी ही फूल से बीवी को ज़िल्लत की ज़िंदगी दी, स्नेह, प्यार से तो वंचित रखा ही दाने-दाने का भी मोहताज बना दिया इतना सताया जिसकी कोई इंतहा नहीं और फिर उस मासूम ने थक हार कर वह सब कर लिया जो उसे कदापि नहीं करना था अपने ही जीवन का अंत ...!
 
क्योंकि वह उस निर्मोही से प्यार करती थी निक़ाह जैसे पाक रिश्ते की इज्ज़त करती थी पर जब देखा कि कुछ नहीं ठीक है तो अपनी बुद्धि से जो उस समय ठीक लगा वह कर बैठी और वह थी "खुदकुशी" यह कहते हुए कि ज्यादा बखेड़ा मत करना केस वापस ले लेना..! 
 
कितनी मासूम कितनी भोली थी बुरे के लिए भी अच्छा सोचने वाली क्योंकि इतना सब होने के बावजूद भी वह प्रेम में थी, प्रेम जो शादीशुदा होकर भी एक तरफ़ा था और यही उसकी पीड़ा थी जिसे टूटकर चाहती थी वह हरजाई तो किसी और के प्रेम में गिरफ़्त था और आयशा को पग-पग पर धोखा-फ़रेब व बेवफाइयां मिल रही थी.. कैसे एक शादीशुदा स्त्री यह बर्दाश्त करें कि उसका पति उसे नहीं किसी और को चाहता है .. जिसके लिए वह अपना घर-बार दोस्त सगे-संबंधी छोड़ कर आई है वह तो उसका नहीं किसी और का है उसका दिल किसी और के लिए धड़कता है, उसकी आंखों में कोई और बसा है, तो कैसे बर्दाश्त करती  आखिर थी तो एक कोमल ह्रदय की स्त्री व पत्नी जो हजार-हजार अरमान लेकर ससुराल की दहलीज पर आई थी आयशा तुम्हारा वीडियो देख कर मन दुखी हो गया रोकने पर भी आंसू ना रुके जज़्बात बह निकले... 

तुम खुदा के यहां मेरी बात जरूर सुनना आयशा...तुम्हें इतना कमजोर हरगिज़ नहीं होना था एक उसी हरजाई के लिए अपना जीवन समाप्त करने की भूल क्यों कर बैठी...? इतनी अबला तुम क्यों बन गई उस क्षण...?  क्यों नहीं उसे तुमने अस्वीकार किया...?  क्यों नहीं उसे सजा दिलवाई...? क्यों नहीं स्वाभिमान से फिर जीने का संकल्प लिया...? क्यों नहीं अपने अम्मी अब्बू के बारे में सोचा ...? क्यों..? क्यों..?. क्यों..? जवाब दो आयशा ...?? जवाब दो..???